पुराणों के अनुसार श्री गणेश की एक कथा बहुत प्रचलित है। गणेश जी का गज मुख होने के कारण उनका विशेष नाम गजानन पड़ा। गणेश अपने माता-पिता की परिक्रमा करते थे क्योंकि वे उन्हें ही अपनी दुनिया मानते थे और इसलिए वे प्रथम पूज्य बन गये।
सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की पर चंद्रमा मंद-मंद मुस्कुराते रहें उन्हें अपने सौंदर्य पर अभिमान था। गणेशजी समझ गए कि चंद्रमा अभिमान वश उनके स्वरुप का उपहास कर रहे हैं। क्रोध में आकर श्रीगणेश ने चंद्रमा को काले होने का श्राप दे दिया। इसके बाद चंद्रमा को अपनी भूल का एहसास हुआ। जब चंद्रदेव ने भगवान गणेश से क्षमा मांगी तो गणेशजी ने उनकी सुंदरता तो लौटा दी परन्तु चतुर्थी का यह दिन हमेशा चंद्रदेव को दंड देने वाले दिन के रूप में याद किया जाएगा ऐसा श्राप दे दिया। जिसके फल स्वरुप इस दिन को याद कर कोई अन्य व्यक्ति अपने सौंदर्य पर अभिमान नहीं करेगा। जो कोई व्यक्ति भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन भूल वश भी चंद्र दर्शन करेगा, उस पर झूठा आरोप लगेगा। रामचरितमानस के अनुसरा भी इस दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए साथ ही गणेश पुराण और श्रीमद्भागवत के अनुसार श्री कृष्ण पर भी झूठा आरोप लगा था जब उन्होंने इस दिन चंद्र दर्शन किया था।