ऐरावतेश्वर मंदिर तमिलनाडु में कुंभकोणम के पास दारासुरम नाम की जगह पर है। ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित है जो कि 12वीं सदी में बना है। ये मंदिर द्रविड़ शैली में बना हुआ है। ये मंदिर अद्भूत वास्तुकला के लिए जाना जाता है। इसे चोल राजाओं ने बनवाया था। इसे यूनेस्को द्वारा 2004 वैश्विक धरोहर घोषित किया गया था। धार्मिक आस्था के साथ ही कला को ध्यान में रखते हुए इस मंदिर को चोल वंश के वास्तुशास्त्रियों की देखरेख में बनवाय गया है। इस मंदिर में पत्थरों पर की गई सुंदर नक्काशी और इसकी सुंदर बनावट ही कला का शानदार नमूना है।
ऐरावतेश्वर: ऐरावत हाथी की शिव पूजा भगवान
शिव को यहां ऐरावतेश्वर के रूप में जाना जाता है क्योंकि इस मंदिर में देवताओं के राजा इंद्र के सफेद हाथी ऐरावत द्वारा भगवान शिव की पूजा की गई थी। ऐसा माना जाता है कि ऐरावत ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण अपना रंग बदल जाने से बहुत दुखी था, उसने इस मंदिर के पवित्र जल में स्नान करके अपना रंग पुनः प्राप्त किया। मंदिर के भीतरी कक्ष में बनी एक छवि जिसमें ऐरावत पर इंद्र बैठे हैं, इस कारण इस धारणा को माना जाता है।
सीढ़ियों से निकलता है संगीत और 80 फीट ऊंचे स्तंभ ऐरावतेश्वर मंदिर द्रविड़ वास्तु कला का एक अनूठा उदाहरण है। मंदिर की दीवारों, छतों पर आकर्षक नक्काशी का खूबसूरत प्रयोग किया गया है। पत्थरों पर की गई नक्काशी बहुत ही शानदार है। मंदिर के स्तंभ 80 फीट ऊंचे हैं। सामने के मंडप का दक्षिणी भाग विशाल रथ के बड़े पहियों के रूप में है जिसे घोड़े खींच रहे हैं। आंगन के पूर्व में नक्काशीदार इमारतों का समूह है। चौकी के दक्षिणी तरफ शानदार नक्काशियों वाली 3 सीढ़ियों का समूह है। मान्यता है कि इन सीढ़ियों पर पैर से हल्की सी भी ठोकर लगने से संगीत की ध्वनियां निकलती हैं।
यम को मिली थी श्राप से मुक्ति मंदिर के आंगन के दक्षिण पश्चिमी कोने में एक मंडप है। जिनमें से एक पर यम की छवि बनी है। कहा जाता है कि मृत्यु के राजा यम ने भी इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा की थी। यम किसी ऋषि के श्राप के कारण पूरे शरीर की जलन से पीड़ित थे। उन्होंने इस स्थान पर बनें तालाब में स्नान किया और अपनी जलन से छुटकारा पाया। तब से उस तालाब को यम तीर्थ के नाम से जाना जाता है।