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आकर्षण का केंद्र हैं लछुआड़ का मां काली मंदिर

बिहार के जमुई जिले में मां काली की पूजा को लेकर तैयारी जोरों पर चल रही है। 14 नवम्बर को मां काली की प्रतिमा का बरे ही धूम-धाम से तांत्रिक विधि से पूजा अर्चना किया जाना है। भगवान महावीर की धरती क्षेत्रीय कुंड सिकंदरा प्रखंड के लछुआड़ में मां काली की पूजा में भव्य तरीके से मेला का आयोजन होता आया है। परंतु इस बार कोरोना महामारी के कारण कोविड-19 के तहत मेला का आयोजन नहीं किया जाना है। गिद्धौर से मूर्तिकार राजकुमार पंडित के द्वारा मां काली की प्रतिमा को बनाया जा रहा है।

मंदिर के सामने अभी भी राजा का पुराना गढ़ लोगों को आकर्षित करता है। बुजुर्ग ग्रामीणों का कहना हैं कि यहा हर साल गिद्धौर से घोड़े पर सबार होकर लछुआङ पहुंच कर राजा के द्वारा मां काली की प्रतिमा का तांत्रिक मंत्र से पूजा अर्चना की जाती थी। तब माता को सोने का मुकुट पहनाया जाता था। अभी भी मंदिर के सामने राजा का गढ़ खंडहर की अवस्था में है। जिसकी पूजा के दौरान साफ-सफाई की जाती है।

यहां देवघर से पूजा के लिए आने वाले पंडा जी इसी गढ़ में रहकर तांत्रिक विधि व्यवस्था से पूजा करने के बाद विश्राम करते हैं। मां काली मंदिर लछुआड़ से कुछ दूरी पर मौजूद पोखर है। जहां से मंदिर की दूरी महज 500 मीटर है। पोखर की विशेषता यह है कि राजा के द्वारा अपनी 10 वर्षीय रानी नामक पुत्री को तांत्रिक मंत्र एवं जलपा की स्थापना का यज्ञ कर तालाब की खुदाई कर अपनी पुत्री को जिंदा मिटटी से ढक दिया था।

तब से उस तालाब का नाम रानी पोखर हो गया। आज भी माता का विसर्जन उसी तालाब में किया जाता है। इस दौरान मंदिर के सामने राज भवन में राधा कृष्ण की प्रतिमा को यज्ञ कर स्थापित किया गया था। राजा के समय तक उन प्रतिमा की पूजा अर्चना की जाती थी।