जगत जननी मां दुर्गा आदिशक्ति हैं, कभी काली तो कभी दुर्गा के रूप में मां भगवती ने सृष्टि पर आई विपदा को हमेशा दूर किया है। आज हम जानेंगे की देवी दुर्गा का प्राकट्य कैसे हुआ। एक पौराणिक कथा है कि जब देवता असुरों के अत्याचार से परेशान हो गए तब उन्होंने त्रिदेवों का आवाह्न किया तो त्रिदेव प्रकट हुए फिर सभी देवताओं के शरीर से तेज निकला और उस शक्ति ने एकत्रित होकर एक नारी का रूप ले लिया। भगवान शिव के तेज से माता का मुख प्रकट हुआ, श्रीहरि के तेज से भुजाएं, ब्रह्मा से माता के चरण। यमराज के तेज से देवी के केश और चंद्रदेव के तेज से वक्षस्थल, इंद्र से देवी की कमर, सूर्य भगवान के तेज से दोनों पैरों की अंगुलियां और इसी तरह सभी देवताओं के तेज से मां भगवती के अलग-अलग अंगों ने आकार लिया। सभी ने अपनी शक्तियों से देवी को अस्त्र-शस्त्र भेंट किए।
इस तरह देवी का प्राक्ट्य हुआ। एक समय महिषासुर ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर वरदान लिया कि कोई पशु या पुरुष उसका अंत ना कर सके। महिषासुर के आतंक से सभी देवताओं को बचाने के लिए इंद्र के दरबार में मां भगवती ने उसका अंत किया और महिषासुरमर्दिनी कहलाईं। ठीक इसी तरह दुर्गमासुर के आतंक से स्वर्ग और पृथ्वी को मुक्त कराने के लिए मां ने दुर्गमासुर का वध किया और दुर्गा के नाम से विख्यात हुईं।