गायत्री मंत्र : जीवन में ऊर्जा की प्राप्ति का दिव्य माध्यम
मंत्रों की ध्वनि हमारे मन, चित्त और आत्मा पर गहरा प्रभाव डालती है। जन्मों से हमारे भीतर संचित ज्ञान, स्मृतियाँ, भावनाएँ और शक्तियाँ मंत्रों के जप से जागृत हो सकती हैं। इन्हीं मंत्रों में सबसे श्रेष्ठ और पवित्र मंत्र है — गायत्री मंत्र, जिसे चेतना को प्रकाशित करने वाली दिव्य शक्ति माना गया है।
चारों वेदों में ऋग्वेद सबसे प्राचीन है। गायत्री मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद के तीसरे मंडल के 62वें सूक्त के 10वें मंत्र के रूप में मिलता है। ऋग्वेद में देवी को प्रकाश के रूप में देखा गया है। गायत्री मंत्र को सभी वैदिक मंत्रों का बीज माना गया है और मंत्र योग में वेदमाता गायत्री का आह्वान अनिवार्य माना जाता है। सनातन धर्म में गायत्री मंत्र को चार प्रमुख स्तंभों में से एक माना गया है। इसे वेद मंत्र, वेदों की जननी, मंत्र ज्ञानम और वेदों का हृदय भी कहा जाता है।
गायत्री मंत्र की संरचना और अर्थ
तत्वदर्शी महात्माओं के अनुसार वेदों की रचना का आधार गायत्री मंत्र ही है और ऋषियों को प्राप्त ज्ञान इसी से उत्पन्न हुआ है। गायत्री मंत्र को चतुष्पदी कहा गया है, अर्थात इसके चार चरण हैं। ये चार चरण चारों वेदों और मंत्र के चार विरामों के प्रतीक हैं। इस मंत्र का अर्थ अत्यंत गूढ़ और गंभीर है। इसके प्रत्येक अक्षर में इतना विस्तार है कि उस पर अलग-अलग ग्रंथ लिखे जा सकते हैं।
भूर, भुवः, स्वः - अस्तित्व के तीन लोकों, चेतना के तीन स्तरों और प्रकृति के तीन गुणों का संकेत देते हैं।
तत् — वह परम तत्व
सवितुर् — प्रकाश देने वाला, सूर्य
वरेण्यम् — पूजनीय
भर्गो — दिव्य प्रकाश
देवस्य — ईश्वर का
धीमहि — हम ध्यान करते हैं
धियो — बुद्धि
यो नः प्रचोदयात् — जो हमारी बुद्धि को प्रेरित करे
अर्थात, हम उस दिव्य प्रकाश का ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धि को शुद्ध करे और सही मार्ग दिखाए।
गायत्री मंत्र की शक्ति और प्रभाव
गायत्री मंत्र की शक्ति उसके शब्दों, अर्थ और जप करने वाले के भाव में निहित होती है। यह केवल उच्चारण से नहीं, बल्कि उससे उत्पन्न होने वाली सकारात्मक ऊर्जा से प्रभाव डालता है। यह मंत्र बाहरी शोर के बजाय सांसों के बीच भीतर गूंजना चाहिए और विचार बनने से पहले ही मन में स्थापित हो जाना चाहिए।
गायत्री मंत्र केवल धार्मिक नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा देने वाला आध्यात्मिक साधन है। यह अंधकार से प्रकाश, अज्ञान से ज्ञान और भय से विश्वास की ओर ले जाता है। श्रद्धा और सही भाव के साथ नियमित जप से मन शांत होता है, बुद्धि तेज होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है। आज की तेज़ जीवनशैली में यह मंत्र व्यक्ति को भीतर से मजबूत और संतुलित बनाता है।
मंत्र जाप कैसे करना चाहिए ?
गायत्री मंत्र का ज़ोर-ज़ोर से जाप करना उचित नहीं माना गया है। इसका पाठ शांत भाव से, अकेले में और एकाग्र मन से किया जाना चाहिए। परंपरा के अनुसार गायत्री जप वही द्विज व्यक्ति करे जिसने उपनयन संस्कार किया हो।
सामान्य नियम यह है कि प्रतिदिन कम से कम 108 मंत्रों का जप किया जाए। जप के लिए सूर्योदय का समय श्रेष्ठ माना गया है। कुश के आसन पर पूर्व दिशा की ओर बैठकर जप करना चाहिए। शरीर पर धोती के अतिरिक्त वस्त्र न हों, आवश्यकता होने पर कंबल या चादर ओढ़ी जा सकती है। पास में जल पात्र रखकर शांत चित्त से जप किया जाता है। जप के समय स्वर इतना मंद हो कि पास बैठा व्यक्ति भी न सुन सके। साथ ही मन एकाग्र रहे। नित्य लगभग आधा घंटा देकर इस विधि से गायत्री मंत्र के 108 जप आसानी से किए जा सकते हैं।
सवा लक्ष जप से मिलती है सिद्धि
जो व्यक्ति गायत्री मंत्र सिद्धि करना चाहता है, वह विधिपूर्वक सवा लक्ष (सवा लाख) जप करके उसे सिद्ध कर सकता है। देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक के चार महीनों को छोड़कर शेष आठ महीनों में यह अनुष्ठान किया जाना चाहिए। शुक्ल पक्ष की दौज (द्वितीया) शुभ मानी गई है। अनुष्ठान तभी करना चाहिए जब मन स्थिर और शरीर स्वस्थ हो।
प्रातः सूर्योदय से लगभग दो घंटे पहले उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर एकांत, स्वच्छ और हवादार स्थान में जप करना चाहिए। भूमि पर डाभ (कुशा) का आसन, उसके ऊपर कपड़ा, पास में जल पात्र और घी का दीपक रखना चाहिए। जप के लिए तुलसी या चंदन की माला का उपयोग किया जाता है। सूर्य की ओर मुख करके, शुद्ध वस्त्र धारण कर जप करना चाहिए।
जप से पहले कम से कम पाँच प्राणायाम किए जाते हैं, जिससे चित्त स्थिर होता है। इसके बाद ध्यान में सूर्य के सामने कमल पर विराजमान गायत्री माता का आह्वान किया जाता है और फिर मंत्र जप आरंभ होता है। सवालक्ष जप में कुल 1158 मालाएँ जपनी होती हैं। इसे सात, नौ, ग्यारह या पंद्रह दिनों में पूरा किया जा सकता है। जप पूर्ण होने के बाद अगले दिन एक हजार मंत्रों के साथ हवन किया जाता है। हवन के पश्चात भजन, प्रार्थना और प्रसाद वितरण किया जाता है।
अनुष्ठान काल में सात्विक भोजन, ब्रह्मचर्य, भूमि पर शयन, कम बोलना और शुद्ध आचरण आवश्यक बताया गया है। अनुष्ठान पूर्ण होने पर दान देना चाहिए। इस प्रकार सवा लक्ष जप से गायत्री मंत्र सिद्ध होने पर अनेक प्रकार की बाधाएँ और कष्ट दूर होते हैं।
रसव्याहृतिकां सप्रणवां गायत्रीं शिरसा सह। ये जपन्ति सदा तेषां नं भयं विद्यते क्वचित।। शंख स्मृति।।12।14।।
अर्थात - जो सदा गायत्री का जाप व्याहृतियों (उच्चारण) और ॐकार सहित करते हैं उन्हें कहीं भी कोई भय नहीं सताता।
गायत्री मंत्र : जीवन में ऊर्जा की प्राप्ति का दिव्य माध्यम
मंत्रों की ध्वनि हमारे मन, चित्त और आत्मा पर गहरा प्रभाव डालती है। जन्मों से हमारे भीतर संचित ज्ञान, स्मृतियाँ, भावनाएँ और शक्तियाँ मंत्रों के जप से जागृत हो सकती हैं। इन्हीं मंत्रों में सबसे श्रेष्ठ और पवित्र मंत्र है — गायत्री मंत्र, जिसे चेतना को प्रकाशित करने वाली दिव्य शक्ति माना गया है।
चारों वेदों में ऋग्वेद सबसे प्राचीन है। गायत्री मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद के तीसरे मंडल के 62वें सूक्त के 10वें मंत्र के रूप में मिलता है। ऋग्वेद में देवी को प्रकाश के रूप में देखा गया है। गायत्री मंत्र को सभी वैदिक मंत्रों का बीज माना गया है और मंत्र योग में वेदमाता गायत्री का आह्वान अनिवार्य माना जाता है। सनातन धर्म में गायत्री मंत्र को चार प्रमुख स्तंभों में से एक माना गया है। इसे वेद मंत्र, वेदों की जननी, मंत्र ज्ञानम और वेदों का हृदय भी कहा जाता है।
गायत्री मंत्र की संरचना और अर्थ
तत्वदर्शी महात्माओं के अनुसार वेदों की रचना का आधार गायत्री मंत्र ही है और ऋषियों को प्राप्त ज्ञान इसी से उत्पन्न हुआ है। गायत्री मंत्र को चतुष्पदी कहा गया है, अर्थात इसके चार चरण हैं। ये चार चरण चारों वेदों और मंत्र के चार विरामों के प्रतीक हैं। इस मंत्र का अर्थ अत्यंत गूढ़ और गंभीर है। इसके प्रत्येक अक्षर में इतना विस्तार है कि उस पर अलग-अलग ग्रंथ लिखे जा सकते हैं।
भूर, भुवः, स्वः - अस्तित्व के तीन लोकों, चेतना के तीन स्तरों और प्रकृति के तीन गुणों का संकेत देते हैं।
तत् — वह परम तत्व
सवितुर् — प्रकाश देने वाला, सूर्य
वरेण्यम् — पूजनीय
भर्गो — दिव्य प्रकाश
देवस्य — ईश्वर का
धीमहि — हम ध्यान करते हैं
धियो — बुद्धि
यो नः प्रचोदयात् — जो हमारी बुद्धि को प्रेरित करे
अर्थात, हम उस दिव्य प्रकाश का ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धि को शुद्ध करे और सही मार्ग दिखाए।
गायत्री मंत्र की शक्ति और प्रभाव
गायत्री मंत्र की शक्ति उसके शब्दों, अर्थ और जप करने वाले के भाव में निहित होती है। यह केवल उच्चारण से नहीं, बल्कि उससे उत्पन्न होने वाली सकारात्मक ऊर्जा से प्रभाव डालता है। यह मंत्र बाहरी शोर के बजाय सांसों के बीच भीतर गूंजना चाहिए और विचार बनने से पहले ही मन में स्थापित हो जाना चाहिए।
गायत्री मंत्र केवल धार्मिक नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा देने वाला आध्यात्मिक साधन है। यह अंधकार से प्रकाश, अज्ञान से ज्ञान और भय से विश्वास की ओर ले जाता है। श्रद्धा और सही भाव के साथ नियमित जप से मन शांत होता है, बुद्धि तेज होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है। आज की तेज़ जीवनशैली में यह मंत्र व्यक्ति को भीतर से मजबूत और संतुलित बनाता है।
मंत्र जाप कैसे करना चाहिए ?
गायत्री मंत्र का ज़ोर-ज़ोर से जाप करना उचित नहीं माना गया है। इसका पाठ शांत भाव से, अकेले में और एकाग्र मन से किया जाना चाहिए। परंपरा के अनुसार गायत्री जप वही द्विज व्यक्ति करे जिसने उपनयन संस्कार किया हो।
सामान्य नियम यह है कि प्रतिदिन कम से कम 108 मंत्रों का जप किया जाए। जप के लिए सूर्योदय का समय श्रेष्ठ माना गया है। कुश के आसन पर पूर्व दिशा की ओर बैठकर जप करना चाहिए। शरीर पर धोती के अतिरिक्त वस्त्र न हों, आवश्यकता होने पर कंबल या चादर ओढ़ी जा सकती है। पास में जल पात्र रखकर शांत चित्त से जप किया जाता है। जप के समय स्वर इतना मंद हो कि पास बैठा व्यक्ति भी न सुन सके। साथ ही मन एकाग्र रहे। नित्य लगभग आधा घंटा देकर इस विधि से गायत्री मंत्र के 108 जप आसानी से किए जा सकते हैं।
सवा लक्ष जप से मिलती है सिद्धि
जो व्यक्ति गायत्री मंत्र सिद्धि करना चाहता है, वह विधिपूर्वक सवा लक्ष (सवा लाख) जप करके उसे सिद्ध कर सकता है। देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक के चार महीनों को छोड़कर शेष आठ महीनों में यह अनुष्ठान किया जाना चाहिए। शुक्ल पक्ष की दौज (द्वितीया) शुभ मानी गई है। अनुष्ठान तभी करना चाहिए जब मन स्थिर और शरीर स्वस्थ हो।
प्रातः सूर्योदय से लगभग दो घंटे पहले उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर एकांत, स्वच्छ और हवादार स्थान में जप करना चाहिए। भूमि पर डाभ (कुशा) का आसन, उसके ऊपर कपड़ा, पास में जल पात्र और घी का दीपक रखना चाहिए। जप के लिए तुलसी या चंदन की माला का उपयोग किया जाता है। सूर्य की ओर मुख करके, शुद्ध वस्त्र धारण कर जप करना चाहिए।
जप से पहले कम से कम पाँच प्राणायाम किए जाते हैं, जिससे चित्त स्थिर होता है। इसके बाद ध्यान में सूर्य के सामने कमल पर विराजमान गायत्री माता का आह्वान किया जाता है और फिर मंत्र जप आरंभ होता है। सवालक्ष जप में कुल 1158 मालाएँ जपनी होती हैं। इसे सात, नौ, ग्यारह या पंद्रह दिनों में पूरा किया जा सकता है। जप पूर्ण होने के बाद अगले दिन एक हजार मंत्रों के साथ हवन किया जाता है। हवन के पश्चात भजन, प्रार्थना और प्रसाद वितरण किया जाता है।
अनुष्ठान काल में सात्विक भोजन, ब्रह्मचर्य, भूमि पर शयन, कम बोलना और शुद्ध आचरण आवश्यक बताया गया है। अनुष्ठान पूर्ण होने पर दान देना चाहिए। इस प्रकार सवा लक्ष जप से गायत्री मंत्र सिद्ध होने पर अनेक प्रकार की बाधाएँ और कष्ट दूर होते हैं।
रसव्याहृतिकां सप्रणवां गायत्रीं शिरसा सह। ये जपन्ति सदा तेषां नं भयं विद्यते क्वचित।। शंख स्मृति।।12।14।।
अर्थात - जो सदा गायत्री का जाप व्याहृतियों (उच्चारण) और ॐकार सहित करते हैं उन्हें कहीं भी कोई भय नहीं सताता।