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अगर पूजा-पाठ, व्रत-उपवास नहीं कर पा रहे हैं तो पुरुषोत्तम मास में 4 काम करके पा सकते है पुण्य

अधिक मास वैसे तो भक्ति का महीना है, लेकिन कुछ लोगों के लिए इस महीने में करना तो बहुत कुछ चाहते हैं परंतु व्यस्तता के कारण कुछ कर नहीं पा रहे हैं। ऐसे लोगों लोगों के लिए भी हमारे ग्रंथों ने भक्ति के कुछ ऐसे तरीके बताए हैं, जिनसे बिना किसी व्रत-उपवास, पूजा-पाठ के भी पुण्य कमा सकते हैं।

नियम कई हैं लेकिन एकमात्र शाश्वत नियम ये है कि हम ईमानदारी और शील के साथ रहें। मन, वचन और कर्म से हिंसा ना करें, ना ही कोई बुरा कहा जाने वाला काम। ये पहली और सबसे कठिन सीढ़ी है, परमात्मा तक जाने की। अगर ये चढ़ ली तो फिर कोई खास दूरी नहीं रह जाती है उन बड़ी अवस्थाओं को पाने की, जिन्हें अध्यात्म में आत्म साक्षात्कार या परम तत्व की प्राप्ति जैसे भारी-भरकम शब्दों से पुकारा जाता है।

सारा मामला “स्व” को ठीक करने का है। आप वैसे हो जाएं जैसा परमात्मा चाहता है, फिर उसे पाने के लिए कोई और जतन शेष नहीं रह जाता। वो स्वयं आपको खोज लेगा।

संत कबीर ने कहा है...

कबीरा मन निर्मल भया, जैसे गंगा नीर,

पीछे पीछे हरि फिरे, कहत कबीर-कबीर...

यानि अगर मन को निर्मल बना लिया। वैसा सच्चा मन जैसा बालक अवस्था में होता है, तो परमात्मा खुद आपके पीछे-पीछे घूमता है। इसलिए, मल मास में अपने मन को निर्मल बनाने की पहल करें।

अपेक्षाओं का त्याग करें

मन को बच्चे जैसा निर्मल बनाने के लिए सबसे पहली शर्त है कि आप अपेक्षाओं का दामन छोड़ दें। संबंधों में दरार और मनमुटाव का सबसे बड़ा कारण अपेक्षाएं ही हैं। अगर हम रिश्तों में अपेक्षा को छोड़ दें तो हमारा तनाव और क्रोध दोनों स्वतः कम हो जाएंगे। पुराण कहते हैं कि मन के विकार क्रोध और अपेक्षा से आते हैं। अपेक्षा लालच बढ़ाती है और क्रोध हिंसा। ये दोनों हमारे मन को दूषित करते हैं। मन खराब हुआ कि जीवन खराब हुआ।

कोशिश करें सुबह 15 से 30 मिनट परमात्मा को दें

अधिक मास में ये आदत डालें कि सुबह स्नान के बाद 15 से 30 मिनट परमात्मा को दें। अगर पूजा-पाठ और जप में मन नहीं लगता हो तो दो काम करें पहला भगवान के सामने दीपक-अगरबत्ती लगाकर बैठ जाएं, ध्यान करें। मन को उसी जगह केंद्रित करने का प्रयास करें। दूसरा धार्मिक सामग्री जैसे मंत्र, भजन आदि सुनें। ये दो काम आपमें एक अलग ऊर्जा का संचार करेंगे। मन दबाव और तनाव रहित रहेगा।

जरूरतमंदों की मदद करें

शास्त्र कहते हैं परमात्मा आत्मा में ही है। प्राणी की सेवा भी परमात्मा की प्राप्ति का साधन है। कोशिश करें कि यथाशक्ति जरूरतमंदों की मदद कर सकें। ये काम आपको अहंकार से मुक्ति की ओर ले जाएगा। ये आपको एक विशिष्ट संतुष्टि देगा। जो आपको और अच्छे कामों के लिए प्रेरित करेगी।