हिमाचल प्रदेश देवभूमि के नाम से विख्यात है क्योंकि यहां असंख्य देवी-देवताओं के प्राचीन पावन स्थल मौजूद हैं। राजधानी शिमला का नाम मां श्यामा यानि श्यामला काली के नाम पर पड़ा है। इसी तरह कालका और शिमला के बीच बसे सोलन का नाम मॉं शूलिनी देवी के नाम पर पड़ा है, जो दिन-प्रतिदिन विकास की ओर अग्रसर हो रहा है। माता शूलिनी सोलन की अधिष्ठात्री देवी भी हैं। क्या है इस मंदिर का इतिहास, किनकी हैं ये कुलदेवी और शूलिनी मेले में क्या होता है विशेष ?..... आइए जानते हैं ।
देवी दुर्गा का अवतार हैं माता शूलिनी
माता शूलिनी साक्षात देवी दुर्गा मॉं का स्वरुप हैं । देवी भागवत पुराण में मॉं दुर्गा के असंख्य नामों में शूलिनी नाम भी शामिल है। माता शूलिनी अपने माता-पिता की सात बेटियों में से एक थीं । इनकी अन्य 6 बहनें हिंगलाज देवी, जेठ ज्वाला जी, नाग देवी, लुंगासनी माता, नैना देवी और तारा देवी के नाम से पूजी जाती हैं। इन सभी को दुर्गा का अवतार माना गया है । शूलिनी देवी को भगवान शिव की शक्ति माना जाता है। एक बार जब दैत्य महिषासुर के अत्याचार से देवता व ऋषि मुनि तंग आ गये तब सभी देवता एवं ऋषि-मुनि भगवान शिव और भगवान विष्णु के पास पहुंचे। उनको महिषासुर के उत्पात के बारे में बताया एवं सहायता मांगी । भगवान शिव और भगवान विष्णु के तेज से मॉं दुर्गा प्रकट हुईं । सभी देवी-देवताओं ने मॉं दुर्गा को अपने अस्त्र-शस्त्र भेंट किये। भगवान शिव ने त्रिशूल से एक शूल देवी मॉं को भेंट किया । इसी वजह से देवी दुर्गा मॉं का नाम शूलिनी पड़ा। इसी शूल से मॉं दुर्गा ने महिषासुर का वध किया।
बघाट रियासत के शासकों की कुलदेवी हैं माता शूलिनी
माता शूलिनी के इस मंदिर का पुराना इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा हुआ है। तब सोलन नगर बघाट रियासत की राजधानी हुआ करता थी और थे राजा बिजली देव । 12 घाटों से मिलकर बनने वाली बघाट रियासत का क्षेत्रफल 36 वर्ग मील में फैला हुआ था। बघाट रियासत के शासक माता शूलिनी को अपनी कुलदेवी के रूप में मानते थे । रियासत के विभिन्न शासकों के काल से ही अपनी कुलदेवी माता शूलिनी देवी की प्रसन्नता के लिए वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता रहा है । गुरु गोविंद सिंह जी ने भी शूलिनी नाम से ही देवी की आराधना की है।
खुशहाली की प्रतीक हैं देवी शूलिनी
माता शूलिनी का मंदिर सोलन शहर के शीली मार्ग पर स्थित है। मान्यता है कि मॉं शूलिनी यदि प्रसन्न रहती हैं तो क्षेत्र में किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा और महामारी का प्रकोप नहीं होता है बल्कि खुशहाली आती है । मंदिर के अंदर माता शूलिनी के अलावा अन्य देवी-देवताओं की भी पूजा होती है जैसे - शिरगुल देवता , माली देवता इत्यादि । मंदिर के अंदर इनकी बड़ी प्रतिमाएं भी विद्यमान हैं।
23 जून से शूलिनी माता का मेला
सोलन क्षेत्र में मनाये जाने वाले सबसे प्रसिद्ध और पारंपरिक मेलों में माता शूलिनी का मेला प्रमुख है जिसमें हिस्सा लेने के लिए देश-प्रदेश से लोग आते हैं। मेले की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा चुका है और यह मेला 23 जून से शुरू होकर 25 जून को संपन्न होगा । विशेष बात है कि बदलते समय के बीच यह मेला आज भी अपनी पुरानी परंपरा और रीति-रिवाज के अनुसार चल रहा है। सोलन की अधिष्ठात्री देवी मां शूलिनी मेले के जरिए शहर के भ्रमण पर निकलती हैं । वापिस आने पर दो दिन के लिए अपनी बहन के पास ठहरती हैं। माता की पालकी शहर के मध्य स्थित माता के एक अन्य मंदिर में तीन दिन तक लोगों के दर्शनार्थ रखी जाती है।
पहले यह मेला केवल एक दिन ही मनाया जाता था लेकिन सोलन की धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने और पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इसे राज्यस्तरीय मेले का दर्जा दिया गया। अब यह मेला हर साल जून माह के तीसरे सप्ताह में तीन दिनों तक मनाया जाता है। मेले में स्थानीय व्यापारी वर्ग एवं सामान्य लोग भी खुलकर दान करते हैं। प्रदेश में अपनी तरह का यह पहला मेला है, जहां 3 दिनों तक सोलन शहर में दर्जनों भंडारे लगते हैं और उत्सव का माहौल रहता है।
अहरार