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पश्चिममुखी घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का है अद्भुत इतिहास, नाम स्मरण मात्र से भक्तजन सभी रोगों से मुक्ति पाते हैं

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग और शिवालय तीर्थ महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले में एलागंगा नदी और एलोरा गुफाओं के नज़दीक स्थित है। यहां की यात्रा शिवालय तीर्थ, ज्योतिर्लिंग और लक्ष्य विनायक गणेश के दर्शन से पूर्ण होती है। ये सभी तीर्थस्थल 500 मीटर के दायरे में हैं। बाहर से देखने पर घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर सामान्य मंदिरों की भांति दिखाई देता है, लेकिन अंदर जाकर देखने से इसकी महत्ता और भव्यता स्पष्ट होती है। यह पूरा क्षेत्र जाग्रत है, इसीलिए इस क्षेत्र में कई धर्मावलम्बियों के स्थान हैं।

बौद्ध भिक्षुओं की एलोरा गुफाएं, जनार्दन महाराज की समाधि, कैलास गुफा, सूर्य कुंड-शिव कुंड नाम के दो सरोवर यहीं स्थित हैं। दौलताबाद का क़िला पहाड़ी पर है, जिसमेंं धारेश्वर शिवलिंग है। इसी के पास एकनाथजी के गुरु श्रीजनार्दन महाराज की समाधि भी है। नाथ पंथ वाले तो कैलास मंदिर को ही घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मानते हैं।

भगवान सूर्य द्वारा पूज्य ज्योतिर्लिंग

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग पूर्वमुखी है। कहा जाता है कि घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग और देवगिरि दुर्ग के बीच एक सहस्रलिंग पातालेश्वर (सूर्येश्वर) महादेव हैं, जिनकी आराधना सूर्य भगवान करते हैं। इसीलिए यह ज्योतिर्लिंग भी पूर्वमुखी है। सूर्य द्वारा पूज्य होने के कारण घृष्णेश्वर त्रिविध तापों (दैहिक, दैविक, भौतिक) का हरण कर धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष जैसे पुरुषार्थिक सुख प्रदान करते हैं।

आदि शंकराचार्य के अनुसार कलियुग में इस ज्योतिर्लिंग के नाम-स्मरण से ही समस्त भवरोगों से मुक्ति मिल जाती है। शिव पुराण के अनुसार जिस तरह शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा में चंद्रमा को देखकर सुख की अनुभूति होती है, उसी प्रकार घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन कर मनुष्य पाप मुक्त हो जाता है।

पद्मपुराण के अनुसार-

दिवा वसामि सर्वत्र रात्रौ च शिवालय

अर्थात भगवान दिन में तो सब जगह वास करते हैं लेकिन रात में शिवालय तीर्थ के पास ही बसते हैं। इसीलिए घृष्णेश्वर में शयन आरती का विशेष महत्व है। सभी जगह 108 शिवलिंग का महत्व बताया जाता है किंतु यहां पर 101 का महत्व है। 101 पार्थिव शिवलिंग बनाए जाते हैं और 101 ही परिक्रमा की जाती हैं।