मां दुर्गा को सुख, समृद्धि और धन की देवी माना जाता है। शारदीय नवरात्रि का पर्व सोमवार से शुरू हो चुका है। नवरात्रि में भक्त मां दुर्गा की उपासना कर रहे हैं। 9 दिनों का मतलब है मां दुर्गा के 9 स्वरुपों की पूजा। इसी क्रम में शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के दूसरे स्वरुप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। कौन हैं मां ब्रह्मचारिणी? कैसा है उनका स्वरूप? और क्या है माँ की पूजा का महत्व? आइए जानते है।
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तयै नमो नमः।
माँ दुर्गा के नवशक्तियों का दूसरा स्वरुप ब्रह्मचारिणी का है। यहाँ ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या है यानी तप का आचरण करने वाली। कहा ये भी जाता है कि वेद, तत्व और तप ब्रह्म शब्द के अर्थ है। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योति के स्वरूप और सुन्दर है। माँ ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में जप की माला तो बाएं हाथ में कमण्डल है। बता दे माँ अपने पूर्वजन्म में हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मी थी। तब भगवान नारद के उपदेश से माता ने भगवान शंकर जी को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए बहुत कठिन तपस्या की थी। इसी मुश्किल तपस्या के कारण माता को तपश्चारिणी नाम भी दिया गया। एक हज़ार वर्ष माँ ब्रह्मचारिणी ने केवल फल-फूल खाकर व्यतीत किया था और अगले सौ वर्षो तक माँ ने सब्जी खाकर जीवनयापन किया था। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए माता ने खुले आसमान के नीचे बारिश और धूप की पीड़ा भी सही।
इस कठिन तपस्या के चलते माँ ब्रह्मचारिणी ने तीन हज़ार वर्षो तक केवल जमीन पर टूटकर गिरे हुए बेलपत्रों को खाकर भगवान शंकर की आराधन की। इसके बाद माँ ने सूखे बेलपत्रों को खाना भी छोड़ दिया। कई हज़ार वर्षों तक माँ ने जल और भोजन को त्यागकर तपस्या की तत् पश्चात उनका नाम अपर्णा रखा गया।
कई हज़ार वर्षो की इस कठिन तपस्या के कारण माँ ब्रह्मचारिणी देवी का वह पूर्वजन्म का शरीर एकदम क्षीण हो गया। माँ ब्रह्मचारिणी की ये दशा देखकर उनकी माता मेना बहुत परेशान हुई, माता मेना ने उन्हें इस कठिन तपस्या को खत्म करने के लिए आवाज़ दी 'उ मा, अरे! नहीं ओ! नहीं ! तब से देवी ब्रह्मचारिणी का पूर्वजन्म का नाम उमा हुआ। माँ ब्रह्मचारिणी की इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ब्रह्मचारिणी देवी की तपस्या को पीछे जन्म का पुण्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे। फिर पितामह ब्रह्माजी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा- हे देवी ! आज तक किसी ने भी ऐसी कठोर तपस्या नहीं की थी। ऐसी तपस्या तुमसे ही संभव थी। तुम्हारे इस अलौकिक कार्य की चारों और सराहना हो रही है। तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन परिपूर्ण होगी। भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हे पति रूप में प्राप्त अवश्य होंगे। अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ। शीघ्र ही तुम्हारे पिता तुम्हे बुलाने आ रहे हैं। माँ दुर्गाजी का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी स्वरुप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती हैं।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।