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अष्टलक्ष्मी: जीवन की आठ दिव्य समृद्धियां

 

भारतीय संस्कृति में नारी को केवल एक प्राणी मात्र नहीं, बल्कि शक्ति का प्रतीक माना गया है। जैसे देवी अपने विभिन्न रूपों से संसार को सँभालती हैं, वैसे ही स्त्री भी अपने अलग-अलग रूपों से परिवार और समाज को मजबूत बनाती है। वह कभी माँ बनकर सृजन करती है, कभी गुरु बनकर मार्ग दिखाती है और कठिन समय में संबल बनकर खड़ी हो जाती है। उसके अंदर समर्पण, करुणा, ज्ञान, धैर्य और समृद्धि का संगम होता है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यही दिव्यता अष्टलक्ष्मी के रूप में नारी के अंदर की शक्तियों को दर्शाती है, जो जीवन को संतुलित और संपन्न बनाती हैं। आइये, जानते हैं अष्टलक्ष्मी की महिमा ।

 

आदि लक्ष्मी : सृष्टि की मूल ऊर्जा

आदि लक्ष्मी को सृष्टि की प्रारंभिक शक्ति माना जाता है। वे मन, तन और आत्मा को स्थिरता व शांति प्रदान करती हैं। उनका स्मरण हमें यह समझाता है कि जीवन का अंतिम लक्ष्य केवल धन-संपदा नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और मोक्ष की ओर बढ़ना है।

 

धन लक्ष्मी : धन और सौभाग्य की देवी

धन लक्ष्मी केवल सोना-चांदी देने वाली देवी नहीं हैं, वह परिश्रम, बुद्धिमत्ता, अवसर और सही निर्णय लेने की शक्ति भी प्रदान करती हैं। उनका आशीर्वाद ईमानदार, मेहनती और उदार हृदय वाले लोगों पर अधिक होता है।

 

धान्य लक्ष्मी : अन्न और पोषण की देवी

धान्य लक्ष्मी जीवन को पोषित करने वाले अनाज, भोजन और प्रकृति की उपज की संरक्षिका हैं। उनका स्मरण यह सिखाता है कि भोजन ईश्वर का प्रसाद है - इसे कभी व्यर्थ न करें और हमेशा कृतज्ञता के साथ ग्रहण करें।

 

गज लक्ष्मी : पशुधन और समृद्धि की देवी

प्राचीन समय में गाय, बैल, हाथी और अन्य पशु, समाज की आर्थिक रीढ़ माने जाते थे। गज लक्ष्मी का स्वरूप हमें यह संदेश देता है कि प्रकृति और पशु-पक्षियों के साथ प्रेम, करुणा और संतुलन बनाए रखना ही सच्ची समृद्धि है।

 

संतान लक्ष्मी : परिवार और सृजन की देवी

यह रूप मातृत्व, बच्चों के स्वास्थ्य, परिवार के प्रेम और स्नेह का प्रतीक है। जहाँ घर-परिवार में सौहार्द और एकता होती है, वहाँ संतान लक्ष्मी का वास माना जाता है। वह केवल संतान देने वाली ही नहीं, बल्कि परिवार को खुशहाल रखने वाली देवी भी हैं।

 

वीर लक्ष्मी : साहस और धैर्य की देवी

जीवन की कठिन परिस्थितियों में हमें मजबूत बनाए रखने का सामर्थ्य वीर लक्ष्मी देती हैं। वह प्रेरणा देती हैं कि सच्ची वीरता केवल युद्ध में नहीं, बल्कि जीवन की चुनौतियों का डटकर सामना करने में है। धैर्य, हिम्मत और स्थिर मन उनका आशीर्वाद है।

 

विद्या लक्ष्मी : ज्ञान और बुद्धि की देवी

विद्या लक्ष्मी ज्ञानार्जन, सीखने और सही निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करती हैं। वह केवल पुस्तकीय ज्ञान ही नहीं, बल्कि व्यवहारिक समझ, विनम्रता और अनुभव की बुद्धि भी देती हैं। उनका आशीर्वाद जीवन को प्रकाशमान और संतुलित बनाता है।

 

विजया लक्ष्मी : सफलता और विजय की देवी

जीवन के संघर्षों में विजय दिलाने वाली देवी हैं विजया लक्ष्मी। चाहे परीक्षा हो, नौकरी, व्यापार या कोई लक्ष्य, इनकी कृपा से प्रयास सफल होते हैं। यह सिखाती हैं कि निरंतर परिश्रम और सकारात्मक सोच, हर स्थिति में विजय का मार्ग दिखाती हैं।

 

अष्टलक्ष्मी के आठ स्वरूप हमें यह समझाते हैं कि समृद्धि केवल धन से नहीं, बल्कि जीवन की हर छोटी-बड़ी परिघटनाओं से मिलकर बनती है। जब एक स्त्री संतुलित, सम्मानित और समर्थ होती है, तब पूरा समाज प्रकाशित होता है, क्योंकि नारी केवल परिवार की संचालक ही नहीं, बल्कि संस्कार, संस्कृति और समृद्धि की वाहक भी है। इसीलिए कहा गया है कि जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहाँ देवताओं के सभी रूपों की स्वयं उपस्थिति हो जाती है।

 

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ॥

 

अर्थात - जिस स्थान पर स्त्रियों की पूजा की जाती है और उनका सत्कार किया जाता है, उस स्थान पर देवता सदा निवास करते हैं और प्रसन्न रहते हैं जहाँ ऐसा नहीं होता है, वहाँ सभी धर्म और कर्म निष्फ़ल होते हैं|

 

: - वर्तिका श्रीवास्तव

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अष्टलक्ष्मी: जीवन की आठ दिव्य समृद्धियां

 

भारतीय संस्कृति में नारी को केवल एक प्राणी मात्र नहीं, बल्कि शक्ति का प्रतीक माना गया है। जैसे देवी अपने विभिन्न रूपों से संसार को सँभालती हैं, वैसे ही स्त्री भी अपने अलग-अलग रूपों से परिवार और समाज को मजबूत बनाती है। वह कभी माँ बनकर सृजन करती है, कभी गुरु बनकर मार्ग दिखाती है और कठिन समय में संबल बनकर खड़ी हो जाती है। उसके अंदर समर्पण, करुणा, ज्ञान, धैर्य और समृद्धि का संगम होता है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यही दिव्यता अष्टलक्ष्मी के रूप में नारी के अंदर की शक्तियों को दर्शाती है, जो जीवन को संतुलित और संपन्न बनाती हैं। आइये, जानते हैं अष्टलक्ष्मी की महिमा ।

 

आदि लक्ष्मी : सृष्टि की मूल ऊर्जा

आदि लक्ष्मी को सृष्टि की प्रारंभिक शक्ति माना जाता है। वे मन, तन और आत्मा को स्थिरता व शांति प्रदान करती हैं। उनका स्मरण हमें यह समझाता है कि जीवन का अंतिम लक्ष्य केवल धन-संपदा नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और मोक्ष की ओर बढ़ना है।

 

धन लक्ष्मी : धन और सौभाग्य की देवी

धन लक्ष्मी केवल सोना-चांदी देने वाली देवी नहीं हैं, वह परिश्रम, बुद्धिमत्ता, अवसर और सही निर्णय लेने की शक्ति भी प्रदान करती हैं। उनका आशीर्वाद ईमानदार, मेहनती और उदार हृदय वाले लोगों पर अधिक होता है।

 

धान्य लक्ष्मी : अन्न और पोषण की देवी

धान्य लक्ष्मी जीवन को पोषित करने वाले अनाज, भोजन और प्रकृति की उपज की संरक्षिका हैं। उनका स्मरण यह सिखाता है कि भोजन ईश्वर का प्रसाद है - इसे कभी व्यर्थ न करें और हमेशा कृतज्ञता के साथ ग्रहण करें।

 

गज लक्ष्मी : पशुधन और समृद्धि की देवी

प्राचीन समय में गाय, बैल, हाथी और अन्य पशु, समाज की आर्थिक रीढ़ माने जाते थे। गज लक्ष्मी का स्वरूप हमें यह संदेश देता है कि प्रकृति और पशु-पक्षियों के साथ प्रेम, करुणा और संतुलन बनाए रखना ही सच्ची समृद्धि है।

 

संतान लक्ष्मी : परिवार और सृजन की देवी

यह रूप मातृत्व, बच्चों के स्वास्थ्य, परिवार के प्रेम और स्नेह का प्रतीक है। जहाँ घर-परिवार में सौहार्द और एकता होती है, वहाँ संतान लक्ष्मी का वास माना जाता है। वह केवल संतान देने वाली ही नहीं, बल्कि परिवार को खुशहाल रखने वाली देवी भी हैं।

 

वीर लक्ष्मी : साहस और धैर्य की देवी

जीवन की कठिन परिस्थितियों में हमें मजबूत बनाए रखने का सामर्थ्य वीर लक्ष्मी देती हैं। वह प्रेरणा देती हैं कि सच्ची वीरता केवल युद्ध में नहीं, बल्कि जीवन की चुनौतियों का डटकर सामना करने में है। धैर्य, हिम्मत और स्थिर मन उनका आशीर्वाद है।

 

विद्या लक्ष्मी : ज्ञान और बुद्धि की देवी

विद्या लक्ष्मी ज्ञानार्जन, सीखने और सही निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करती हैं। वह केवल पुस्तकीय ज्ञान ही नहीं, बल्कि व्यवहारिक समझ, विनम्रता और अनुभव की बुद्धि भी देती हैं। उनका आशीर्वाद जीवन को प्रकाशमान और संतुलित बनाता है।

 

विजया लक्ष्मी : सफलता और विजय की देवी

जीवन के संघर्षों में विजय दिलाने वाली देवी हैं विजया लक्ष्मी। चाहे परीक्षा हो, नौकरी, व्यापार या कोई लक्ष्य, इनकी कृपा से प्रयास सफल होते हैं। यह सिखाती हैं कि निरंतर परिश्रम और सकारात्मक सोच, हर स्थिति में विजय का मार्ग दिखाती हैं।

 

अष्टलक्ष्मी के आठ स्वरूप हमें यह समझाते हैं कि समृद्धि केवल धन से नहीं, बल्कि जीवन की हर छोटी-बड़ी परिघटनाओं से मिलकर बनती है। जब एक स्त्री संतुलित, सम्मानित और समर्थ होती है, तब पूरा समाज प्रकाशित होता है, क्योंकि नारी केवल परिवार की संचालक ही नहीं, बल्कि संस्कार, संस्कृति और समृद्धि की वाहक भी है। इसीलिए कहा गया है कि जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहाँ देवताओं के सभी रूपों की स्वयं उपस्थिति हो जाती है।

 

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ॥

 

अर्थात - जिस स्थान पर स्त्रियों की पूजा की जाती है और उनका सत्कार किया जाता है, उस स्थान पर देवता सदा निवास करते हैं और प्रसन्न रहते हैं जहाँ ऐसा नहीं होता है, वहाँ सभी धर्म और कर्म निष्फ़ल होते हैं|

 

: - वर्तिका श्रीवास्तव