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कैसे नाग, असुर और किन्नरों के भी इष्ट बने शिव ?

शिव जब व्यक्ति में समा जाते हैं तो वो शून्य हो जाता है। शिव जब प्राणों में उतरते हैं तो व्यक्ति मुक्त हो जाता है। तीन लोकों में शिव जैसा ना कोई है और ना कोई हो सकता है वो शिव ही हैं, जो इस धरती पर रहने वाले मनुष्यों का कल्याण करते हैं और वो शिव ही हैं जो इस देह से प्राण निकल जाने के बाद भी शमशान में बैठकर उसे मोक्ष देते हैं। उस भस्मधारी, बाघाम्बर ओढ़े शिव को कोई समझ पाए, ऐसी शक्ति किसी के पास नहीं। वो तो इतने भोले है कि अल्पायु प्राप्त बालक मार्तण्डेय ने जब उनकी आराधना की तो उन्हें अमरता का वरदान दे दिया। असुरों ने भी जब-जब महादेव की तपस्या की तो उन्हें भी यथोचित वरदान दिया। नाग, किन्नर, राक्षस जिनको सबने त्याग दिया उन सभी पर शिव ने कृपा दृष्टि बरसाई।

 

शिव श्मशान में रमण करते हैं, भूत-प्रेत उनके साथ रहते हैं, चिता की भस्म का लेप करते हैं और मुंडमाल धारण करते है। भगवान शिव जितने रहस्यमयी हैं, उनका स्वरूप और उनसे जुड़ी बातें भी उतनी ही विचित्र हैं। चूंकि शिव संहार के देवता हैं और दंड भी वही देते हैं। इसलिए शिव को भूत-प्रेतों का देवता भी कहा जाता है। दरअसल भूत-प्रेत कोई और नहीं बल्कि सूक्ष्म शरीर का प्रतीक है। भगवान शिव का यह संदेश है कि हर तरह के जीव जिससे सब घृणा करते हैं या भय करते हैं वे भी शिव के पास पहुंच सकते हैं, केवल शर्त है कि वे अपना सर्वस्व उन्हें समर्पित कर दें।

 

बात नागों की करें तो जिन नागों को देखकर लोग दूर भागते हैं। भगवान शिव उसे ही अपने साथ रखते हैं। भगवान शिव गले में नाग धारण करते हैं। उनके गले में नाग ये संदेश देते हैं कि जीवन चक्र में हर प्राणी का अपना विशेष योगदान है। शिव पुराण और अन्य प्राचीन ग्रन्थों में उल्लेख है कि भगवान शिव सभी को अपना लेते हैं कोई भी उनकी भक्ति करता है या उनकी शरण में आता है तो वो उसे अपना लेते हैं। 

 

शिव पुराण,स्कन्द पुराण, लिंग पुराण आदि में उल्लेख मिलता है कि महादेव की बारात में भूत प्रेत आदि भी शामिल थे क्योंकि सब उनके भक्त हैं। वो उनकी शरण में आ कर मुक्ति पाना चाहते हैं। जो शिव के पास गया उसे शिव ने स्वीकार किया। जो जैसा था उसे वैसा स्वीकार किया। नाग हो किन्नर हो, असुर हो या प्रेतए भोलेनाथ ने आशीर्वाद रूपी हाथ सभी के सिर पर रखकर उन्हें शिव भक्त की उपाधि तक दे दी। ऐसे है त्रिलोकीनाथ महादेव।