भगवान गणेश जो सर्वप्रथम पूजनीय हैं और घर-घर में गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दर्शी तक बप्पा विराजमान रहते हैं फिर दसवें दिन गणेश विसर्जन का विधान है पर क्या आपने कभी सोचा है की ऐसा क्यों होता की जिस प्रतिमा का इतने दिन तक प्रेम और भक्ति भाव से पूजन किया, श्रृंगार किया और फिर उनकी विदाई करनी पड़ती है।
गौरी के लाल, गणो के नायक, महादेव के पुत्र और देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय भगवान गणेश, जो रिद्धि-सिद्धि के देवता हैं और इनके आगमन से सभी विघ्नो का अनंत होता है इसलिए ये विघ्नविनाशक हैं। भगवान गणेश का जन्म उत्सव पुरे भारत वर्ष में बड़े हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी से शुरू होकर यह उत्सव अनंत चतुर्दर्शी तक गणपति बप्पा के विसर्जन के साथ संपन्न किया जाता है। पर आखिर गणपति विसर्जन कियों किया जाता है ?
गणेश चतुर्थी को मनाने वाले सभी श्रद्धालु इस दिन स्थापित की गई गणपति जी की प्रतिमा को ग्यारवें दिन विसर्जित करते हैं। इस प्रकार अपने मंगल जीवन की प्रार्थना कर गणेश उत्सव को संपन्न करते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार आज से कई सौ वर्ष पूर्व महर्षि वेदव्यास जी गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी को महाभारत की कथा सुना रहे थे और गणेश जी उस कथा को लिख रहे थे। महर्षि वेदव्यास जी 10 दिनों तक बिना रुके आंख बंद करके कथा सुनाते रहे और गणेश जी लिखते रहे। जब ग्यारहवें दिन व्यास जी ने आंखें खोली तो देखा कि कथा से भाव-विभोर हो कर और भावमयी कथा को लिखते-लिखते गणेशजी के शरीर का तापमान बढ़ गया है। तापमान कम करने के लिए महर्षि ने कई जतन किए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ फिर वेदव्यास जी ने निकट में स्थित एक कुंड के शीतल जल में गणेश जी को स्नान करवा कर वहीँ विराजमान किया जिस से गणपति का ताप सामान्य हो गया और संयोग वश उस दिन अनंत चतुर्दर्शी का दिन था। इस पर गणेश जी ने ये आशीर्वाद दिया जो भी मुझे आज के दिन जल में स्नान करवा कर स्थापित करेगा अनंत चतुर्दर्शी के प्रभाव से और मेरे आशीर्वाद से उसके रोगों का अनंत होगा और उसके जीवन के सभी संताप मिटेंगे बस तभी से इस प्रथा का चलन देश भर में प्रारम्भ हुआ। जहां यह कथा लिखी व सुनाई गई, वह स्थान आज भी अलकनंदा और सरस्वती नदी के संगम तट पर स्थित है। यह पवित्र स्थान देवभूमि उत्तराखंड में श्री बद्रीनाथ धाम से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर भारतीय सीमा के अंतिम गांव माणा में स्थित है। यह स्थान गणेश गुफा के नाम से प्रसिद्ध है, साथ ही यहाँ महृषि वेद व्यास की भी गुफा है। यह स्थान अत्यनत रमणीय और मनोहर है यहाँ पर प्रकृति ने अपनी अनोखी मनोहारी छठा बिखेरी हुई है, जो आलोकिक है। इसलिए गणपति स्थापना के अगले दस दिन तक गणेश जी की पूजा- अर्चना की जाती है और फिर ग्यारहवें दिन जल में गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। साथ ही गणेश विसर्जन इस बात का भी प्रतिक माना जाता है की यह शरीर मिट्टी से बना है और नश्वर है। अंत में इस माया रूपी संसार को छोड़ कर इस देह को मिट्टी में ही विलीन हो जाना है।