कैसे जन्मे गरुड़ और कैसे बने भगवान विष्णु के वाहन ?
हिंदू पुराणों में गरुड़ की कथा साहस, धैर्य, मातृभक्ति और धर्म के प्रति निष्ठा का अनुपम उदाहरण है। यह कहानी केवल भगवान विष्णु के वाहन की नहीं, बल्कि एक पुत्र के अपने माता के प्रति सम्मान और स्वतंत्रता के लिए किए गए अद्भुत संघर्ष की गाथा है। आखिरकार गरूड़ के जन्म का क्या रहस्य है और कैसे वो भगवान विष्णु के वाहन बन गए ? आइये, इस कथा में जानते हैं।
कथा
ब्रह्मा जी के मानस पुत्र दक्ष प्रजापति की पुत्री विनता का विवाह महर्षि कश्यप से हुआ। कश्यप ऋषि की कई पत्नियां थीं, जिनमें विनिता और कद्रू सगी बहनें थीं लेकिन दोनों के बीच अक्सर ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा बनी रहती थी। एक दिन दोनों संतान न होने के कारण अपने पति कश्यप ऋषि के पास पहुंची। तब विनता ने अंडों से जन्म लेने वाले दो बलशाली पुत्र और कद्रू ने एक हजार सर्प पुत्र का वरदान मांगा।
समय आने पर कद्रू के अंडों से हजारों सर्प निकल आए, लेकिन विनता के अंडे अभी नहीं फूटे थे। जल्दबाजी और अधीरता में विनता ने एक अंडा समय से पहले तोड़ दिया। उसमें से एक अर्धविकसित बालक निकला, जिसका ऊपरी शरीर मनुष्य जैसा था और निचला भाग अधूरा। उसका नाम अरुण रखा गया।
अरुण ने अपनी मां को इस अधीरता भरे कृत्य के लिए श्राप दिया कि उन्हें दासी का जीवन बिताना होगा। डर के कारण विनता ने दूसरा अंडा नहीं तोड़ा। इसी बीच दोनों बहनों के बीच शर्त लग चुकी थी कि जिसके पुत्र अधिक बलशाली होंगे वही विजयी होंगी और हारने वाली दासी बनेगी। कद्रू के पुत्र पहले ही जन्म ले चुके थे, इसलिए विनता को अपनी बहन की दासी बनना पड़ा।
बहुत लंबे समय बाद विनता का दूसरा अंडा फूटा और उससे विशालकाय गरुड़ का जन्म हुआ। गरुड़ का मुख पक्षी जैसा और शरीर मनुष्य के जैसा था । साथ ही उसके विशाल पंख थे। जब गरुड़ को अपनी माता की दासता का कारण पता चला तो उन्होंने अपनी माता की बहन और सर्पों से पूछा कि इस दासत्व से मुक्ति का उपाय क्या है? सर्पों ने शर्त रखी कि यदि गरुड़ समुद्र मंथन से निकले अमृत को उन्हें लाकर देंगे तो वे उनकी मां विनता को श्राप से मुक्त कर देंगे।
माता को श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए गरुड़ स्वर्ग की ओर उड़ चले। लेकिन देवताओं ने अमृत की सुरक्षा के लिए कठोर व्यवस्था की थी - अग्नि का घेरा, घूमते हुए घातक हथियार और विषैले सर्पों का पहरा। गरुड़ ने अपनी सूझबूझ और शक्ति से सभी बाधाओं को पार कर लिया। नदियों का जल लाकर अग्नि बुझाई, सूक्ष्म रूप धारण कर हथियारों से बचाव किया और सर्पों को परास्त कर अमृत कलश उठा लिया।
रास्ते में भगवान विष्णु प्रकट हुए और गरुड़ के निष्काम भाव से प्रसन्न होकर उन्होंने गरुड़ को अमरत्व का वरदान दिया। तभी गरुड़ ने भगवान विष्णु को अपना स्वामी मानते हुए उनका वाहन बनने की इच्छा प्रकट की। इंद्र देव ने भी गरुड़ को सर्पों को भोजन रूप में ग्रहण करने का वरदान दिया।
अंत में गरुड़ अमृत लेकर सर्पों के पास पहुंचे और कलश भूमि पर रख दिया और कहा कि अमृतपान से पहले वो सभी स्नान कर लें। जैसे ही सर्प स्नान के लिए गए, इंद्र देव अमृत कलश को वापस उठा ले गए। कथा के अनुसार तब भूमि पर गिरी कुछ बूंदों को सर्पों ने चाट लिया जिससे उनकी जीभ दो भागों में बंट गई। इस प्रकार गरुड़ ने अपनी शर्त भी पूरी की और सर्पों को अमृत भी प्राप्त नहीं हुआ। विनिता दासत्व से मुक्त हो गईं।
गरुड़ की यह कथा हमें सिखाती है कि धैर्य और धर्म के मार्ग पर चलकर ही सच्ची विजय प्राप्त होती है। अधीरता विनाश का कारण बनती है, जबकि संयम और निस्वार्थ भाव से किया गया कर्म ईश्वर की कृपा दिलाता है। माता के सम्मान और स्वतंत्रता के लिए गरुड़ का संघर्ष कर्तव्य, साहस और भक्ति की प्रेरणा देता है।
कैसे जन्मे गरुड़ और कैसे बने भगवान विष्णु के वाहन ?
हिंदू पुराणों में गरुड़ की कथा साहस, धैर्य, मातृभक्ति और धर्म के प्रति निष्ठा का अनुपम उदाहरण है। यह कहानी केवल भगवान विष्णु के वाहन की नहीं, बल्कि एक पुत्र के अपने माता के प्रति सम्मान और स्वतंत्रता के लिए किए गए अद्भुत संघर्ष की गाथा है। आखिरकार गरूड़ के जन्म का क्या रहस्य है और कैसे वो भगवान विष्णु के वाहन बन गए ? आइये, इस कथा में जानते हैं।
कथा
ब्रह्मा जी के मानस पुत्र दक्ष प्रजापति की पुत्री विनता का विवाह महर्षि कश्यप से हुआ। कश्यप ऋषि की कई पत्नियां थीं, जिनमें विनिता और कद्रू सगी बहनें थीं लेकिन दोनों के बीच अक्सर ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा बनी रहती थी। एक दिन दोनों संतान न होने के कारण अपने पति कश्यप ऋषि के पास पहुंची। तब विनता ने अंडों से जन्म लेने वाले दो बलशाली पुत्र और कद्रू ने एक हजार सर्प पुत्र का वरदान मांगा।
समय आने पर कद्रू के अंडों से हजारों सर्प निकल आए, लेकिन विनता के अंडे अभी नहीं फूटे थे। जल्दबाजी और अधीरता में विनता ने एक अंडा समय से पहले तोड़ दिया। उसमें से एक अर्धविकसित बालक निकला, जिसका ऊपरी शरीर मनुष्य जैसा था और निचला भाग अधूरा। उसका नाम अरुण रखा गया।
अरुण ने अपनी मां को इस अधीरता भरे कृत्य के लिए श्राप दिया कि उन्हें दासी का जीवन बिताना होगा। डर के कारण विनता ने दूसरा अंडा नहीं तोड़ा। इसी बीच दोनों बहनों के बीच शर्त लग चुकी थी कि जिसके पुत्र अधिक बलशाली होंगे वही विजयी होंगी और हारने वाली दासी बनेगी। कद्रू के पुत्र पहले ही जन्म ले चुके थे, इसलिए विनता को अपनी बहन की दासी बनना पड़ा।
बहुत लंबे समय बाद विनता का दूसरा अंडा फूटा और उससे विशालकाय गरुड़ का जन्म हुआ। गरुड़ का मुख पक्षी जैसा और शरीर मनुष्य के जैसा था । साथ ही उसके विशाल पंख थे। जब गरुड़ को अपनी माता की दासता का कारण पता चला तो उन्होंने अपनी माता की बहन और सर्पों से पूछा कि इस दासत्व से मुक्ति का उपाय क्या है? सर्पों ने शर्त रखी कि यदि गरुड़ समुद्र मंथन से निकले अमृत को उन्हें लाकर देंगे तो वे उनकी मां विनता को श्राप से मुक्त कर देंगे।
माता को श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए गरुड़ स्वर्ग की ओर उड़ चले। लेकिन देवताओं ने अमृत की सुरक्षा के लिए कठोर व्यवस्था की थी - अग्नि का घेरा, घूमते हुए घातक हथियार और विषैले सर्पों का पहरा। गरुड़ ने अपनी सूझबूझ और शक्ति से सभी बाधाओं को पार कर लिया। नदियों का जल लाकर अग्नि बुझाई, सूक्ष्म रूप धारण कर हथियारों से बचाव किया और सर्पों को परास्त कर अमृत कलश उठा लिया।
रास्ते में भगवान विष्णु प्रकट हुए और गरुड़ के निष्काम भाव से प्रसन्न होकर उन्होंने गरुड़ को अमरत्व का वरदान दिया। तभी गरुड़ ने भगवान विष्णु को अपना स्वामी मानते हुए उनका वाहन बनने की इच्छा प्रकट की। इंद्र देव ने भी गरुड़ को सर्पों को भोजन रूप में ग्रहण करने का वरदान दिया।
अंत में गरुड़ अमृत लेकर सर्पों के पास पहुंचे और कलश भूमि पर रख दिया और कहा कि अमृतपान से पहले वो सभी स्नान कर लें। जैसे ही सर्प स्नान के लिए गए, इंद्र देव अमृत कलश को वापस उठा ले गए। कथा के अनुसार तब भूमि पर गिरी कुछ बूंदों को सर्पों ने चाट लिया जिससे उनकी जीभ दो भागों में बंट गई। इस प्रकार गरुड़ ने अपनी शर्त भी पूरी की और सर्पों को अमृत भी प्राप्त नहीं हुआ। विनिता दासत्व से मुक्त हो गईं।
गरुड़ की यह कथा हमें सिखाती है कि धैर्य और धर्म के मार्ग पर चलकर ही सच्ची विजय प्राप्त होती है। अधीरता विनाश का कारण बनती है, जबकि संयम और निस्वार्थ भाव से किया गया कर्म ईश्वर की कृपा दिलाता है। माता के सम्मान और स्वतंत्रता के लिए गरुड़ का संघर्ष कर्तव्य, साहस और भक्ति की प्रेरणा देता है।