हिन्दू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज पर्व के रुप में मनाया जाता है। हरतालिका तीज का पर्व सुखद दांपत्य जीवन और मनचाहा वर की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। इस दिन जहाँ सुहागिन स्त्रियां व्रत रखकर पति की लंबी आयु की कामना करती हैं, वहीं कुवारी कन्याएं मनचाहा वर पाने के लिए व्रत रखकर माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं। इसके साथ ही महिलाएं पूरा दिन पानी तक नहीं पीती हैं। शाम को महिलाएं कथा सुनती हैं और साथ ही माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं। महिलाएं, हरतालिका तीज पर मां पार्वती को सुहाग का सामान, जैसे:- चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, लाल रिबन, आलता, मेहंदी, शीशा, कंघी और वस्त्र अर्पित करती हैं। आइये जानते हैं हरतालिका तीज व्रत की कथा के बारे में...
हरतालिका तीज की कथा-
ज्योतिष के जानकार बताते हैं कि पौराणिक धर्म शास्त्रों के अनुसार, देवाधिदेव महादेव को पतिदेव के रूप में प्राप्त करने की इच्छा से, बाल्यकाल में हिमालय पुत्री गौरी ने गंगा किनारे अधोमुखी होकर घोर तप किया था। बिना अन्न-जल ग्रहण किये, केवल वायु के सेवन से सैकड़ों वर्ष गौरी ने गुजारे। जहाँ उन्होंने ठिठुरते जाड़े में पानी में खड़े रहकर शीत का सामना किया, वहीँ भीषण गर्मी में पंचाग्नि से शरीर को तपाया। और बरसात के दिनों में खुले आसमान के नीचे तपस्या की। अनेक वर्ष केवल पेड़ के सूखे पत्ते चबाकर जीवन निर्वाह किया। हिमाचल पुत्री के तप की धमक जब देवलोक पहुंची, तो सप्तर्षियों ने जाकर पार्वती के शिव प्रेम की परीक्षा ली। लेकिन गौरी को संकल्प पथ से विचलित करने के उनके सारे प्रयत्न विफल साबित हुए। उनकी अटल-अविचल शिव भक्ति से सप्तर्षी प्रसन्न हुए और जाकर महादेव को सारी बात बतायी। कहते हैं कि भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हथिया नक्षत्र में गौरी ने रेत का शिवलिंग बनाकर रात भर उसकी पूजा की। इससे भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हुए और गौरी के सामने उपस्थित होकर वर मांगने को कहा। उसी समय गौरी ने शिव से अपने आप को उनकी अर्द्धागिंनी के रूप में स्वीकार करने का वर मांग लिया। तब से ही मनचाहा वर पाने और पति की लंबी आयु के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखने की प्रथा शुरू हो गयी। कहीं-कहीं तो कुंवारी कन्याएं भी अच्छे वर की कामना के लिए यह व्रत रखती हैं। माना जाता है कि जो भी इस व्रत को विधि-विधान के साथ करता है, भगवान शिव उसकी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं।
मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वह अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करती हैं। साथ ही यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशी बरकरार रखने के उद्देश्य से भी मनाया जाता है। उत्तर भारत के कई राज्यों में इस दिन मेहंदी लगाने और झुला-झूलने की भी प्रथा है।