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नवरात्र में कन्या पूजन का विशेष महत्व है और बिना इसके नवरात्र का व्रत अधूरा माना जाता है। आइये जानते हैं कि कन्या पूजन की शुरुआत दरअसल हुई कैसे ? इस संबंध में एक प्राचीन कथा है कि संतान ना होने की बात से दुखी श्रीधर पंडित ने कन्याओं को भोजन पर आमंत्रित किया और बड़े ही श्रद्धा भाव से भोजन करवाया। पंडित श्रीधर वही हैं जिन्होंने त्रिकुटा पर्वत पर पवित्र गुफा की खोज की थी और उन्हीं की प्रेरणा से भव्य भवन का निर्माण हुआ। उनकी भक्ति और श्रद्धा ने मां वैष्णो देवी को प्रकट होने का माध्यम बनाया। खैर, श्रीधर की श्रद्धा-भक्ति देखकर मां वैष्णो देवी बहुत प्रसन्न हुईं और नवरात्र व्रत पूर्ण करवाने के दौरान स्वयं नौ कन्या के रूप में आकर वहां बैठ गई।
श्रीधर ने उन्हें भोजन करवाया। फिर उन्होंने श्रीधर से पूरे गांव में भंडारा कराने की बात कही और श्रीधर ने ऐसा ही किया। ये कथा नवरात्रि में कन्या पूजन की परंपरा के आरंभ का प्रतीक मानी जाती है। चुंकि मां भगवती कन्या रूप में ही प्रकट हुईं थी इसलिए छोटी कन्याओं को देवी दुर्गा का स्वरूप मानकर उनका पूजन करके ही व्रत का पारण किया जाता है। अपनी सामर्थ्य के अनुसार कन्याओं को भोग लगाकर दक्षिणा देने से देवी अपने भक्तों पर कृपा करती हैं।

