मोक्षदा एकादशी का तात्पर्य है मोह का नाश करने वाली। इसलिए इसे मोक्षदा एकादशी कहा गया है। मोक्षदा एकादशी व्रत के प्रभाव से मनुष्य के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और व्रती को स्वर्गलोक प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला दूसरा कोई भी व्रत नहीं है। कब है मोक्षदा एकादशी व्रत?
तिथि, व्रत विधि, महत्व और व्रत कथा।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, अगहन (मार्गशीर्ष) माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार मोक्षदा एकादशी व्रत 25 दिसंबर को मनाया जाएगा। यह साल 2020 और दिसंबर महीने की आखिरी एकादशी होगी।
मोक्षदा एकादशी व्रत विधि
प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में स्नानादि से निवृत्त होकर घर के मंदिर की सफाई करें।
पूरे घर में गंगाजल छिड़ कर पूजाघर में भगवान को गंगाजल से स्नान कराएं। और उन्हें वस्त्र अर्पित करें
इसके बाद रोली और अक्षत से तिलक करें।
फूलों से भगवान का श्रृंगार कर भगवान को फल और मेवे का भोग लगाएं।
सबसे पहले भगवान गणपति और फिर माता लक्ष्मी के साथ श्रीहरि की आरती करें।
भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते अवश्य अर्पित करें।
मोक्षदा एकादशी की कथा
एक समय गोकुल नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। एक दिन राजा ने स्वप्न में देखा कि उसके पिता नरक में दुख भोग रहे हैं और अपने पुत्र से उद्धार की याचना कर रहे हैं। अपने पिता की यह दशा देखकर राजा व्याकुल हो उठा। प्रात: उठकर राजा ने ब्राह्मणों को बुलाकर अपने स्वप्न के बारे पूछा। तब ब्राह्मणों ने कहा कि, हे राजन्! यहां से कुछ ही दूरी में वर्तमान, भूत, भविष्य के ज्ञाता पर्वत नाम के एक ऋषि का आश्रम है। आप वहां जाकर अपने पिता के उद्धार का उपाय पूछ लीजिए। राजा ने ऐसा ही किया।
जब पर्वत मुनि ने राजा की बात सुनी और एक मुहूर्त के लिए नेत्र बन्द किए। उन्होंने कहा कि- हे राजन! पूर्वजन्मों के कर्मों की वजह से आपके पिता को नर्कवास प्राप्त हुआ है। अब तुम मोक्षदा एकादशी का व्रत करो और उसका फल अपने पिता को अर्पण कर दो, तो उनकी मुक्ति हो सकती है। राजा ने मुनि के कथानुसार ही मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। ब्राह्मणों को भोजन, दक्षिणा और वस्त्र आदि अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद व्रत के प्रभाव से राजा के पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई।