एकादशी का व्रत का सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है। पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है। रमा एकादशी को सभी एकादशी में अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। आइए जानते हैं रमा एकादशी के बारे में......
धन की कामना रखने वाले इस एकादशी का वर्ष भर इंतजार करते हैं, क्योंकि इस एकादशी पर माता लक्ष्मी की उपासना की जाती है। कार्तिक मास की इस एकादशी को लक्ष्मी जी के नाम पर रमा एकादशी कहा जाता है।
रमा एकादशी की पूजा
रमा एकादशी पर माता लक्ष्मी के रमा स्वरूप के साथ भगवान विष्णु के पूर्णावतार केशव स्वरुप की पूजा का नियम बताया गया है।
चातुर्मास की अंतिम एकादशी है रमा एकादशी
रमा एकादशी चातुर्मास की अंतिम एकादशी है। इस समय चातुर्मास चल रहे हैं। चातुर्मास में भगवान विष्णु विश्राम करने के लिए पाताल लोक चले जाते हैं और पृथ्वी की बागडोर भगवान शिव को सौंप जाते हैं। 25 नवंबर 2020 को चातुर्मास समाप्त होंगे। मान्यता है कि एकादशी का व्रत हर की मनोकामनाओं को पूर्ण करता है साथ ही मोक्ष की भी प्रवृत्ति होती है।
रमा एकादशी व्रत
एकादशी का व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है। एकादशी के व्रत के दौरान नियमों का गंभीरता से पालन करना चाहिए तभी इस व्रत का पुण्य प्राप्त होता है। नियम के अनुसार एकादशी व्रत का आरंभ दशमी की तिथि के समापन से ही आरंभ हो जाता है। इसलिए दशमी तिथि के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। रमा एकादशी के दिन प्रातरूकाल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
एकादशी पूजा विधि
एकादशी के दिन सुबह स्नान करने के बाद पूजा आरंभ करनी चाहिए। पूजा में धूप, तुलसी के पत्तों, दीप, नैवेद्य, फूल और फल का प्रयोग करना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु का पीले वस्त्र और फूलों से श्रृंगार करना चाहिए. इसके बाद ही पूजा आरंभ करनी चाहिए। एकादशी के व्रत में रात्रि पूजा का भी विधान बताया गया है। एकादशी व्रत का पारण भी महत्वपूर्ण है। पारण के भी नियम बताए गए है। नियम के अनुसार एकादशी व्रत का पारण द्वादशी की तिथि पर करना चाहिए।