कार्तिक मास का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है क्योंकि इस मास में अनेक महत्वपूर्ण व्रत एवं त्यौहार आते हैं। जिसमें दिवाली के बाद, कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन आने वाले आंवला नवमी व्रत का विशेष महत्व माना गया है। आंवला नवमी, आज, यानी 02 नवंबर 2022 को है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा-अर्चना की जाती है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु और भगवान शिव वास करते हैं। मान्यता है कि इस दिन आंवले की पूजा करने से आरोग्यता और सुख-समृद्धि का वरदान प्राप्त होता है। आंवला नवमी की कहानी, व्रत के समय कही और सुनी जाती है।
यहां पढ़ें, सुनें और सुनाएं आंवला नवमी की यह विशेष कथा
एक राजा था, जिसने प्रण लिया था कि वह रोज सवा मन आंवला दान करके ही भोजन ग्रहण करेगा। इस कारण उसका नाम आंवलया राजा पड़ गया। एक दिन उसके बेटे और बहू ने सोचा कि राजा इतने सारे आंवले रोजाना दान करते हैं, इस प्रकार तो एक दिन सारा खजाना खाली हो जायेगा। इसलिए बेटे ने राजा से कहा कि उसे इस तरह दान करना बंद कर देना चाहिए। बेटे की बात सुनकर राजा को बहुत दुःख हुआ और राजा-रानी महल छोड़कर बियाबान जंगल में चले गए। राजा, आंवला दान नहीं कर पाया और प्रण के कारण कुछ खाया नहीं। भूख और प्यास से तड़पते हुए राजा-रानी को सात दिन हो गए तब भगवान ने सोचा कि यदि उन्होंने राजा का प्रण नहीं रखा तो उसका विश्वास ख़त्म हो जाएगा।
भगवान ने जंगल में ही महल, राज्य और बाग-बगीचे बना दिए और ढेरों आंवले के पेड़ लगा दिए। सुबह जब राजा-रानी उठे तो उन्होंने देखा कि जंगल में उनके राज्य से भी दुगुना राज्य बसा हुआ है। राजा, रानी से कहने लगे, “रानी देख कहते हैं, सत मत छोड़े। सूरमा सत छोड़या पत जाए, सत की छोड़ी लक्ष्मी फेर मिलेगी आए। आओ नहा-धोकर आंवले दान करें और उसके बाद भोजन ग्रहण करें।” राजा-रानी ने आंवले दान करके भोजन ग्रहण किया और खुशी-खुशी जंगल में रहने लगे।
उधर आंवला देवता का अपमान करने व माता-पिता से बुरा व्यवहार करने के कारण, राजा के बेटे और बहू के बुरे दिन शुरू हो गए। राज्य, दुश्मनों ने छीन लिया और वे दाने-दाने को मोहताज हो गए। जिस कारण, काम ढूँढ़ते हुए, वे अपने पिता जी के राज्य में आ पहुंचे। उनके हालात इतने बिगड़े हुए थे कि राजा उन्हें पहचान नहीं पाया और उन्हें काम पर रख लिया। बेटा और बहू सोच भी नहीं सकते थे कि उनके माता-पिता इतने बड़े राज्य के मालिक भी हो सकते हैं। गरीबी और बुरे समय के कारण, उन्होंने भी अपने माता-पिता को नहीं पहचाना। एक दिन बहू ने सास के बाल गूंथते समय उनकी पीठ पर मस्सा देखा। यह देखकर, उसे रोना आने लगा और उसके आंसू टपक-टपककर, सास की पीठ पर गिरने लगे। रानी ने तुरंत पलटकर देखा और पूछा कि, “तू क्यों रो रही है?” उसने बताया कि, “आपकी पीठ जैसा मस्सा, मेरी सास की पीठ पर भी था। मैंने अपने सास-ससुर को आंवला दान करने से मना कर दिया था, इसलिए वे घर छोड़कर कहीं चले गए।” तब रानी ने उसे पहचान लिया। सारा हाल पूछा और अपना हाल भी बताया। अपने बेटे-बहू को समझाया कि दान करने से धन कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है। बेटे और बहू के बुरे दिन अब समाप्त हो गए और वे सुख से राजा-रानी के साथ रहने लगे।
कथा के समापन के बाद भगवान से सच्चे मन से प्रार्थना करें कि, “हे भगवान, जैसा राजा रानी का सत रखा वैसा सबका सत रखना। कहते-सुनते सारे परिवार का सुख रखना।” मान्यता है कि इस प्रकार पूजा विधि-विधान से पूजा अर्चना करने और व्रत कथा पढ़ने से व्रती की हर मनोकामना पूर्ण होती है और भगवान की कृपा उस पर सदैव बनी रहती है।