आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इसे हरिशयनी एकादशी और आषाढ़ी एकादशी भी कहते हैं। साल में पड़ने वाली सभी एकादशियों में इस एकादशी का विशेष महत्व होता है।
क्या है देवशयनी एकादशी ?
मान्यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार माह तक इसी अवस्था में रहते हैं। इसे चार्तुमास के नाम से भी जाना जाता है। चातुर्मास के चार महीनों तक कोई मांगलिक और शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं लेकिन इस दौरान दान-पुण्य, जप-तप और आराधना करना बहुत शुभ फलदायी माना जाता है।
इस बार अधिक मास की वजह से चातुर्मास पांच महीनों का है और देवशयनी एकादशी 29 जून को मनाई जाएगी। इसके बाद देवोत्थानी एकादशी या देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं और सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं।
देवशयनी एकादशी की कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती राजा राज्य करते थे और उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। एक बार राज्य में तीन साल तक वर्षा नहीं होने की वजह से भयंकर अकाल पड़ा गया जिससे चारों ओर हाहाकार मच गया। यहां तक कि यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा-व्रत आदि कार्य भी कम होने लगे। प्रजा ने राजा मांधाता से अपनी समस्या बताई जिससे वो चिंतित हो उठे कि आखिर उनसे ऐसा कौन सा पाप हो गया कि उसकी सजा इतने कठोर रुप में मिल रही है।
इस संकट से मुक्ति पाने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए। जंगल में विचरण करते हुए एक दिन वे ब्रह्मा जी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंचे गए। ऋषिवर ने राजा का कुशलक्षेम और जंगल में आने का कारण पूछा। राजा ने हाथ जोड़कर कहा कि मैं पूरी निष्ठा से धर्म का पालन करता हूं, फिर भी मेरे राज्य की ऐसी हालत क्यों है? कृपया इसका समाधान करें। राजा की बात सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा कि यह सतयुग है। इस युग में छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता है। महर्षि अंगिरा ने बताया कि आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करें। इस व्रत के फलस्वरूप अवश्य ही वर्षा होगी और खुशहाली लौट आएगी।
महर्षि अंगिरा के निर्देश के बाद राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आए और चारों वर्णों सहित पद्मा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया। महर्षि की बात सच साबित हुई और राज्य में मूसलधार वर्षा हुई। तभी से इस व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति को देने वाला है। मान्यता है कि इस कथा को सुनने मात्र से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
देवशयनी एकादशी पर क्या करें ?
देवशयनी एकादशी के दिन जल में आंवले का रस डालकर स्नान करना चाहिए। ऐसा करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि ज्येष्ठ माह के दोनों पक्षों की एकादशी के दिन ऐसा करने से पाप नष्ट हो जाते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु का केसर मिश्रित दूध से अभिषेक करें। ऐसा करने से श्री हरि जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। साथ ही, जातक को जीवन में कभी भी आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ता। कुंडली में ग्रहों के शुभ फलों की प्राप्ति के लिए श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करना लाभदायी रहता है।
इस दिन श्रीहरि का दक्षिणावर्ती शंख में गंगा जल भरकर अभिषेक करने से मां लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है। श्री सूक्त के पाठ से भी मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
पितरों की कृपा पाने के लिए देवशयनी एकादशी के दिन स्नान करके मंदिर या घर पर ही विष्णु जी के चित्र के सामने गीता का पाठ करें।
इस बार देवशयनी एकादशी 29 जून को मनाई जाएगी ।
-रजत द्विवेदी