हिंदू पंचांग के अनुसार साल में दो बार लगता है खरमास । जब सूर्य मार्गी होते हैं तब वह 12 राशियों में भ्रमण करते हैं। इस दौरान बृहस्पति के आधिपत्य वाली राशि धनु और मीन राशि में जब भी सूर्य देव प्रवेश करते हैं तब खरमास लगता है। हर साल दिसम्बर माह में सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करते हैं जबकि मार्च माह में मीन राशि में प्रवेश करते हैं। इस दौरान ही खरमास लगता है। आपको बता दें कि इस दौरान किसी भी मांगलिक कार्य को करने से बचा जाता है। माना जाता है कि इस दौरान सूर्य की गति कमजोर होती है, इसलिए कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए लेकिन सामान्य पूजा-पाठ और आध्यात्मिक साधना के लिए यह समय शुभ माना गया है।
क्या है खरमास की पौराणिक कथा ?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य देव सात घोड़ों से संचालित रथ पर सवार होकर लगातार ब्रह्मांड का चक्कर लगाते हैं। इस निरंतर यात्रा के कारण, उनके घोड़े बहुत थक जाते हैं और प्यासे हो जाते हैं। सूर्य देव अपने घोड़ों की स्थिति देखकर उन्हें एक तालाब के पास ले जाते हैं, लेकिन रथ को रोकना संभव नहीं होता। तब उन्हें तालाब के पास दो गधे (खर) दिखाई देते हैं। सूर्य देव घोड़ों की जगह गधों को जोड़ देते हैं। लेकिन गधों की धीमी गति के कारण सूर्य देव का रथ भी धीमा हो जाता है। यह एक महीने की अवधि गधों द्वारा रथ खींचने की होती है, जिसे “खरमास” कहा जाता है। इस अवधि में सूर्य देव का तेज कमजोर हो जाता है। एक महीने बाद, घोड़े आराम कर चुके होते हैं और सूर्य देव फिर से गधों को छोड़कर घोड़ों को रथ में जोड़ लेते हैं। इसके बाद सूर्य देव फिर से अपनी गति से यात्रा करते हैं ।
खरमास कब लगता है?
इस बार 16 दिसंबर 2025 को सूर्य, वृश्चिक राशि से निकलकर धनु राशि में प्रवेश करेगा। इसी के साथ खरमास शुरू हो जाएगा, जो 14 जनवरी 2026 तक चलेगा। फिर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही मकर संक्रांति के दिन खरमास समाप्त हो जाएगा और सभी मांगलिक कार्य पुनः शुरू किए जा सकेंगे। खारमास के समाप्त होते ही मकर संक्रांति पर्व मनाया जाएगा। भगवान सूर्य की एक स्थान से दूसरे स्थान में जाने की प्रक्रिया को संक्रांति कहते हैं।
खरमास में क्या करना चाहिए ?
खरमास में धार्मिक पुस्तकों को पढ़ना अत्यंत शुभ माना जाता है। आप किसी भी ग्रंथ का संपूर्ण पाठ कर सकते हैं इनका नियमित अध्ययन मन को शांति देता है और जीवन को सकारात्मक बनाता है। दान इस अवधि का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है। श्रद्धा के साथ किया गया दान, तीर्थयात्रा के समान फल देता है। जरूरतमंदों की सहायता, साधु-संतों की सेवा, मंदिरों में दीपक, फूल, तेल, घी, कुंकुम आदि चढ़ाना इत्यादि सभी कार्य अत्यंत पुण्यदायी माने जाते हैं।
खरमास में क्या नहीं करना चाहिए?
इस एक महीने में आमतौर पर शादी-विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार, यज्ञोपवीत, नए व बड़े कार्यों की शुरुआत, नया व्यवसाय या भूमि- भवन की खरीद-बिक्री इत्यादि नहीं करनी चाहिए क्योंकि लोकमान्यताओं के अनुसार यह कार्य खरमास में शुभ प्रभाव नहीं देते। ऐसे में कोई भी कार्य करने के पहले शुभ मुहूर्त का ध्यान रखें।
खरमास में सूर्य पूजा के विशेष लाभ
सुबह स्नान के बाद तांबे के लोटे से सूर्य को अर्घ्य दें और ‘ॐ सूर्याय नमः’मंत्र का जाप करें। यह साधना मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। खरमास केवल ‘मांगलिक कार्य पर रोक’ वाला समय नहीं है, बल्कि स्वयं में सुधार लाने, मन को शांत करने और ईश्वर भक्ति में डूबने का समय है। यह उत्सव की बजाय अपने भीतर आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ाने और दूसरों की सेवा करने का अवसर देता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार साल में दो बार लगता है खरमास । जब सूर्य मार्गी होते हैं तब वह 12 राशियों में भ्रमण करते हैं। इस दौरान बृहस्पति के आधिपत्य वाली राशि धनु और मीन राशि में जब भी सूर्य देव प्रवेश करते हैं तब खरमास लगता है। हर साल दिसम्बर माह में सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करते हैं जबकि मार्च माह में मीन राशि में प्रवेश करते हैं। इस दौरान ही खरमास लगता है। आपको बता दें कि इस दौरान किसी भी मांगलिक कार्य को करने से बचा जाता है। माना जाता है कि इस दौरान सूर्य की गति कमजोर होती है, इसलिए कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए लेकिन सामान्य पूजा-पाठ और आध्यात्मिक साधना के लिए यह समय शुभ माना गया है।
क्या है खरमास की पौराणिक कथा ?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य देव सात घोड़ों से संचालित रथ पर सवार होकर लगातार ब्रह्मांड का चक्कर लगाते हैं। इस निरंतर यात्रा के कारण, उनके घोड़े बहुत थक जाते हैं और प्यासे हो जाते हैं। सूर्य देव अपने घोड़ों की स्थिति देखकर उन्हें एक तालाब के पास ले जाते हैं, लेकिन रथ को रोकना संभव नहीं होता। तब उन्हें तालाब के पास दो गधे (खर) दिखाई देते हैं। सूर्य देव घोड़ों की जगह गधों को जोड़ देते हैं। लेकिन गधों की धीमी गति के कारण सूर्य देव का रथ भी धीमा हो जाता है। यह एक महीने की अवधि गधों द्वारा रथ खींचने की होती है, जिसे “खरमास” कहा जाता है। इस अवधि में सूर्य देव का तेज कमजोर हो जाता है। एक महीने बाद, घोड़े आराम कर चुके होते हैं और सूर्य देव फिर से गधों को छोड़कर घोड़ों को रथ में जोड़ लेते हैं। इसके बाद सूर्य देव फिर से अपनी गति से यात्रा करते हैं ।
खरमास कब लगता है?
इस बार 16 दिसंबर 2025 को सूर्य, वृश्चिक राशि से निकलकर धनु राशि में प्रवेश करेगा। इसी के साथ खरमास शुरू हो जाएगा, जो 14 जनवरी 2026 तक चलेगा। फिर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही मकर संक्रांति के दिन खरमास समाप्त हो जाएगा और सभी मांगलिक कार्य पुनः शुरू किए जा सकेंगे। खारमास के समाप्त होते ही मकर संक्रांति पर्व मनाया जाएगा। भगवान सूर्य की एक स्थान से दूसरे स्थान में जाने की प्रक्रिया को संक्रांति कहते हैं।
खरमास में क्या करना चाहिए ?
खरमास में धार्मिक पुस्तकों को पढ़ना अत्यंत शुभ माना जाता है। आप किसी भी ग्रंथ का संपूर्ण पाठ कर सकते हैं इनका नियमित अध्ययन मन को शांति देता है और जीवन को सकारात्मक बनाता है। दान इस अवधि का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है। श्रद्धा के साथ किया गया दान, तीर्थयात्रा के समान फल देता है। जरूरतमंदों की सहायता, साधु-संतों की सेवा, मंदिरों में दीपक, फूल, तेल, घी, कुंकुम आदि चढ़ाना इत्यादि सभी कार्य अत्यंत पुण्यदायी माने जाते हैं।
खरमास में क्या नहीं करना चाहिए?
इस एक महीने में आमतौर पर शादी-विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार, यज्ञोपवीत, नए व बड़े कार्यों की शुरुआत, नया व्यवसाय या भूमि- भवन की खरीद-बिक्री इत्यादि नहीं करनी चाहिए क्योंकि लोकमान्यताओं के अनुसार यह कार्य खरमास में शुभ प्रभाव नहीं देते। ऐसे में कोई भी कार्य करने के पहले शुभ मुहूर्त का ध्यान रखें।
खरमास में सूर्य पूजा के विशेष लाभ
सुबह स्नान के बाद तांबे के लोटे से सूर्य को अर्घ्य दें और ‘ॐ सूर्याय नमः’मंत्र का जाप करें। यह साधना मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। खरमास केवल ‘मांगलिक कार्य पर रोक’ वाला समय नहीं है, बल्कि स्वयं में सुधार लाने, मन को शांत करने और ईश्वर भक्ति में डूबने का समय है। यह उत्सव की बजाय अपने भीतर आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ाने और दूसरों की सेवा करने का अवसर देता है।