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सनातन संस्कृति का महापर्व दीपावली

अंधकार पर प्रकाश की विजय….

बुराई पर अच्छाई की विजय...

अज्ञानता पर ज्ञान की विजय...

और

निराशा पर आशा की विजय...

 

सनातन संस्कृति का ऐसा महापर्व जब हर ओर दिखाई पड़ती है स्वच्छता, सौम्यता और नवीनता

हिंदू धर्म का ऐसा अनुष्ठान जब हर भारतीय के मन में प्रस्फुटित हो त्याग, भक्ति और सिद्धि

हम भारतीयों का एक ऐसा पर्व जिसका धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व भी  है

दीपावली... यानी ढेर सारे दीपों की कतार

दीपावली....यानी आशा, उल्लास का संचार

और

दीपावली....यानी पर्व-त्योहार की एक बयार

जी हां, दीपावली या दीवाली सिर्फ एक ही त्योहार नहीं है बल्कि ये 5 त्योहारों की एक पूरी श्रृंखला है अर्थात् धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज के साथ ये है एक पंच पर्व। इसीलिए दीपावली एक महापर्व तो है ही, इसमें सबसे महत्वपूर्ण भी है दीपावली का दिन....जब कार्तिक अमावस्या की गहन अँधेरी रात पूर्णिमा से भी अधिक जगमगा उठती है ।

पौराणिक संदर्भ लें तो अयोध्या के राजा राम जब लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे तो उनके स्वागत में अवधवासियों ने खुशियों के दीप जलाये ।

वहीं कृष्ण भक्तिधारा का मत है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था जिससे प्रसन्न मथुरावासियों ने घी के दीये जलाये।

एक अन्य कथा कहती है कि समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी और धन्वंतरि जी प्रकट हुए थे। लक्ष्मी जी ने जब बैकुंठ जाकर श्रीहरि के गले में पुष्पमाला पहनाई तो बैकुंठवासियों ने दीप जलाकर इस विवाह का उत्सव मनाया था।

लक्ष्मी की पूजा गणेश जी के बिना अधूरी है । पुत्र समान गणेश जी हमेशा लक्ष्मी जी के बायें विराजमान रहते हैं । मान्यता है कि जिसके पास ज्ञान होता है उसी के पास धन भी आता है। इसलिये लक्ष्मी पूजा से पहले बुद्धि के देवता गणेश जी का पूजन आवश्यक है। वैसे भी गणेश जी प्रथम पूज्य हैं ।

अब आइये लगे हाथ लक्ष्मी को समझते हैं जो सिर्फ दीप जलाने, आरती करने और घर के द्वार खोलकर रखने भर से नहीं बल्कि पुरुषार्थ, सात्विकता और परिश्रम से प्रसन्न होंगी ।

लक्ष्मी जी धन, भाग्य, शक्ति, विलासिता, सौंदर्य, उर्वरता और शुभता की देवी हैं । ध्यान रखिएगा वो सदाचारियों के घर सिर्फ विश्राम करती हैं, निवास नहीं करतीं क्योंकि उनका दूसरा नाम ही चंचला है । अर्थात अस्थिर रहना ही उनकी प्रवृत्ति है । जब भी वो अपनी भावना के विपरीत स्थिति पाएंगी, चुपचाप चली जाएंगी ।  इसलिए, उसी भावना के अनुरूप हमें ऐसी बुराइयों से बचना चाहिए जो इस महापर्व की शुभता के अनुरूप न हों । इसी तरह जुआं खेलने और नशा करने ही नहीं, बेहिसाब पटाखों से पर्यावरण को दूषित करना कहीं से भी धर्म अनुरूप नहीं है । त्योहार और उत्सव धर्मशास्त्र के अनुसार मनाए जाएं और हम सभी धर्माचरण का आनंद लें सकें । यही दीपावली का संदेश है ।

दीपावली सनातन धर्म की गौरवशाली परम्पराओं के अनुसार हिंदुओं का सबसे पवित्र और सबसे बड़ा पावन पर्व है । हमारी भी कामना है कि सनातन धर्म का ध्वज ब्रह्मांड में यूं ही लहराता रहे ।  

दीपों का ये पावन त्यौहार, आपके लिए लाए खुशियां हज़ार

लक्ष्मी जी विराजें आपके द्वार, हमारी शुभकामनाएं करें स्वीकार!

:- विजय शर्मा