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पूर्णिमा श्राद्ध आज यानी बुधवार को है. आज से ही पितृ पक्ष की शुरुआत हो रही है. पितृ पक्ष 17 सितंबर को समाप्त होगा. श्राद्ध पक्ष को पितृ पक्ष के नाम से जाना जाता है. इस पक्ष में पितरों के निमित्त दान, तर्पण, श्राद्ध के रूप में श्रद्धापूर्वक जरूर करना चाहिए. पितृपक्ष में किया गया श्राद्ध-कर्म सांसारिक जीवन को सुखमय बनाते हुए वंश की वृद्धि भी करता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद पूर्णिमा को पूर्णिमा श्राद्ध होता है. पूर्णिमा के बाद एकादशी, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या श्राद्ध आता है. इन तिथियों में पूर्णिमा श्राद्ध, पंचमी, एकादशी और सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध प्रमुख माना जाता है.
पितृ भोज में क्या बनाएं
पितृ पक्ष में कुल 16 श्राद्ध होते हैं. इस बार पूर्णिमा श्राद्ध 2 सितंबर को और सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध 17 सितंबर को है. श्राद्ध के भोजन में खीर-पूड़ी, हलवा शुभ माना जाता है लेकिन पौराणिक मान्यता है कि आपके पूर्वजों को उनके जीवन में उन्हें जो चीज पसंद रही हो उन्हीं चीजों का भोग लगाना चाहिए. इससे पितर खुश होते हैं.
पितृ भोज में क्या न बनाएं
पितृ पक्ष में श्राद्ध भोज की थाली में चना, मसूर, उड़द, काला जीरा, कचनार, कुलथी, सत्तू, मूली, खीरा, काला उड़द, प्याज, लहसुन, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, खराब अन्न, फल और मेवे जैसी चीजें श्राद्ध भोज में शामिल नहीं करनी चाहिए. इन चीजों का प्रयोग श्राद्ध में अशुभ माना जाता है. इस से पितरों में नाराजगी होती है. परिवार में अशांति दुःख दरिद्रता का वास होता है.
भाद्रपद पूर्णिमा का महत्व
इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा करने से व्यक्ति को धन-धान्य की कमी नहीं होती है. जो लोग पूर्णिमा के दिन व्रत करते हैं, उनके घर में सभी प्रकार से सुख-समृद्धि का वास होता है. इस दिन पूजा करने पर कष्ट दूर होते हैं. इस दिन उमा-महेश्वर व्रत भी रखा जाता है. माना जाता है कि भगवान सत्यनारायण नें भी इस व्रत को किया था. इस दिन दान-स्नान का भी बहुत महत्व माना गया है. भादप्रद पूर्णिमा के दिन को इसलिए भी खास माना गया है, क्योंकि इस दिन से श्राद्ध पक्ष का आरंभ होता है, और सोलह दिनों तक अपने पितरों से आशीर्वाद प्राप्त करने के दिन होते हैं.