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अहोई अष्टमी का क्या है महत्व? इस व्रत पर क्या करें, क्या न करें?

अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन आता है. यह पर्व दीपावली से ठीक एक हफ्ते पहले आता है. इस साल अहोई अष्टमी 8 नवंबर, रविवार को है. इस दिन सूर्योदय से लेकर रात में 1:36 तक अष्टमी तिथि रहेगी. अष्टमी तिथि में चन्द्रोदय रात में 11:39 बजे होगा.

अहोई अष्टमी को कालाष्टमी भी कहते हैं. इस दिन मथुरा के राधा कुंड में लाखों श्रद्धालु स्नान करने के लिए पहुंचते हैं. अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद और दिवाली से एक हफ्ते पहले रखा जाता है. इस व्रत में माता पार्वती की पूजा की जाती है और शाम को व्रत पूरा करके तारे देखकर जल देने के बाद व्रत खोला जा सकता है. रात में तारों को अर्घ्य देकर संतान की लंबी उम्र और सुखदायी जीवन की कामना करने के बाद अन्न ग्रहण करती हैं.

कैसे करें अहोई अष्टमी का व्रत
अहोई अष्टमी की कथा का साहित्य ले आएं और अहोई अष्टमी का कैलेंडर भी ले आएं. इसके अलावा पंचामृत बनाएं. बच्चे आज मां के भोजन का इंतजाम करें और मां की पसंद की चीजें बनाएं. पूजा पूरी होने के बाद मां को भोजन खिलाएं. पहले मान्यता थी कि पुत्र की भलाई के लिए ये व्रत रखा जाता है लेकिन अब समय बदल चुका है. अहोई अष्टमी की पूजा में पुत्र और पुत्री दोनों का तिलक करें और सिर्फ पुत्र के भविष्य की मंगल कामना करना ठीक नहीं है.

अहोई अष्टमी का महत्व
अहोई अष्टमी बहुत महत्वपूर्ण व्रत है. संतान की भलाई के लिए व्रत किया जाता है. अहोई अष्टमी का व्रत भी बहुत कठोर होता है. भाग्यशाली लोगों को ही संतान का सुख मिलता है. प्रभु हर एक से कुछ विशेष कार्य कराना चाहते हैं. परेशानियों से निपटने के लिए मनुष्य ईश्वर से मदद मांगता है. कभी-कभी संतान का सुख नहीं मिलता. अहोई अष्टमी का पर्व संतान के लिए विशेष है. संतान फिक्र नहीं करती तो उपाय करें.

इन बातों का रखें ख्याल

  • अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता से पहले गणेश जी की पूजा करें
  • अहोई अष्टमी के दिन तारों को अर्घ्य देते हैं. तारों के निकलने के बाद ही अपने उपवास को तोड़ें.
  • अहोई अष्टमी के दिन व्रत कथा सुनते समय 7 तरह के अनाज अपने हाथ में रखें. पूजा के बाद इस अनाज को किसी गाय को खिला दें.
  • अहोई अष्टमी के दिन पूजा करते समय बच्चों को अपने पास बिठाएं और अहोई माता को भोग लगाने के बाद वो प्रसाद अपने बच्चों को जरूर खिलाएं.