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सफला एकादशी व्रत : विष्णुजी की कृपा पाने का दिन

 

एकादश्यां तु यो भक्ता: कुर्वन्ति नियत: शुचि:।

ते यांति परमं स्थानं विष्णो: परमपूजितम्।।

 

(भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि जो भक्त एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा और नियम से करता है, वह भगवान विष्णु के परम धाम को प्राप्त करता है।)

हिंदू पंचांग में एकादशी तिथि का विशेष महत्व माना गया है। हर माह में दो एकादशी आती हैं ।  एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है। इस वर्ष सफला एकादशी का व्रत 15 दिसंबर 2025 को रखा जाएगा और व्रत का पारण 16 दिसंबर की सुबह किया जाएगा। ‘सफला’ शब्द का अर्थ होता है फलदायी या सफलता देने वाली। इस व्रत को करने से व्यक्ति के असफल कार्य सफल होते हैं और उसे अपने पापों से मुक्ति मिलती है।

 

सफला एकादशी व्रत का महत्व

सफला एकादशी को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का विशेष दिन माना गया है। कहा गया है कि इस दिन यदि कोई व्यक्ति सच्चे भाव से व्रत करता है, तो उसके जीवन में रुके हुए कार्य सिद्ध होते हैं और उसे सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

 

व्रत विधि एवं नियम

एकादशी के दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की आराधना करें और उन्हें तुलसी, पीले फूल, धूप और फल अर्पित करें। याद रखें की इस दिन किसी भी प्रकार से चावल खाना या दान करना मना किया गया है । साथ ही हर एकादशी व द्वादशी में तुलसी के पत्ते तोड़ना वर्जित होता है । भोग लगाने के लिए एक दिन पहले तुलसी पत्र तोड़ कर रख लें। इस दिन विष्णु सहस्रनाम, भगवद गीता का पाठ और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाता है। सफला एकादशी की रात दीपदान करना अज्ञान के अंधकार को मिटाकर ज्ञान के प्रकाश का संचार करता है। व्रत का पारण द्वादशी तिथि में करें, यानी अगले दिन सूर्योदय के बाद ही व्रत खोलें।

 

सफला एकादशी की कथा

चम्पावती नाम की नगरी में महिष्मान नाम का राजा रहता था। उसके चार पुत्र थे। उनमें सबसे बड़ा पुत्र लुम्पक बहुत दुष्ट और पापी था। वह अपना समय गलत कामों में बिताता था।  परस्त्री गमन, वेश्याओं पर धन खर्च करना, चोरी करना और देवता - ब्राह्मणों की निंदा करना। जब राजा को उसके बारे में पता चला तो उन्होंने उसे राज्य से बाहर निकाल दिया। अब लुम्पक सोचने लगा कि वह कहाँ जाए और क्या करे?

आख़िरकार उसने चोरी करने का निश्चय किया। दिन में वह पास के जंगल में रहता और रात को अपने ही पिता की नगरी में जाकर चोरी करता, लोगों को परेशान करता और कभी-कभी मार भी देता। जंगल में वह पशु और पक्षियों को मारकर खा लेता था। कई बार लोग उसे पकड़ लेते पर राजा के डर से छोड़ देते। जंगल में एक बहुत पुराना और विशाल पीपल का पेड़ था जिसकी लोग भक्ति भाव से पूजा किया करते थे। देवताओं का क्रीड़ा-स्थल कहा जाने वाला वह स्थान अत्यंत पवित्र माना जाता था। उसी पीपल के नीचे लुम्पक रहता था।

कुछ समय बाद पौष मास की कृष्ण पक्ष की दशमी आई। रात बहुत ठंडी थी और लुम्पक के पास कपड़े भी नहीं थे। ठंड से उसके हाथ और पैर अकड़ गए और वह रात भर सो नहीं सका। सुबह तक वह मूर्छित होकर गिर पड़ा। अगले दिन जब एकादशी आई, तब दोपहर में सूरज की हल्की गर्मी से उसकी मूर्छा दूर हुई। कमज़ोर और भूखा लुम्पक भोजन के लिए निकला। उस दिन वह किसी पशु को मार नहीं पाया, इसलिए पेड़ों के नीचे गिरे कुछ फल उठाकर वापस उसी पीपल के नीचे आ गया।

सूर्य अस्त होने के बाद उसने फल पेड़ के नीचे रखकर कहा कि “हे भगवान, ये फल मैं आपको अर्पित करता हूँ। आप ही इन्हें स्वीकार कीजिए।” वह भूखा था फिर भी फल नहीं खाया और पूरी रात जागता रहा। उसका यह अनजाने में किया हुआ उपवास और रात भर जागरण भगवान विष्णु को बहुत प्रिय लगा। अगली सुबह एक दिव्य और सुंदर घोड़ा उसके सामने आकर खड़ा हो गया और उसी समय आकाशवाणी हुई कि “हे राजपुत्र! श्रीनारायण की कृपा से तेरे पाप नष्ट हो गए। अब तू अपने पिता के पास जाकर राज्य प्राप्त कर।” ऐसी वाणी सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और दिव्य वस्त्र धारण करके ‘भगवन आपकी जय हो’ कहकर अपने पिता के पास गया। उसके पिता ने प्रसन्न होकर उसे समस्त राज्य का भार सौंप दिया और वन का रास्ता लिया जिसके बाद लुम्पक शास्त्रानुसार राज्य करने लगा। उसकी स्त्री, पुत्र आदि सारा कुटुम्ब भगवान नारायण का परम भक्त हो गया। वृद्ध होने पर वह भी अपने पुत्र को राज्य का भार सौंपकर वन में तपस्या करने चला गया और अंत समय में वैकुंठ को प्राप्त हुआ।

जो मनुष्य श्रद्धा से सफला एकादशी का व्रत करते हैं उनसे भगवान बहुत प्रसन्न होते हैं। उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में उन्हें मुक्ति मिलती है। इस कथा का पाठ या श्रवण करने से अमोघ फल की प्राप्ति होती है। सफला एकादशी बताती है कि भगवान सच्चे मन से किए गए हर कार्य को स्वीकार करते हैं।

 

: - वर्तिका श्रीवास्तव

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सफला एकादशी व्रत : विष्णुजी की कृपा पाने का दिन

 

एकादश्यां तु यो भक्ता: कुर्वन्ति नियत: शुचि:।

ते यांति परमं स्थानं विष्णो: परमपूजितम्।।

 

(भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि जो भक्त एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा और नियम से करता है, वह भगवान विष्णु के परम धाम को प्राप्त करता है।)

हिंदू पंचांग में एकादशी तिथि का विशेष महत्व माना गया है। हर माह में दो एकादशी आती हैं ।  एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है। इस वर्ष सफला एकादशी का व्रत 15 दिसंबर 2025 को रखा जाएगा और व्रत का पारण 16 दिसंबर की सुबह किया जाएगा। ‘सफला’ शब्द का अर्थ होता है फलदायी या सफलता देने वाली। इस व्रत को करने से व्यक्ति के असफल कार्य सफल होते हैं और उसे अपने पापों से मुक्ति मिलती है।

 

सफला एकादशी व्रत का महत्व

सफला एकादशी को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का विशेष दिन माना गया है। कहा गया है कि इस दिन यदि कोई व्यक्ति सच्चे भाव से व्रत करता है, तो उसके जीवन में रुके हुए कार्य सिद्ध होते हैं और उसे सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

 

व्रत विधि एवं नियम

एकादशी के दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की आराधना करें और उन्हें तुलसी, पीले फूल, धूप और फल अर्पित करें। याद रखें की इस दिन किसी भी प्रकार से चावल खाना या दान करना मना किया गया है । साथ ही हर एकादशी व द्वादशी में तुलसी के पत्ते तोड़ना वर्जित होता है । भोग लगाने के लिए एक दिन पहले तुलसी पत्र तोड़ कर रख लें। इस दिन विष्णु सहस्रनाम, भगवद गीता का पाठ और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाता है। सफला एकादशी की रात दीपदान करना अज्ञान के अंधकार को मिटाकर ज्ञान के प्रकाश का संचार करता है। व्रत का पारण द्वादशी तिथि में करें, यानी अगले दिन सूर्योदय के बाद ही व्रत खोलें।

 

सफला एकादशी की कथा

चम्पावती नाम की नगरी में महिष्मान नाम का राजा रहता था। उसके चार पुत्र थे। उनमें सबसे बड़ा पुत्र लुम्पक बहुत दुष्ट और पापी था। वह अपना समय गलत कामों में बिताता था।  परस्त्री गमन, वेश्याओं पर धन खर्च करना, चोरी करना और देवता - ब्राह्मणों की निंदा करना। जब राजा को उसके बारे में पता चला तो उन्होंने उसे राज्य से बाहर निकाल दिया। अब लुम्पक सोचने लगा कि वह कहाँ जाए और क्या करे?

आख़िरकार उसने चोरी करने का निश्चय किया। दिन में वह पास के जंगल में रहता और रात को अपने ही पिता की नगरी में जाकर चोरी करता, लोगों को परेशान करता और कभी-कभी मार भी देता। जंगल में वह पशु और पक्षियों को मारकर खा लेता था। कई बार लोग उसे पकड़ लेते पर राजा के डर से छोड़ देते। जंगल में एक बहुत पुराना और विशाल पीपल का पेड़ था जिसकी लोग भक्ति भाव से पूजा किया करते थे। देवताओं का क्रीड़ा-स्थल कहा जाने वाला वह स्थान अत्यंत पवित्र माना जाता था। उसी पीपल के नीचे लुम्पक रहता था।

कुछ समय बाद पौष मास की कृष्ण पक्ष की दशमी आई। रात बहुत ठंडी थी और लुम्पक के पास कपड़े भी नहीं थे। ठंड से उसके हाथ और पैर अकड़ गए और वह रात भर सो नहीं सका। सुबह तक वह मूर्छित होकर गिर पड़ा। अगले दिन जब एकादशी आई, तब दोपहर में सूरज की हल्की गर्मी से उसकी मूर्छा दूर हुई। कमज़ोर और भूखा लुम्पक भोजन के लिए निकला। उस दिन वह किसी पशु को मार नहीं पाया, इसलिए पेड़ों के नीचे गिरे कुछ फल उठाकर वापस उसी पीपल के नीचे आ गया।

सूर्य अस्त होने के बाद उसने फल पेड़ के नीचे रखकर कहा कि “हे भगवान, ये फल मैं आपको अर्पित करता हूँ। आप ही इन्हें स्वीकार कीजिए।” वह भूखा था फिर भी फल नहीं खाया और पूरी रात जागता रहा। उसका यह अनजाने में किया हुआ उपवास और रात भर जागरण भगवान विष्णु को बहुत प्रिय लगा। अगली सुबह एक दिव्य और सुंदर घोड़ा उसके सामने आकर खड़ा हो गया और उसी समय आकाशवाणी हुई कि “हे राजपुत्र! श्रीनारायण की कृपा से तेरे पाप नष्ट हो गए। अब तू अपने पिता के पास जाकर राज्य प्राप्त कर।” ऐसी वाणी सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और दिव्य वस्त्र धारण करके ‘भगवन आपकी जय हो’ कहकर अपने पिता के पास गया। उसके पिता ने प्रसन्न होकर उसे समस्त राज्य का भार सौंप दिया और वन का रास्ता लिया जिसके बाद लुम्पक शास्त्रानुसार राज्य करने लगा। उसकी स्त्री, पुत्र आदि सारा कुटुम्ब भगवान नारायण का परम भक्त हो गया। वृद्ध होने पर वह भी अपने पुत्र को राज्य का भार सौंपकर वन में तपस्या करने चला गया और अंत समय में वैकुंठ को प्राप्त हुआ।

जो मनुष्य श्रद्धा से सफला एकादशी का व्रत करते हैं उनसे भगवान बहुत प्रसन्न होते हैं। उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में उन्हें मुक्ति मिलती है। इस कथा का पाठ या श्रवण करने से अमोघ फल की प्राप्ति होती है। सफला एकादशी बताती है कि भगवान सच्चे मन से किए गए हर कार्य को स्वीकार करते हैं।

 

: - वर्तिका श्रीवास्तव