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गंगा लोगों की आस्था का केंद्र, ये नदी देश की 43 प्रतिशत जनता के लिए जल और खाद्य सुरक्षा का स्तोत्र है

मोक्षदायिनी मां गंगा हिमालय से निकली केवल एक सामान्य जलधारा नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक वैभव, श्रद्धा एवं आस्था की प्रतीक मानी जाती हैं। गंगा आदिकाल से ही भारत की आस्था, श्रद्धा का केंद्र होने के साथ न केवल दिव्य मंगलमयी कामना की नदी रही है, बल्कि देश की 43 फीसदी आबादी को आर्थिक सुरक्षा के साथ जल और खाद्य सुरक्षा भी प्रदान कर रही हैं। यही कारण है कि उन्हें मातृ स्वरूपा भी कहा जाता है।

मां गंगा की निर्बाध अविरलता और निर्मलता के साथ ही संरक्षण एवं संवर्धन को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की शुरुआत की गई, जो आज नीतिगत निर्णय एवं परियोजनाओं पर कार्य करते हुए गंगा को अविरल एवं निर्मल बनाने और आम जनमानस में उनके संरक्षण के प्रति चेतना जागृत करने की दिशा में कार्य कर रहा है।

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन किसानों की आय को बढ़ाने के लिए नदी के किनारे कृषि क्षेत्र में प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक तरीके से जैविक खेती को बढ़ावा देने के साथ ही पर्यावरण व पारिस्थितिकी के साथ साथ मिट्टी, पानी, जैव विविधता के संरक्षण को प्राथमिकता दे रहा है, क्योंकि गंगा के संरक्षण एवं संवर्धन में सतत कृषि बहुत ही आवश्यक है।

हाल के परिदृश्य में, नदी बेसिन प्रबंधन को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि बेसिन के प्राकृतिक जैविक और अजैविक संसाधनों यानि मिट्टी और पानी को समय के साथ पर्याप्त रूप से संरक्षित किया जाए। आज खेती के तौर-तरीकों और वातावरण में हुए बदलाव का असर मिट्टी और पानी दोनों पर पड़ा है।

धरती पर टिकाऊ जीवन और मानव कल्याण के लिए मिट्टी का स्वस्थ होना बेहद अहम है लेकिन विश्व के सभी महाद्वीपों पर मृदा क्षरण होने से खाद्य व जल सुरक्षा और जीवन की कई बुनियादी जरूरतों पर खतरा बढ़ रहा है।