मायापुर: पश्चिम बंगाल के मायापुर में साल 2009 से जिस मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है, उस मंदिर का निर्माण कार्य अब अंतिम चरण में है। ये भगवान कृष्ण को समर्पित इस्कॉन मंदिर है जो 700 एकड़ यानि 28 लाख वर्ग मीटर में फैला है। इस मंदिर के बन जाने के बाद ये दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर होगा। अब तक सबसे बड़े मंदिर का तमगा कंबोडिया के अंगकोर वाट के पास है, जो करीब 16 लाख वर्ग मीटर में फैला है। उम्मीद जताई जा रही थी कि ये मंदिर अगले साल होली तक बनकर पूरी तरह से तैयार हो जाएगा। लेकिन कोरोना की वजह से मंदिर के बनने में देरी हुई और अब ये मंदिर 2024 तक तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है। मंदिर के आकार-प्रकार की बात कर लें तो इसकी विशालता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसकी नींव 100 फीट की है। यानी जमीन में करीब करीब दस मंजिला इमारत के बराबर और जब ये मंदिर बन कर तैयार हो जाएगा तो एक साथ 10 हजार लोग भगवान कृष्ण के दर्शन कर सकेंगे। हालांकि इसबार यहां धूम धाइस बार 19 अगस्त को जन्माष्टमी यहां धूमधाम से मनाई जाएगी। इस पावन मौके पर यहां भगवान श्रीकृष्ण की झांकी भी निकाली जाएगी। उम्मीद जताई जा रही है कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर यहां एक लाख से ज्यादा भक्त शामिल होंगे। बताया जा रहा है कि इस्कॉन के संस्थापक श्री प्रभुपाद जी ने 1971 में मायापुर में तीन एकड़ जमीन खरीदी। 1972 में यहां भूमिपूजन हुआ और 2009 में मंदिर के बनने का काम शुरु हुआ। मिली जानकारी के मुताबिक पहले मंदिर निर्माण का शुरुआती बजट 600 करोड़ रुपये था लेकिन कोरोना और इसके बाद बढ़ी लागत से बजट एक हजार करोड़ रुपए पहुंच गया। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि कार निर्माता कंपनी फोर्ड के मालिक अल्फ्रेड फोर्ड ने इस मंदिर के लिए 300 करोड़ रुपए का दान दिया है। इस मंदिर में तीन विशाल शिखर बनाए गए हैं और यह दुनिया का सबसे बड़ा वैदिक मंदिर भी होगा, जहां सिर्फ भगवान रहेंगे। इन तीन शिखरों में से मुख्य शिखर राधा-कृष्ण और पूर्वी शिखर नरसिंह देव का है। यहां रोशनी से हवा तक के लिए प्राकृतिक व्यवस्था रहेगी। 350 फीट ऊंचे मंदिर में 14 लिफ्ट लगाई गई हैं। आमतौर पर प्लेनेटेरियम में ग्रह-नक्षत्र दिखाते हैं, लेकिन श्रीश्री मायापुर चंद्रोदय मंदिर में बन रहे प्लेनेटेरियम में सभी लोक के वर्चुअल दर्शन होंगे। यहां स्थापित सुदर्शन चक्र 20 फीट का है। वहीं कलश 40 फीट ऊंचा है। इस मंदिर में लगने वाले टाइल्स राजस्थान के धौलपुर के साथ ही वियतनाम, फ्रांस, दक्षिण अमेरिका से आए हैं।
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