Sanskar
Related News

क्यों प्रसिद्ध है उज्जैन का माता हरसिद्धि मंदिर ?

देवों के देव महादेव की भूमि पर माता सती भी विराजमान हैं। जी हां,यहां देवी सती के दो शक्तिपीठ हैं जिसमें से पहला हरसिद्धि माता और दूसरा गढ़कालिका माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहाँ माता के दो शक्तिपीठ होने के कारण इस जगह का महत्व और भी बढ़ जाता है।  हरसिद्धि का प्राचीन मंदिर शिप्रा नदी के घाट के रामघाट के नजदीक स्थित है ।  कहा जाता है कि यह स्थान सम्राट विक्रमादित्य की तपोभूमि है । लोगों का मानना है कि उज्जैन की रक्षा के लिए आस-पास देवियों का पहरा है, उनमें से एक हरसिद्धि देवी भी है।

13वां शक्तिपीठ-

यह मंदिर देश के 51 में 13वां शक्तिपीठ कहलाता है। हरसिद्धि माता मंदिर को 'मंगल चाण्डिकी' के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि माता हरसिद्धि की साधना करने से सभी प्रकार की दिव्य सिद्धियां प्राप्त होती है। इसलिए देवी को हरसिद्धि माता कहते है।

गर्भगृह में 3 मूर्तियां-

मंदिर के गर्भगृह में तीन मूर्तियां विराजमान हैं जिसमें सबसे ऊपर माता अन्नपूर्णा, मध्य में माता हरसिद्धि और नीचे माता कालका विराजती हैं। मंदिर के गर्भ में माता की एक सुन्दर प्रतिमा है, जिसमें माता के दो उज्जवल नैन भक्तों पर दृष्टि बनाये रखते है । माता के विग्रह पर हल्दी और सिन्दूर की परत चढ़ी हुई है।

भव्य है मंदिर परिसर-

मंदिर की चारदीवारी के अंदर 4 प्रवेश द्वार हैं। मंदिर का द्वार पूर्व दिशा की ओर है। मंदिर के प्रांगण में दो बड़े दीप स्तंभ बने हुए हैं, जिसकी ऊंचाई लगभग 51 फिट है, जो विश्व प्रसिद्ध हैं। दोनों दीप स्तंभों पर नवरात्र तथा अन्य विशेष अवसरों पर दीपक जलाए जाते हैं । दोनों दीप स्तंभों पर कुल मिलाकर 1100 दीपक जलाये जाते हैं । मान्यता है कि यहां पर स्तंभ दीप जलाने का सौभाग्य जिसको भी मिलता है उसकी सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं।

मनोकामनाएं होती हैं पूरी-

माँ हरसिद्धि के धाम में मनोकामना पूर्ण होने पर परिक्रमा लगाने का विशेष महत्व है। वैसे तो यहां सामान्य रूप से सीधी परिक्रमा की जाती है। लेकिन कुछ खास मनोकामना के लिए श्रद्धालु उल्टी परिक्रमा कर अर्जी लगाते हैं और मनोकामना पूरी होने के बाद वे सीधी परिक्रमा कर माता को धन्यवाद देते है । 

मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं-

आइये अब जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी कुछ खास पौराणिक कथाएं। पुराणों में वर्णन है कि यह मंदिर वहां स्थित है जहां सती के शरीर का अंश अर्थात हाथ की कोहनी गिरी थी। इसलिए यह स्थान शक्तिपीठ कहलाता है। वहीं स्कंदपुराण के अनुसार एक बार दो दानव कैलाश पर्वत पर प्रवेश करने लगे तो नंदी ने उन्हें रोक दिया। असुरों ने नंदी को घायल कर दिया। इस पर भगवान शिव ने भगवती चंडी का स्मरण किया। शिव के आदेश पर देवी ने दोनों असुरों का वध कर दिया, जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने देवी से कहा "तुमने इन दानवों का वध किया है। इसलिए आज से तुम्हारा नाम हरसिद्धि होगा।"

विक्रमादित्य की तपोभूमि-

ऐसा माना जाता है कि महान सम्राट विक्रम ने देवी को प्रसन्न करने के लिए अपने हाथों से अपने मस्तक की बलि दे दी थी। उन्होंने ऐसा 11 बार किया लेकिन हर बार मस्तक वापस आ जाता था। 12वीं बार नहीं आया तो राजा विक्रमादित्य समझ गये कि उनका शासन पूर्ण हो गया।

तो इतना भव्य और दिव्य है माता हरसिद्धि मंदिर । आप भी उज्जैन जाएं तो माता का दर्शन कर आशीर्वाद अवश्य लें । 

रजत द्विवेदी