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सिर्फ रक्षाबंधन को ही खुलते हैं इस मंदिर के कपाट

दुनिया भर में कई ऐसे छोटे बड़े मंदिर हैं जहां हर रोज भक्त भगवान के दर्शन करने पहुंचते हैं  , लेकिन देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले में एक ऐसा मंदिर भी है जहां भक्तों को केवल रक्षाबंधन के दिन ही भगवान् के दर्शन हो पाते हैं। आइये जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा ।  

चमोली का विष्णु मंदिर

भगवान् विष्णु को समर्पित इस मंदिर के कपाट साल में केवल रक्षाबंधन के दिन ही खुलते हैं।  लोग इस मंदिर को वंशीनारायण मंदिर के नाम से जानते हैं। सूर्योदय के साथ मंदिर के कपाट खुलते हैं और सूर्यास्त के बाद इसे सालभर के लिए फिर बंद कर दिया जाता है।

भालू गुफा में भक्त बनाते हैं प्रसाद

चमोली जिले की उर्गम घाटी के पास स्थित इस मंदिर में भगवान नारायण की चतुर्भुज मूर्ति और कल्याणकारी शिव जी की प्रतिमा मौजूद हैं । दस फीट ऊंचे इस मंदिर के पास एक भालू गुफा है, जहां भक्त प्रसाद बनाने के लिए इकट्ठा होते हैं । हर घर से मक्खन आता है और इस मक्खन को प्रसाद में मिलाकर भगवान को परोसा जाता है । मान्यता है कि यह मंदिर उसी स्थान पर बना है जहाँ भगवान विष्णु वामन अवतार से मुक्ति के बाद प्रकट हुए थे।

यहां प्रकट हुए थे विष्णु जी

यह मंदिर बेहद प्राचीन है और उससे भी प्राचीन है इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा । असुरों का राजा बलि महान दानशाली भी था । अपने प्रताप से उसने एक दिन स्वर्ग पर भी अधिकार कर लिया ।  उसका अहंकार दूर करने के लिए विष्णुजी को वामन अवतार में उसके एक यज्ञ में पहुंचना पड़ा और उन्होंने उससे दान स्वरूप तीन पग भूमि मांग ली । प्रभु ने विराट रूप धारण कर एक पग में पृथ्वी और दूसरे में आकाश नाप दिया और पूछा कि तीसरा पग कहां रखना है ? ये देख बलि ने कहा कि दो पग में तो आपने सब कुछ ले लिया...अब तीसरा पग मेरे सिर पर रख दें। बलि की दानशीलता से प्रसन्न होकर तत्क्षण प्रभु ने उसे पाताल लोक का राजा बनाया और उसके आग्रह पर वचन दिया कि जब भी वो सोकर उठे तो साक्षात् मेरे दर्शन हों । इसी वजह से प्रभु को पाताल लोक में रहना पड़ा लेकिन ये सब जानते ही लक्ष्मीजी एक असहाय युवती के रूप में बलि के पास गईं और उन्हें भाई बनकर रक्षासूत्र बांधते हुए एक सहायता का वचन लिया । बलि द्वारा उन्हें बहन मानते ही लक्ष्मी जी वास्तविक रूप में आ गईं और विष्णु जी को वचन से मुक्त करने को कहा । इस तरह प्रभु अपने लोक वापस आ सके।

मान्यता है कि इसी घटना के बाद अर्थात बलि द्वारा माता लक्ष्मी जी से रक्षासूत्र बंधवाने और फिर स्वयं भगवान के अवतार रूप से मुक्त होने के बाद चूंकि विष्णु जी सबसे पहले इसी स्थान पर प्रकट हुए, इसलिए यहां रक्षाबंघन पर्व का विशेष महत्व है ।

आज भी राखी अर्थात रक्षाबंधन बांधते समय जिस मंत्र को बोला जाता है उसमें राजा बलि का नाम आता है।

येन बद्धो बलि राजा, दानवेंद्रो महाबलः

तेन त्वाम रक्ष बध्नामि, रक्षे माचल माचल:

बहनें सबसे पहले विष्णु जी को बांधती हैं राखी

स्थानीय समुदाय के रीति रिवाजके अनुसार यहां की महिलाएं और लड़कियां भाईयों को राखी बांधने से पहले इस मंदिर में पूजा करती हैं और पहले श्री हरि विष्णु को राखी बांधती हैं. मान्यता है कि इस मंदिर में राखी बांधने वालों पर कभी कोई संकट नहीं आता और भाई-बहन को सुख, समृद्धि और सफलता मिलती है।

अक्षरा आर्या