Chhath Puja : आज (28 अक्टूबर) से चार दिवसीय महापर्व छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय के साथ हो गई है. हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में भगवान सूर्य और छठी माता को समर्पित यह महापर्व मनाया जाता है. इस दौरान छठ व्रती संतान की सफलता और दीर्घायु के लिए बेहद ही कठिन 36 घंटे का निर्जला उपवास रखते हैं. इस महापर्व में कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि को सबसे पहले नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य और चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.
छठ महापर्व से जुड़ी कथाएं
मान्यताओं के अनुसार श्रीराम और माता सीता ने रावण वध के बाद कार्तिक माह के शुल्क पक्ष की षष्ठी को उपवास रकने के बाद सप्तमी को दोनों ने उगते हुए भगवान सूर्य की पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त किया था. तभी से छठ मनाने की परंपरा चली आ रही है. एक और मान्यता के अनुसार छठी देवी को भगवान सूर्य की बहन माना जाता है और उनको ही प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है.
मान्यताओं के अनुसार छठ की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी और सर्वप्रथम सूर्यपुत्र कर्ण ने ही यह पूजा की थी. अंग प्रदेश यानी वर्तमान बिहार में भागलपुर के राजा थे सूर्यपुत्र कर्ण. कहा जाता है कि कर्ण घंटों तक कमर भर पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देते थे तब से लेकर आज वर्तमान समय में भी अर्घ्य देने की यह परम्परा चली आ रही है.
नहाय खाय का महत्व
इस महापर्व की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है जिसमे छठ व्रती स्नान करने के बाद नए कपड़े धारण करते हैं. छठ पूजा में शुद्धता का विशेष महत्व होता है. नहाय खाय के दिन से पहले घर के सदस्यों द्वारा घर और उसके आसपास की पूरी साफ़-सफाई की जाती है. भगवान भास्कर की पूजा अर्चना करने के बाद सेंधा नमक में बने चना दाल, कद्दू की सब्जी और चावल को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. किसी भी भोजन में प्याज-लहसुन का इस्तेमाल पर पूरी तरह मनाही होती है. नहाय खाय के दिन बनाए गए प्रसाद में बैंगन आदि सब्जी को शामिल नहीं किया जाता है. नहाय खाय के बाद छठ व्रतियों द्वारा अगले दिन शाम को खरना पूजा की जाती है. इस पूजा में व्रती द्वारा शाम के वक़्त मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ की खीर बनाई जाती है जिसे खरना के प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है इसके बाद से 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है. माना यह जाता है कि खरना की पूजा के बाद ही छठी मईया का आगमन होता है.
महापर्व छठ के बाकी दिन
29 अक्टूबर – खरना
30 अक्टूबर – पहला अर्घ्य (डूबते सूर्य को)
31 अक्टूबर - दूसरा अर्घ्य (उगते सूर्य को)
खरना के अगले दिन यानी छठ पूजा का तीसरा दिन बेहद ही ख़ास होता है. इस दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. शाम को भगवन सूर्य को अर्घ्य देने से पहले सूप को फल, ठेकुआ और चावल के लड्डू से सजाया जाता है. इस साल छठ पूजा का पहला अर्घ्य 30 अक्टूबर 2022 को दिया जाएगा
छठ पूजा के चौथे और आखिरी दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है. इस दिन छठ व्रतियों द्वारा पानी में खड़े होकर उगते हुए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है और अर्घ्य दिया जाता है. अर्घ्य देने के छठ के व्रतियों द्वारा पारण करने के बाद आस्था के महापर्व छठ का समापन होता है.
(आशुतोष कुमार)