यूं तो हर दिन भगवान भगवान का है, किंतू सावन का सम्पूर्ण महीना, देवों के देव महादेव भगवान शिव को समर्पित है। इस पूरे माह भगवान शिव की अमीस कृपा बरसती है। मान्यता है कि जो भी भक्त "शिवो भूत्वा शिवम जयेत" यानि शिव बनकर शिव की पूजा करने की धारणा के साथ कावड़ यात्रा करते हैं भगवान भोलेनाथ उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
यात्रा शुरु करने से पहले शिवभक्त खाली कावड़ लेकर, किसी ऐसे पवित्र स्थल पहुंचते हैं जहां से गंगा भर सकें, जिसके बाद हर हर महादेव के उदघोष के साथ शुरू होती है मंगलकारी कावड़ यात्रा। शिव भक्त पूरी यात्रा के दौरान नंगे पांव, कंधे पर कावड़ लेकर पैदल चलते हैं और अपने गंतव्य पहुंचकर भगवान शिव का जालाभिषेक करते हैं। सावन की शिवरात्रि के दिन किसी भी शिवालय में जल चढ़ाना फलदायक माना जाता है।
पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सबसे पहले कांवड़ यात्रा की शुरुआत भगवान श्रीराम ने की थी। मर्यादा पुरुषोत्तम ने बिहार राज्य के सुल्तानगंज से अपने कांवड़ में गंगाजल भरकर बाबा बैद्यनाथ धाम के शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। यहीं से कांवड़ यात्रा की शुरुआत मानी जाती है।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगावन शिव के परमभक्त भगवान परशुराम ने सबसे पहले कावड़ यात्रा की थी। उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जल लाकर उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में स्थित पुरा माहेदव मंदिर में भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था तभी से शिवभक्त इस परंपरा का निर्वेहन करत हैं।
कावड़ यात्रा के दौरान शिवभक्त कई नियमों का पालन करते हैं। पूरी यात्रा के दौरान सात्विकता रखनी अनिवार्य होती है। तामसिक चीजों के सेवन का त्याना करना होता है। कावड़ को हमेशा शुद्ध और पवित्र रखना अनिवार्य होता है, यदि किसी कारण वश कावड़ को नीचे रखना पड़े, तो किसी स्वच्छ स्थान पर जैसे लकड़ी के बने स्टैंड या कपड़े के ऊपर ही रखते है। क्योंकि कावड़ का जमीन पर रखने की अनुमति नहीं होती। इसके अलावा कांवड़ को अपवित्र हाथों से छूने की मनाही होती है। सबसे महत्वपूर्ण, सम्पूर्ण यात्रा के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है।
कावड़ यात्रा भगवान शिव के प्रति अटूट श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। यात्रा करने से व्यक्ति के जीवन में सरलता आती है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।