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क्यों मनाते हैं धनतेरस ? जानिये, इस दिन क्या करें और क्या न करें !

हिन्दू पंचांग के अनुसार कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। यह पांच दिन चलने वाले दीपावली उत्सव का पहला दिन होता है। धनतेरस से ही तीन दिन तक चलने वाला गोत्रिरात्र व्रत भी शुरू होता है। इस दिन भगवान शंकर की विशेष पूजा अर्चना का भी विधान है क्योंकि त्रयोदशी तिथि के कारण ये दिन मासिक शिवरात्रि का भी दिन होता है। प्रदोष काल में महादेव की पूजा करने और शिवालय में दीपदान का इस दिन बड़ा महत्व बताया गया है।

 

धन तेरस से जुड़ी मान्यताएं :

धन तेरस के दिन समुद्र मंथन से भगवान नारायण के अवतार और आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि जी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। अमृत कलश से अमृत का पान करके देवता अमर हो गए थे। इसीलिए दीर्घायु और स्वास्थ्य की कामना हेतु इस दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन किया जाता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि के अवतरित होने के कारण को आयुर्वेद  दिवस घोषित किया गया है। धन्वंतरि देवताओं के चिकित्सक हैं और चिकित्साकर्म के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए भी धनतेरस का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। देखा जाए तो धन्वंतरि के बताए गए मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी उपाय अपनाना ही धनतेरस का प्रायोजन है।

 

धन्वंतरि के अलावा इस दिन यमराज, कुबेर देवता और गणेश-लक्ष्मी की भी पूजा होती है। कहते हैं कि धनतेरस के दिन संध्याकाल के समय यमराज के निमित्त मिट्टी का कच्चा या आटे का चौमुखी सरसों के तेल का दीपक दक्षिण दिशा ओर जलाना चाहिए। जहां यम दीप दान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती है। श्रीसूक्त में वर्णन है कि लक्ष्मीजी भय और शोक से मुक्ति दिलाती हैं तथा धन-धान्य और अन्य सुविधाओं से युक्त करके मनुष्य को निरोगी काया और लंबी आयु देती हैं। कुबेर भी आसुरी प्रवृत्तियों का हरण करने वाले देव हैं, इसीलिए उनकी पूजा का प्रचलन है। धन्वंतरि और मां लक्ष्मी का अवतरण समुद्र मंथन से हुआ था। दोनों ही कलश लेकर अवतरित हुए थे।

 

नई खरीदारी की परंपरा :

इस दिन पुराने बर्तनों को बदल कर नए बर्तन खरीदे जाते हैं। यथाशक्ति तांबे, पीतल, चांदी के गृह-उपयोगी नवीन बर्तन व आभूषण खरीदते हैं। अब धनतेरस के दिन बर्तन और आभूषणों के अलावा वाहन, कम्प्यूटर, मोबाइल आदि भी खरीदे जाने लगे हैं। हालांकि अधिकतर लोग धनतेरस पर सोने या चांदी (रजत) के सिक्के खरीदते हैं या पीतल एवं चांदी के बर्तन खरीदते हैं, क्योंकि इन्हें खरीदना शुभ माना जाता है। इसके अलावा इस दिन नया वस्त्र, दीपावली पूजन हेतु लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति, चीनी के खिलौने, खील-बताशे, झाड़ू इत्यादि भी खरीदे जाते हैं। इस दिन कुछ मात्रा में साबुत धनिया भी खरीदा जाता है जिसे संभालकर पूजा घर में रख दिया जाता है और दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों, गमलों या खेतों में बोते हैं।

 

तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त

  • तिथि: 18 अक्तूबर 2025 (शनिवार)

  • प्रदोष काल: सायं 5:48 बजे से रात्रि 8:20 बजे तक

  • वृषभ काल: सायं 7:16 बजे से रात्रि 9:11 बजे तक

  • धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त: सायं 7:16 बजे से रात्रि 8:20 बजे तक

  • पूजा के लिए उत्तम समय: वृषभ काल में ही पूजा करना श्रेष्ठ माना जाता है

  • पूज्य देवी-देवता: भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी, कुबेर जी और भगवान शिव

 

धनतेरस पर क्या खरीदें

  • चांदी या सोने के सिक्के  मां लक्ष्मी और कुबेर जी का प्रतीक माने जाते हैं

  • खासकर पीतल, तांबे या चांदी के बर्तन जो कि समृद्धि का प्रतीक हैं

  • नई झाड़ू को मां लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है जिससे दरिद्रता दूर होती है 

  • वाहन, मोबाइल, लैपटॉप या घरेलू उपकरण आदि भी खरीदे जा सकते हैं

 

धनतेरस पर क्या न खरीदें

  • कांच के सामान नाजुक होते हैं और टूटने की संभावना से अशुभ माने जाते हैं

  • एल्यूमिनियम, लोहे और स्टिल के बर्तन को अशुद्ध धातु माना गया है

  • काले कपड़े, जूते इत्यादि जो नकारात्मकता से जुड़े माने जाते हैं

  • छुरी, कैंची या चाकू जैसी नुकीली वस्तुएं क्लेश और कटुता का प्रतीक मानी जाती हैं

 

:- रमन शर्मा