Sanskar

क्यों कहा गया है मृत्युंजय मंत्र को मृतसंजीवनी ?

 

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ ॥

 

महामृत्युंजय मंत्र एक अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली मंत्र है। इसके अलग-अलग नाम और रूप प्रचलित हैं, लेकिन इसे विशेष रूप से “रुद्र मंत्र” के नाम से जाना जाता है। रुद्र मंत्र में “रुद्र” शब्द भगवान शिव के शक्तिशाली स्वरूप को दर्शाता है। इसी कारण इसे “त्र्यम्बकं मंत्र” भी कहा जाता है, जिसमें भगवान शिव की तीनों आंखों - सूर्य, चंद्र और अग्नि का प्रतीकात्मक उल्लेख होता है।

 

“महामृत्युंजय” शब्द तीन शब्दों से मिलकर बना है-

महा (महान), मृत्यु (मृत्यु) और जय (विजय)।

 

शिवपुराण में महामृत्युंजय मंत्र के वृतांत के रूप में मृकण्ड ऋषि और उनके अल्पायु पुत्र मार्कंडेय की कथा मिलती है। कठोर तपस्या के पश्चात भगवान शिव के वरदान से मृकण्ड ऋषि को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। उनका पुत्र मार्कण्डेय अल्पायु था, किंतु महामृत्युंजय मंत्र के प्रभाव से उसने यमराज को भी पराजित कर दिया। इस मंत्र के आशीर्वाद से उसने मृत्यु पर विजय प्राप्त की और अमरत्व का वर पाया।

 

मार्कण्डेय ऋषी के मुख से महामृत्युंजय मंत्र पहली बार निकला था, जिसके बाद यह ऋग्वेद (मंडल 7, हिम 59) में अंकित हुआ। इस मंत्र में 33 अक्षर हैं। महर्षि वशिष्ठ के अनुसार ये अक्षर 33 देवताआं के घोतक हैं। इन 33 देवताओं में 8 वसु, 11 रुद्र और 12 आदित्य, 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं। इन 33 देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र में निहित होती हैं।

 

मंत्र का अर्थ

 

ओम (ॐ) - यहाँ ओम यह शब्द सर्वशक्तिमान ,सर्वोच्च देवता को दर्शाता है

त्र्यंबकम - तीन आंखों वाले ईश्वर

यजामहे - हम पूजा करते हैं

सुगंधिम - सुखद सुगंध वाला

पुष्टि - समृद्ध स्थिति

वर्धनम - यह शब्द उस परमेश्वर को दर्शाता है जो स्वास्थ्य का पोषण करता है और पुनर्स्थापित करता है

उर्वारुकम - परिणाम बाधाओं

इवा - "जैसे" कि।

बंधन - हानिकारक लगाव

मृत्यु - मृत्यु

मुक्षि - मृत्यु से मुक्ति (मोक्ष)

मा - नहीं

अमृतत - विमोचन

 

इसका सरल अर्थ है - मृत्यु पर विजय प्राप्त करना। यह मंत्र न केवल शारीरिक मृत्यु से रक्षा का प्रतीक है, बल्कि भय, रोग, नकारात्मकता और अज्ञानरूपी मृत्यु से भी मुक्ति का संदेश देता है।

 

महामृत्युंजय मंत्र अनुष्ठान की विधि

 

पुराणों में महामृत्युंजय मंत्र के जप की संख्या सवा लाख बताई गई है। अनुष्ठान में भगवान शिव की पूजा, अर्चना और मंत्र जप किया जाता है। इसके पश्चात संपूर्ण मंत्र जप के दशांश के होम, तर्पण और मार्जन का विधान होता है। इस मंत्र का जप आसन पर बैठकर केवल रुद्राक्ष की माला से किया जाना चाहिए। महामृत्युंजय अनुष्ठान शुभ मुहूर्त में विद्वान ब्राह्मणों द्वारा वैदिक विधि-विधान से संपन्न करवाना श्रेष्ठ माना गया है, जिससे भक्तों की समस्त कामनाएं पूर्ण होती हैं।

 

महामृत्युंजय अनुष्ठान के लाभ

 

शास्त्रों के अनुसार महामृत्युंजय मंत्र को मृतसंजीवनी कहा जाता है क्योंकि इसके अनुष्ठान से जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान प्राप्त होता है। महामृत्युंजय मंत्र के जप से असाध्य रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है। कहा जाता है कि जब चिकित्सा की सभी पद्धतियाँ असफल हो जाती हैं, तब इस मंत्र का सहारा लिया जाता है और इसके प्रभाव से व्यक्ति मृत्यु के मुख से भी लौट सकता है।

 

इस प्रकार महामृत्युंजय मंत्र केवल एक मंत्र नहीं, बल्कि जीवन को भय, रोग, संकट और नकारात्मकता से मुक्त करने की एक दिव्य साधना है। यह हमें सिखाता है कि सच्ची शक्ति शरीर की नहीं, बल्कि आस्था, विश्वास और शिव भक्ति में निहित होती है। नियमित श्रद्धा और विधिपूर्वक जप करने से मन को शांति, शरीर को स्वास्थ्य और आत्मा को बल प्राप्त होता है।

 

:- वर्तिका श्रीवास्तव

 

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क्यों कहा गया है मृत्युंजय मंत्र को मृतसंजीवनी ?

 

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ ॥

 

महामृत्युंजय मंत्र एक अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली मंत्र है। इसके अलग-अलग नाम और रूप प्रचलित हैं, लेकिन इसे विशेष रूप से “रुद्र मंत्र” के नाम से जाना जाता है। रुद्र मंत्र में “रुद्र” शब्द भगवान शिव के शक्तिशाली स्वरूप को दर्शाता है। इसी कारण इसे “त्र्यम्बकं मंत्र” भी कहा जाता है, जिसमें भगवान शिव की तीनों आंखों - सूर्य, चंद्र और अग्नि का प्रतीकात्मक उल्लेख होता है।

 

“महामृत्युंजय” शब्द तीन शब्दों से मिलकर बना है-

महा (महान), मृत्यु (मृत्यु) और जय (विजय)।

 

शिवपुराण में महामृत्युंजय मंत्र के वृतांत के रूप में मृकण्ड ऋषि और उनके अल्पायु पुत्र मार्कंडेय की कथा मिलती है। कठोर तपस्या के पश्चात भगवान शिव के वरदान से मृकण्ड ऋषि को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। उनका पुत्र मार्कण्डेय अल्पायु था, किंतु महामृत्युंजय मंत्र के प्रभाव से उसने यमराज को भी पराजित कर दिया। इस मंत्र के आशीर्वाद से उसने मृत्यु पर विजय प्राप्त की और अमरत्व का वर पाया।

 

मार्कण्डेय ऋषी के मुख से महामृत्युंजय मंत्र पहली बार निकला था, जिसके बाद यह ऋग्वेद (मंडल 7, हिम 59) में अंकित हुआ। इस मंत्र में 33 अक्षर हैं। महर्षि वशिष्ठ के अनुसार ये अक्षर 33 देवताआं के घोतक हैं। इन 33 देवताओं में 8 वसु, 11 रुद्र और 12 आदित्य, 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं। इन 33 देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र में निहित होती हैं।

 

मंत्र का अर्थ

 

ओम (ॐ) - यहाँ ओम यह शब्द सर्वशक्तिमान ,सर्वोच्च देवता को दर्शाता है

त्र्यंबकम - तीन आंखों वाले ईश्वर

यजामहे - हम पूजा करते हैं

सुगंधिम - सुखद सुगंध वाला

पुष्टि - समृद्ध स्थिति

वर्धनम - यह शब्द उस परमेश्वर को दर्शाता है जो स्वास्थ्य का पोषण करता है और पुनर्स्थापित करता है

उर्वारुकम - परिणाम बाधाओं

इवा - "जैसे" कि।

बंधन - हानिकारक लगाव

मृत्यु - मृत्यु

मुक्षि - मृत्यु से मुक्ति (मोक्ष)

मा - नहीं

अमृतत - विमोचन

 

इसका सरल अर्थ है - मृत्यु पर विजय प्राप्त करना। यह मंत्र न केवल शारीरिक मृत्यु से रक्षा का प्रतीक है, बल्कि भय, रोग, नकारात्मकता और अज्ञानरूपी मृत्यु से भी मुक्ति का संदेश देता है।

 

महामृत्युंजय मंत्र अनुष्ठान की विधि

 

पुराणों में महामृत्युंजय मंत्र के जप की संख्या सवा लाख बताई गई है। अनुष्ठान में भगवान शिव की पूजा, अर्चना और मंत्र जप किया जाता है। इसके पश्चात संपूर्ण मंत्र जप के दशांश के होम, तर्पण और मार्जन का विधान होता है। इस मंत्र का जप आसन पर बैठकर केवल रुद्राक्ष की माला से किया जाना चाहिए। महामृत्युंजय अनुष्ठान शुभ मुहूर्त में विद्वान ब्राह्मणों द्वारा वैदिक विधि-विधान से संपन्न करवाना श्रेष्ठ माना गया है, जिससे भक्तों की समस्त कामनाएं पूर्ण होती हैं।

 

महामृत्युंजय अनुष्ठान के लाभ

 

शास्त्रों के अनुसार महामृत्युंजय मंत्र को मृतसंजीवनी कहा जाता है क्योंकि इसके अनुष्ठान से जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान प्राप्त होता है। महामृत्युंजय मंत्र के जप से असाध्य रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है। कहा जाता है कि जब चिकित्सा की सभी पद्धतियाँ असफल हो जाती हैं, तब इस मंत्र का सहारा लिया जाता है और इसके प्रभाव से व्यक्ति मृत्यु के मुख से भी लौट सकता है।

 

इस प्रकार महामृत्युंजय मंत्र केवल एक मंत्र नहीं, बल्कि जीवन को भय, रोग, संकट और नकारात्मकता से मुक्त करने की एक दिव्य साधना है। यह हमें सिखाता है कि सच्ची शक्ति शरीर की नहीं, बल्कि आस्था, विश्वास और शिव भक्ति में निहित होती है। नियमित श्रद्धा और विधिपूर्वक जप करने से मन को शांति, शरीर को स्वास्थ्य और आत्मा को बल प्राप्त होता है।

 

:- वर्तिका श्रीवास्तव