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मंगलवार व्रत कथा: भक्ति, विश्वास और चमत्कार की पवित्र कथा

भारतीय संस्कृति में व्रत केवल धर्म का पालन नहीं, बल्कि श्रद्धा, विश्वास और धैर्य की परीक्षा माना जाता है। जब मनुष्य सच्चे मन से पूजा करता है, तो उसके भीतर की सकारात्मक शक्तियाँ जागृत होती हैं और जीवन की कठिन से कठिन समस्याएँ भी सरल हो जाती हैं। इसी भक्ति की शक्ति को दर्शाती है मंगलवार व्रत की यह पावन कथा।

ऋषिनगर में केशवदत्त नाम के एक ब्राह्मण अपनी पत्नी अंजलि के साथ रहते थे। घर में धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं थी, लेकिन संतान न होने के कारण दोनों मन से बहुत दुखी रहते थे। पति-पत्नी हर मंगलवार को पूरी श्रद्धा से हनुमानजी का व्रत और पूजा करते थे।

कई वर्ष गुजर गए  पर संतान न मिलने से केशवदत्त निराश हो गया। फिर भी उसने व्रत करना नहीं छोड़ा क्योंकि उसके मन में श्रद्धा अडिग थी। एक दिन वह जंगल में पूजा करने चला गया। घर पर अंजलि भी पूरे नियम से मंगलवार का व्रत करती रही। एक मंगलवार ऐसा आया जब अंजलि किसी कारणवश हनुमान जी को भोग नहीं लगा पाई और सूर्यास्त के बाद भूखी ही सो गई। अगले मंगलवार उसने प्रण लिया कि भोग लगाए बिना भोजन नहीं करेगी। इस संकल्प के कारण वह छह दिन भूखी-प्यासी रही।

सातवें दिन मंगलवार की पूजा करते समय वह बेहोश हो गई। उसी क्षण हनुमानजी ने उसे दर्शन दिए और कहा कि, “उठो पुत्री! मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूँ। तुम्हें सुंदर पुत्र प्राप्त होगा।’’ अंजलि जागी, उसने हनुमानजी को भोग लगाया और फिर भोजन किया। कुछ समय बाद हनुमानजी की कृपा से उसे एक सुंदर पुत्र प्राप्त हुआ। चूँकि वह मंगलवार को जन्मा था, इसलिए उसका नाम मंगलप्रसाद रखा गया।

कुछ दिनों बाद केशवदत्त घर लौटा। उसने बच्चे को देखा तो आश्चर्य से भर गया और अंजलि से पूछा कि यह बच्चा किसका है। अंजलि ने पूरी कथा सुनाई, लेकिन संदेह से ग्रसित केशवदत्त को सहसा विश्वास नहीं हुआ। संदेह के कारण उसका विवेक अंधा हो गया और उसने बच्चे को मारने की सोची। एक दिन वह बालक मंगल को लेकर गया और उसे कुएं में फेंक दिया। लेकिन जैसे ही वह घर पहुँचा, मंगल दौड़ता हुआ अंदर आया। यह देखकर वह दंग रह गया। उसी रात हनुमानजी ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि, “तुम दोनों की भक्ति देखकर ही मैंने पुत्र का वरदान दिया था। फिर अपनी पत्नी पर संदेह क्यों किया?” यह सुनकर केशवदत्त को अपनी भूल का गहरा अहसास हुआ। उसने अंजलि से क्षमा माँगी और अपने पुत्र को गले लगा लिया। इसके बाद परिवार प्रेम, श्रद्धा और शांति से रहने लगा।

यह कथा हमें सिखाती है कि, सच्ची भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती। विश्वास और निष्ठा से किए गए व्रत का फल अवश्य मिलता है और संदेह हमेशा संबंधों में दुख ही लाता है। कहते हैं कि मंगलवार का व्रत करके इस कथा का श्रवण करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर होते हैं और घर में सुख-शांति आती है।

: - वर्तिका श्रीवास्तव

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मंगलवार व्रत कथा: भक्ति, विश्वास और चमत्कार की पवित्र कथा

भारतीय संस्कृति में व्रत केवल धर्म का पालन नहीं, बल्कि श्रद्धा, विश्वास और धैर्य की परीक्षा माना जाता है। जब मनुष्य सच्चे मन से पूजा करता है, तो उसके भीतर की सकारात्मक शक्तियाँ जागृत होती हैं और जीवन की कठिन से कठिन समस्याएँ भी सरल हो जाती हैं। इसी भक्ति की शक्ति को दर्शाती है मंगलवार व्रत की यह पावन कथा।

ऋषिनगर में केशवदत्त नाम के एक ब्राह्मण अपनी पत्नी अंजलि के साथ रहते थे। घर में धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं थी, लेकिन संतान न होने के कारण दोनों मन से बहुत दुखी रहते थे। पति-पत्नी हर मंगलवार को पूरी श्रद्धा से हनुमानजी का व्रत और पूजा करते थे।

कई वर्ष गुजर गए  पर संतान न मिलने से केशवदत्त निराश हो गया। फिर भी उसने व्रत करना नहीं छोड़ा क्योंकि उसके मन में श्रद्धा अडिग थी। एक दिन वह जंगल में पूजा करने चला गया। घर पर अंजलि भी पूरे नियम से मंगलवार का व्रत करती रही। एक मंगलवार ऐसा आया जब अंजलि किसी कारणवश हनुमान जी को भोग नहीं लगा पाई और सूर्यास्त के बाद भूखी ही सो गई। अगले मंगलवार उसने प्रण लिया कि भोग लगाए बिना भोजन नहीं करेगी। इस संकल्प के कारण वह छह दिन भूखी-प्यासी रही।

सातवें दिन मंगलवार की पूजा करते समय वह बेहोश हो गई। उसी क्षण हनुमानजी ने उसे दर्शन दिए और कहा कि, “उठो पुत्री! मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूँ। तुम्हें सुंदर पुत्र प्राप्त होगा।’’ अंजलि जागी, उसने हनुमानजी को भोग लगाया और फिर भोजन किया। कुछ समय बाद हनुमानजी की कृपा से उसे एक सुंदर पुत्र प्राप्त हुआ। चूँकि वह मंगलवार को जन्मा था, इसलिए उसका नाम मंगलप्रसाद रखा गया।

कुछ दिनों बाद केशवदत्त घर लौटा। उसने बच्चे को देखा तो आश्चर्य से भर गया और अंजलि से पूछा कि यह बच्चा किसका है। अंजलि ने पूरी कथा सुनाई, लेकिन संदेह से ग्रसित केशवदत्त को सहसा विश्वास नहीं हुआ। संदेह के कारण उसका विवेक अंधा हो गया और उसने बच्चे को मारने की सोची। एक दिन वह बालक मंगल को लेकर गया और उसे कुएं में फेंक दिया। लेकिन जैसे ही वह घर पहुँचा, मंगल दौड़ता हुआ अंदर आया। यह देखकर वह दंग रह गया। उसी रात हनुमानजी ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि, “तुम दोनों की भक्ति देखकर ही मैंने पुत्र का वरदान दिया था। फिर अपनी पत्नी पर संदेह क्यों किया?” यह सुनकर केशवदत्त को अपनी भूल का गहरा अहसास हुआ। उसने अंजलि से क्षमा माँगी और अपने पुत्र को गले लगा लिया। इसके बाद परिवार प्रेम, श्रद्धा और शांति से रहने लगा।

यह कथा हमें सिखाती है कि, सच्ची भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती। विश्वास और निष्ठा से किए गए व्रत का फल अवश्य मिलता है और संदेह हमेशा संबंधों में दुख ही लाता है। कहते हैं कि मंगलवार का व्रत करके इस कथा का श्रवण करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर होते हैं और घर में सुख-शांति आती है।

: - वर्तिका श्रीवास्तव