दही हांडी का पर्व कई राज्यों में पूरे जोर शोर से मनाया जाता है लेकिन आपके लिए ये भी जान लेना जरूरी है कि इस पर्व की शुरूआत हुई कैसे ? धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस पर्व को द्वापर युग से ही मनाया जा रहा है। लोगों का मानना है कि जब कन्हैया छोटे थे तो लोगों के घरों से माखन मिश्री की चोरी किया करते थे और अपने मित्रों में बांट कर खाते थे। प्रभु की इस लीला से गोपियां परेशान हों गईं थी, तो माखन की मटकी को उपर बांधकर लटकाने लगीं, लेकिन इसके बाद भी भगवान श्रीकृष्ण अपने साथियों की टोली के संग हांडियों से मक्खन और दही चुरा लिया करते थे। प्रभु की इसी बाललीला को हर साल जन्माष्टमी के अगले दिन दही हांडी के उत्सव के रूप में धूमधाम के साथ मनाया जाने लगा।
भादो महीेने के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि पर हांडी उत्सव मनाया जाता है। इस दिन मंदिर और गली-मोहल्लों में मटकी में दही, माखन और मिश्री भरकर ऊंचाई पर लटका दिया जाता है। इसके बाद युवाओं की टोलियां एक के उपर एक चढ़कर इस मटकी को फोड़ने का प्रयास करती हैं। जो टोली इस मटकी को फोड़ देती हैं वो विजेता कहलाती है।