महादेव का स्वरुप जितना सादा और सरल है, उनसे जुड़ी बातें उतनी ही रहस्यमयी हैं। शास्त्रों में शिवजी के स्वरूप के संबंध कई महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। इनका स्वरूप सभी देवी-देवताओं से बिल्कुल अलग है। जहां सभी देवी-देवता दिव्य आभूषण और वस्त्र आदि धारण करते हैं वहीं शिवजी ऐसा कुछ भी धारण नहीं करते बल्कि भस्म रमाते हैं और यही है उनका प्रिय वस्त्र और आभूषण है।
धार्मिक मान्यता है कि शिव जी को मृत्यु का स्वामी माना गया है और शव के दाह संस्कार के बाद बची भस्म वो अपने शरीर पर धारण करते हैं। इस प्रकार शिवजी भस्म लगाकर हमें संदेश देते हैं कि हमारा ये शरीर नश्वर है यानी नाशवान है और एक दिन इसी भस्म की तरह मिट्टी में विलीन हो जाएगा। इसलिए हमें इस नश्वर शरीर पर अहंकार नहीं करना चाहिए। कोई कितना भी महान, सुंदर, धनी या प्रतिभावान क्यों न हो, मृत्यु के बाद सभी का शरीर भस्म का रूप धारण कर लेता है।
विंध्याचल स्थित भुवनेश्वरी शक्तिपीठ (भक्तियोग आश्रम) के पूज्य श्रीश्री 108 कमलराज जी महाराज के अनुसार "भगवान शिव को रिझाने के लिए यूं तो लोग बहुत कुछ अर्पित करते हैं। परन्तु भगवान शिव से अनन्य प्रेम करने वाली देवी सती ने जब दक्ष के यज्ञ में शिव का सम्मान नहीं होते देखा तब योगाग्नि से स्वयं को भस्मीभूत कर लिया, तब भगवान शिव अत्यंत क्रोध में वहां पहुंचे और सती की देह की भस्म को उन्होंने अपने संपूर्ण शरीर पर मल लिया और सती के अस्थिपंजर को लेकर तीनों लोक में भ्रमण करने लगे। भगवान विष्णु ने उन्हें इस प्रकार शोक से व्याकुल देखा तो उन्होंने सुदर्शन चक्र से सती की देह के छोटे-छोटे टुकड़े किए और वो टुकड़े जहां-जहां गिरे वहां आज शक्तिपीठ स्थापित है। भगवान शिव को भस्म इसलिए भी प्रिय है क्योंकि वो वैरागी हैं। यह वैराग का प्रतीक है। संसार की नश्वरता का हमें बार-बार स्मरण कराती है। इसलिए भी भगवान शिव को भस्म अति प्रिय है। भगवान शिव से जो भक्त वैराग्य और ज्ञान की कामना करते हैं, वो भगवान शिव को भस्म अवश्य अर्पित करें। वैसे, इस भस्म के कई औषधीय गुण भी हैं।“
इसीलिए आज भी भगवान शिव को भस्म अर्पित की जाती है। भोलेनाथ के पूजन और आरती में भस्म का प्रयोग होता है। बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग की तो भस्म से आरती की जाती है जिसमें कपिला गाय के गोबर से बने औषधियुक्त उपलों में शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लककियों को जलाकर जो भस्म प्राप्त होती है उसे कपड़े से छान लिया जाता है और उसे ही शिवजी को अर्पित करते हैं। इस भस्म का तिलक करने से भक्त का सर्वविध कल्याण होता है।