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नागपंचमी की कथा

नागपंचमी क्यों मनाई जाती है ? इसकी कथा समुद्रमंथन और सर्पयज्ञ से जुड़ी है । बात है समुद्र मंथन के समय की जब इससे एक दिव्‍य श्‍वेत अश्‍व प्रकट हुआ जिसे देखकर नागों की माता कद्रू ने अपनी सौतन विनता से कहा कि यह तो सफेद है और इसके बाल काले हैं। लेकिन विनता ने बैरवश कह किया कि यह न तो श्‍वेत है और न ही लाल और न ही काला । दोनों में शर्त लग गई। तब कद्रू ने अपने सभी नागपुत्रों से कहा कि वे अपना आकार छोटे करके घोड़े से लिपट जाएं ताकि ये काला नजर आने लगे। उसके कुछ पुत्रों ने बात मान ली लेकिन ज्यादातर ने इंकार कर दिया। तब कद्रू को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने श्राप दिया कि पांडवों के वंश में उत्‍पन्‍न होने वाले राजा जनमेजय के यज्ञ में तुम सभी भस्‍म हो जाओगे।

 

शापित नाग ब्रह्माजी की शरण में पहुंचे तो उन्होंने कहा कि चिंता मत करो । उन्होंने बताया कि जब नागवंश में महात्मा जरत्कारू के पुत्र आस्तिक मुनि होंगे तो वो आप सभी की रक्षा करेंगे। आस्तिक ने यज्ञ मण्डप में पहुँचकर जनमेजय को अपनी मधुर वाणी से मोह लिया। उन्होंने सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही नागों को सर्पयज्ञ में जलने से बचाया और इनके ऊपर दूध डालकर जलते हुए शरीर को शीतलता प्रदान की। दरअसल, जनमेजय ने पूरी नागवंश की समाप्ति के लिए यज्ञ किया था जिनके पिता परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक नाग के काटने से हुई थी । इस तरह माता के श्राप और नागदाह यज्ञ में नागों की आहुति से आस्तिक मुनि ने उन्हें बचा लिया । आस्तिक मुनि ने अपने ज्ञान और तप से


जनता को नागों के प्रति केवल भय नहीं, सम्मान और श्रद्धा का भाव सिखाया। नागों की पूजा कर के हम प्रकृति, जीव-जंतु और देव तत्व को सम्मान देने की परंपरा निभाते हैं। क्योंकि सनातन संस्कृति कहती है — 'जहाँ करुणा है, वहाँ ईश्वर है।'

 

:- विजय शर्मा