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रविवार को क्यों नहीं करनी चाहिए पीपल की पूजा!

हिन्दू धर्म में पीपल के वृक्ष को सबसे पवित्र माना गया है। इस वृक्ष की महत्ता के बारे में स्वयं भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि- “अश्वत्थः सर्ववृक्षाणाम, मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरुपिणे, अग्रतः शिवरूपाय अश्वत्थाय नमो नमः।”

इसका मतलब है कि भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि “मैं वृक्षों में पीपल हूं जिसके जड़ में ब्रह्मा जी, तने में विष्णु जी और वृक्ष के अग्र भाग या पत्तियों में भगवान शिव साक्षात् रूप में विराजमान रहते हैं।”

वहीँ स्कंद पुराण में भी “पीपल के जड़ में भगवान विष्णु, तने में केशव अर्थात श्रीकृष्ण, डालियों या शाखाओं में नारायण और फलों में समस्त देवताओं के वास होने की बात कही गयी है।” पीपल के वृक्ष में सभी देवताओं के वास के बावजूद भी पीपल के वृक्ष की पूजा रविवार को नहीं की जाती है क्योंकि रविवार के दिन पीपल की पूजा करने पर मनुष्य को इसके गंभीर परिणाम भोगने पड़ते हैं।

रविवार को इसलिए नहीं करनी चाहिए पीपल की पूजा

रविवार को पीपल की पूजा न करने के पीछे एक कथा प्रचलित है। उस कथा के मुताबिक एक बार माता लक्ष्मी और उनकी बहन दरिद्रा विष्णु भगवान के पास गईं और उनसे बोलीं कि हे जगत के पालनहार कृपा करके आप हमें भी रहने के लिए कोई स्थान दे दीजिए। इस पर भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी और उनकी बहन दरिद्रा को पीपल के वृक्ष में  वास करने का स्थान दिया। इस तरह से दोनों बहनें पीपल के वृक्ष में निवास करने लगीं।

एक बार जब भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी से विवाह करने का प्रस्ताव रखा तो माता लक्ष्मी ने भगवान को मना कर दिया क्योंकि माता लक्ष्मी की बहन दरिद्रा का विवाह नहीं हुआ था। माता लक्ष्मी बहन के विवाह के बाद ही भगवान से विवाह कर सकती थीं। इस पर जब भगवान विष्णु ने दरिद्रा से पूछा कि “वो कैसा वर चाहती हैं?” तो दरिद्रा बोलीं कि “ वह ऐसा पति चाहती हैं कि जो कभी पूजा-पाठ न करे और उनका पति ऐसे स्थान पर उन्हें रखे कि जहां पर कोई पूजा-पाठ भी न करता हो।”

इस तरह से दरिद्रा के मांगे गए वरदान के मुताबिक भगवान विष्णु ने दरिद्रा का विवाह ‘ऋषि’ से करा दिया। विवाह के बाद भगवान विष्णु ने दरिद्रा और उसके पति ऋषि को अपने निवास स्थान पीपल में रविवार के दिन निवास करने का स्थान दे दिया।

इस तरह से रविवार के दिन पीपल में देवताओं का वास न होकर दरिद्रा का वास होता है इसीलिए रविवार के दिन पीपल की पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि पूजा करने पर दरिद्रा खुश होकर पूजा करने वाले के घर चली जाती हैं।