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Independence Day Special: पिछले 116 सालों में 6 बार बदला है तिरंगे का स्वरुप, जानिए तिरंगे का इतिहास....

भारत (India) की आन, बान और शान का प्रतीक है हमारा राष्ट्रीय ध्वज (National Flag) तिरंगा। 135 करोड़ जनता का स्वाभिमान है तिरंगा, जिसकी रक्षा के लिए ना जाने कितने वीरों ने हंसते हंसते अपने प्राणों की आहूति दे दी। वैसे तो 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज के रुप में तिरंगे को अपनाया था लेकिन हमारे राष्ट्रीय ध्वज की कहानी तो कई सालों पहले ही लिख दी गई थी। साल 1831 में जब राजा राम मोहन रॉय (Raja Ram Mohan Roy) एक फ्रांसीसी जहाज में सवार होकर इंग्लैंड जा रहे थे, तब उन्हें उस जहाज पर फ्रांस का झंडा लहराता दिखा। उस झंडे में भी तीन रंग थे, तो कही ना कही उनके दिमाग में हिन्दूस्तान के राष्ट्रीय ध्वज की परिकल्पना हो चुकी थी, लेकिन जरुरत नहीं पड़ी तो फिर उसकी चर्चा नहीं हुई। लेकिन भारत के लिए ध्वज की जब जरुरत पड़ी तो तब से लेकर आखिरी स्वरुप तक तिरंगे के अस्तित्व में आने की कहानी में कई रोचक मोड़ आए। कई हार तिरंगे के स्वरुप को बदला गया। दरअसल 20वीं सदी में भारत तो उसके राष्ट्रीय ध्वज की जरुरत महसूस हुई। स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand) की शिष्या सिस्टर निवेदिता (Sister Nivedita) ने कुछ आजादी के दिवानों के साथ मिलकर 7 अगस्त 1906 को बंगाल विभाजन के विरोध में कलकत्ता (Calcutta) के पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) पर फहराया था। इस दौरान तिरंगे में तीन रंग की पटि्टयां थीं। सबसे ऊपर हरा, बीच में पीला और नीचे लाल रंग की पट्टियां थीं। ऊपर की पट्टी में आठ कमल के फूल थे, जिनका रंग सफेद था। पीली पट्टी में नीले रंग से वन्दे मातरम् लिखा हुआ था। इसके अलावा सबसे नीचे वाली लाल रंग की पट्टी में सफेद रंग से चांद और सूरज भी बने थे। दूसरी बार पेरिस (Paris) में मैडम भीखाजी कामा (Madam Bhikhaji Kama) ने 1907 में उनके साथ देश से निकाले गए क्रांतिकारियों के साथ फहराया था। हालांकि इस वक्त तिरंगे के स्वरुप में थोड़ा परिवर्तन किया गया। इसमें केसरिया, पीला और हरे रंग की पट्टियां थी। बीच में वन्दे मातरम् लिखा था। वहीं, इसमें चांद और सूरज के सात आठ सितारे बने थे। तीसरी बार 1917 में घरेलू शासन आन्दोलन के दौरान झंडे को फहराया गया था। क्योंकि अबतक आजादी की लड़ाई देश की राजनीति के साथ मिलकर एक महत्वपूर्ण मोड़ पर आ गई थी। तभी मैडम एनी बेसेंट (Annie Besant) ने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (Bal Ganga Dhar Tilak) के साथ मिलकर घरेलू शासन आन्दोलन के दौरान झंडे को फहराया था। इस वक्त तिरंगा के स्वरुप में थोड़ा बदलाव किया गया। तिरंगे में 5 लाल औऱ 4 हरे रंग की हॉरिजेंटल पट्टियां एक के बाद एक और सप्तऋषि ऑरिएन्टेशन पर बने सात सितारे थे। बांयी तरफ उपरी किनारे पर यूनियन जैक था और एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था। लेकिन तिरंगे की महत्ता 1921 में तब और ज्यादा बढ़ गई, जब बेजवाड़ा (विजयवाड़ा) में अखिल भारतीय कांग्रेस के सत्र के दौरान आंध्र प्रदेश के रहने वाले पिंगली वैंकैया ने झंडा बनाकर गांधी जी को दिया था। इस वक्त झंडे में दो ही रंग थे। एक लाल जो हिन्दू समुदाय का प्रतिनिधित्व करता था और दूसरा हरा जो मुस्लिम समाज की मेजबानी करता था। झंडे के बीच में गांधी जी का चरखा लगाया गया था। जब बापू ने इस झंडे को देखा तो इसमें सफेद रंग जोड़ने की सलाह दी और फिर साथ में चरखा लगाने को कहा। लेकिन साल 1931 तिरंगे के इतिहास में बेहद खास रहा जब अखिल भारतीय कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर तिरंगे को राष्ट्रिय ध्वज के रुप में स्वीकार किया। इसबार एकबार फिर झंडे में स्वरुप में बदलाव किया गया। उपर की पट्टी केसरिया, बीच में सफेद और आखिरी पट्टी हरी और सफेद पट्टी पर देश की प्रगति का प्रतिक चरखा लगा दिया गया। लेकिन 1931 में एक छोटे बदलाव के साथ 22 जुलाई, 1947 में संविधान सभा की बैठक में तिरंगे को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रुप में स्वीकार कर लिया गया। लेकिन इसमें एक छोटा सा बदलाव किया गया। अब झंडे से चरखे को हटा दिया गया और सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ से लिए चक्र को इसमें जगह दी गई। जो गहरे नीले रंग का है। 24 तीलियों वाले इस चक्र को विधि का चक्र भी कहते हैं। तिरंगे में दिए इस तीन रंग को किसी ना किसी प्रतीक के तौर पर दर्शाया गया।पहला रंग केसरिया, जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। सफेद पट्टी नीले धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। वहीं हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और धरती की पवित्रता का प्रतीक है और सफेद पट्टी पर लगा नीले रंग का चक्र इस बात का प्रतीक है कि जिन्दगी गतिशील है और रुकने का मतलब मौत है।