पुत्रों की लंबी आयु के लिए माताएं जीवत्पुत्रिका का निर्जल व्रत 10 सितंबर बृहस्पतिवार को रखेंगी। शास्त्रों के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पुत्र के आरोग्यता तथा कल्याण के लिए जीवत्पुत्रिका या जिमूतवाहन व्रत का विधान है। प्राय: यह व्रत स्त्रियां ही करती हैं। ज्योतिषाचार्यों के की मानें तो इस दिन सूर्योदय पांच बजकर 50 मिनट पर और अष्टमी तिथि का मान संपूर्ण दिन और रात्रि को 10 बजकर 47 मिनट तक है। रोहिणी नक्षत्र दिन में 10 बजकर 40 मिनट तक उसके पश्चात मृगशिरा नक्षत्र है। चंद्रमा वृष राशि पर स्थिति होने से अपने उच्च स्थिति में रहेंगे।
व्रत की विधि
पंडित अरविंद गिरि के मुताबिक व्रती महिलाओं को पवित्र होकर संकल्प के साथ प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजन स्थल को लीप दें और छोटा तालाब भी खोदकर बना लें। तालाब के निकट एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ा कर दे। शालिवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जिमूतवाहन वाहन की कुश निर्मित मूर्ति, जल या मिट्टी के पात्र में स्थापित कर पीली और लाल रूई से उसे अलंकृत करें तथा धूप, दीप, अक्षत, फूल, माला एवं विविध प्रकार के नैवेद्यों से पूजन करें। मिट्टी या गाय के गोबर से चिल्होरिन (मादा चील) और सियारिन की मूर्ति बनाकर उसका मस्तक लाल सिंदूर से विभूषित कर दें। अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए दिनभर उपवास कर बांस के पत्तों से पूजन करना चाहिए। पूजन के बाद व्रत माहात्म्य की कथा श्रवण करना चाहिए। अगले दिन दान-पुण्य के पश्चात व्रत का पारण करें।