करवा चौथ का व्रत सुहागिन स्त्रियों को समर्पित है. इस दिन सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती है. करवा चौथ के दिन स्त्रियां सोलह श्रंगार करती हैं. हाथों में मेहंदी लगाती हैं.
पंचांग के अनुसार करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। जो इस बार 4 नवंबर 2020 को पड़ रही है. इस दिन संकष्टी चतुर्थी भी है, जो भगवान गणेश जी को समर्पित है. करवा चौथ व्रत में महिलाएं पूरे दिन निर्जला रहती हैं और शाम को चंद्र दर्शन के बाद व्रत खोलती हैं.
करवा चौथ पर शिव परिवार की पूजा
करवा चौथ व्रत में शिव परिवार की पूजा का विशेष महत्व है. करवा चौथ पर चंद्रमा की विशेष पूजा की जाती है. इस व्रत में नियमों का विशेष महत्व माना गया है इसलिए करवा चौथ के व्रत में नियमों का पालन करना चाहिए तभी इस व्रत का पुण्य प्राप्त होता है.
करवा चौथ: नियम-1
करवा चौथ के व्रत में सरगी खाने की परंपरा है. सरगी करवा चौथ के व्रत में सुबह दी जाती है. सारगी का करवा चौथ के व्रत में विशेष महत्व माना गया है.
करवा चौथ: नियम-2
करवा चौथ के दिन सुहागिन स्त्रियों को सोलह श्रृंगार करना चाहिए. सुंदर और स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए और हाथों में मेहंदी सजानी चाहिए.
करवा चौथ: नियम-3
करवा चौथ का व्रत चंद्र दर्शन यानि चांद देखने के बाद ही खोलना चाहिए. चंद्र दर्शन के बाद पति के हाथों जल ग्रहण करने के बाद ही इस व्रत का पारण करना चाहिए. करवा चौथ के व्रत में मिट्टी के करवे की पूजा की जाती है. इसके अलावा करवा चौथ कथा सुननी चाहिए.
करवा चौथ पूजा मुहूर्त
4 नवंबर 2020 को बुधवार की शाम 05 बजकर 34 मिनट से शाम 06 बजकर 52 मिनट तक करवा चौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त बना हुआ है. इस दिन चंद्रोदय शाम 7 बजकर 57 मिनट पर होगा.
करवा चौथ व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक कस्बे में एक साहूकार का परिवार रहता था. इस साहूकार के सात बेटे थे और एक बेटी थी. बेटी का नाम करवा था. एकबार साहुकार की पत्नी ने करवा चौथ का व्रत रखा. रात्रि होने पर साहुकार के बेटों को भूख लगी तो उन्होंने करवा से भोजन करने का आग्रह किया. करवा ने यह कहर इंकार कर दिया कि जब तक चंद्र दर्शन नहीं कर लेती तब तक वह भोजन ग्रहण नहीं करेगी. भोजन न लेने से करवा की हालत बिगड़ने लगी तो उसके भाइयों ने एक दीपक जलाकर एक पीपल के पेड़ में रख दिया. भाइयों ने करवा से कहा कि देखो बहन चंद्रमा निकल आया है. भाइयों के इस झूठ को करवा सच मानकर भोजन करने लगी. भोजन करते ही करवा को उसके पति की मृत्यु का समाचार मिला. करवा को सदमा लग गया और अपने पति के शव को लेकर एक वर्ष तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही और कार्तिक कृष्ण चतुर्थी की तिथि पर नियम पूर्वक करवा चौथ का व्रत किया. करवा चौथ के व्रत के कारण उसका पति पुन: जीवित हो गया.