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जानें 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में और उनकी प्रचलित कहानियां...

 

जिनका ना कोई ओर है और ना कोई छोर। वो देवों के देव हैं। वो महादेव हैं। 12 ज्योतिर्लिंगों के रुप में धरती पर विराजमान हैं। अलग-अलग हिस्सों में स्थापित महादेव के हर ज्योतिर्लिंग के पीछे एक अलग कहानी है। लेकिन उनके 12 ज्योतिर्लिंगों का अपना अलग ही महत्व है। पुराणों और धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इन 12 स्थानों पर जो शिवलिंग मौजूद हैं। उनमें ज्योति के रूप में स्वयं भगवान शिव विराजमान हैं और यही कारण है कि इन्हें ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। तो आज हम आप को बताएंगे 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

इन 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे पहला ज्योतिर्लिंग है सोमनाथ। गुजरात के वेरावल बंदरगाह के पास स्थित नागर शैली में स्थापित ये पहला देवालय है। कहा जाता है कि सृष्टि से पहले भी सोमेश्वर सोमनाथ थे। शिव पुराण की मानें तो दक्ष प्रजापति के श्राप के कारण चन्द्रमा का क्षय होता जा रहा था। तब चन्द्रमा ने अपनी रक्षा के लिए भगवान शिव की पूजा की और इससे प्रसन्न होकर गुजरात के समुद्रतट पर सोमेश्वर सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

सोमनाथ के बाद बारी आती है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की जो दूसरे स्थान पर आता है। आंध्र प्रदेश के श्री शैल पर्वत पर स्थित इस ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा जाता है कि। ब्रह्माण्ड की प्ररिक्रमा में गणेश जी के विजयी होने के बाद कुमार कार्तिकेय रूठ कर दक्षिण में कौंच पर्वत पर जाकर रहने लगे। कुमार कार्तिकेय को मनाने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती भी वहां पहुंचे। उनके प्रतीक रूप में ही जो ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ। वो मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कहलाया।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

अब बात करते हैं महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की। जो तीसरे ज्योतिर्लिंग के रुप में जाना जाता है। मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित इस ज्योतिर्लिंग के बारे में कथा प्रचलित है कि। दूषण नाम का एक असुर के अत्याचार से लोग त्रस्त थे। उससे मुक्ति पाने के लिए ब्राह्मणों ने पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की पूजा शुरू की। दूषण ने ब्राह्मणों को मारने के लिए जैसे ही खड्ग उठाया। तो पार्थिव शिवलिंग से महाकाल प्रकट हो गए और दूषण को भष्म कर दिया। इसके बाद ब्राह्मणों ने भगवान शिव को वहीं रुकने का निवेदन किया। भोलेनाथ ने उनकी विनती स्वीकार की और वही ज्योतिर्लिंग के रुप में बस गए।

ओंकारेश्वर और दूसरा ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग

चौथे ज्योतिर्लिंग के रूप में ओंकारेश्वर और दूसरा ममलेश्वर को माना जाता है। कहा जाता है कि नर्मदा के पावन तट पर विंध्य पर्वत ने भगवान शिव का पार्थिव लिंग बनाकर कई वर्षों तक अटूट भक्ति के साथ तपस्या की। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए। ठीक उसी समय देवतागण और ऋषिगण भी वहां पहुंच गए और भगवान शिव से अनुरोध किया कि यहां ज्योतिर्लिंग दो स्वरूपों में बंट जाए और फिर ज्योतिर्लिंग दो स्वरूपों में बंट गया। जिसमें एक ओंकारेश्वर और दूसरा ममलेश्वर कहलाया।

बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

पांचवे ज्योतिर्लिंग के रुप में स्थापित है झारखंड के देवघर में स्थित बाबा बैद्यनाथ। इस ज्योतिर्लिंग की कहानी रामायण काल से जुड़ी है। दशानन रावण भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर तप कर भोलेनाथ को प्रसन्न किया और वरदान में लंका चल कर निवास करने का वरदान मांगा। भोलेनाथ ने आशिर्वाद देते हुए कामना शिवलिंग दे दिया और साथ में ये भी शर्त रख दी कि अगर शिवलिंग को रास्ते में कहीं रखा तो वो वहीं स्थापित हो जाएंगे। कहते हैं कि जब रावण देवघर पहुंचा तो उसे लघुशंका आई। ऐसे में उसने बैजू नामक एक ग्वाले को शिवलिंग देकर लघुशंका के लिए चला गया और बैजु ने शिवलिंग को धरती पर रख दिया। फिर तो वहीं हुआ जो भगवान शिव ने शर्त रखी थी। लाख कोशिश के बाद भी रावण वहां से शिवलिंग हिला भी नहीं पाया और गुस्से में शिवलिंग को अंगुठे से दबा कर चला गया।

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग

बात करें छठे ज्योतिर्लिंग की तो। महाराष्ट्र में पुणे से लगभग 110 किमी दूर स्थित है छठा ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर। यहां के बारे में कहा जाता है कि कुंभकर्ण की पत्नी कर्कटी के गर्भ से भीम नाम के एक राक्षस का जन्म हुआ था। उसने तपस्या कर ब्रह्मा जी से लोक विजयी होने का वर मांगा। वरदान मिलते ही उसने देवताओं को सताना शुरू कर दिया। पीड़ित देवता भगवान शिव की शरण में पहुंचे। तब भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रुप में प्रकट हुए और भीम राक्षस का वध कर दिया। इसके बाद यह ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

रामेश्वर ज्योतिर्लिंग

सांतवां ज्योतिर्लिंग रामेश्वर ज्योतिर्लिंग है यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के सागर तट पर स्थित है। लंका पर चढ़ाई करने के लिए जब भगवान राम सागर पर सेतु निर्माण करवा रहे थे। उस समय कार्य में सफलता के लिए प्रभु श्रीराम ने पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर भगवान शिव की विधिवत पूजा की। प्रभु श्रीराम की पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रुप में प्रकट हुए।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

गुजरात के द्वारकापुरी से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है आठवां ज्योतिर्लिंग नागेश्वर ज्योतिर्लिंग शिव पुराण की कथा के अनुसार सुप्रिय नाम का एक शिव भक्त था जिसे दारुका नामक राक्षस ने बंदी बना लिया था। बंदी गृह में भी उसने भगवान शिव की भक्ति नहीं छोड़ी। शिव की भक्ति को अपने विरुद्ध षड्यंत्र समझकर दारुक ने सुप्रिय को मारना चाहा। उसी समय भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और अपने भक्त की रक्षा की।

विश्ववेश्वर ज्योतिर्लिंग

भगवान शिव नौवे ज्योतिर्लिंग के रूप में काशी में विराजित हैं। इसे विश्ववेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। कहते हैं कि एक बार पार्वती माता ने भगवान शिव से कहा कि वह कैलाश को छोड़कर कहीं और रहना चाहती हैं। तब माता पार्वती की इस इच्छा को पूरी करने के लिए भगवान शिव काशी में विश्वनाथ के रूप में प्रकट हुए। वर्तमान में बाबा विश्वनाथ धाम के कॉरिडोर बन जाने से इस धाम की दिव्यता और भव्यता देखते बनती है।

त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग

नासिक में गोदावरी नदी के उद्गम स्थल पर स्थित है दसवां ज्योतिर्लिंग। त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग। शिवपुराण की कथा के अनुसार गोदावरी नदी और गौतम ऋषि की प्रार्थना पर यहां भोलेनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। ये एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों एक साथ शिवलिंग में स्थापित हैं।

बाबा केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

बाबा केदारनाथ 11वें ज्योतिर्लिंग के रूप में जाने जाते है। पुराणों के अनुसार सतयुग में भगवान विष्णु ने नर और नारायण के रूप में अवतार लिया था। अलकनंदा नदी के दोनों किनारों पर मौजूद नर और नारायण पर्वत पर इन्होंने घोर तपस्या की थी। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए तब नर और नारायण ने भगवान शिव से इस क्षेत्र में निवास करने और यहां आने वाले भक्तों को जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति देने का वरदान मांगा। नर और नारायण की प्रार्थना पर भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और यहीं कारण है कि भगवान शिव केदारनाथ कहलाये।

घुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग

12 ज्योतिर्लिंगों में घुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग को अंतिम ज्योतिर्लिंग माना जाता है। शिव पुराण की कथा के अनुसार घुश्मा नाम की एक शिव भक्त थी। इसकी बड़ी बहन सुदेहा थी जो उसकी सौतन भी थी। सुदेहा की कोई संतान नहीं थी। एक दिन इर्ष्या के कारण सुदेहा ने घुश्मा के पुत्र की हत्या कर दी लेकिन घुश्मा की अटूट भक्ति को देखकर भगवान शिव प्रकट हुए और उसके मरे हुए बेटे को पुनः जीवित कर दिया। जैसे ही भगवान शिव घुश्मा की बहन सुदेहा को मारने के लिए तत्पर हुए घुश्मा नें भगवान से अपनी बहन सुदेहा को क्षमा करने और उसी स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रुप में विराजमान होने की विनती की। भगवान शिव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और घुश्मेश नाम से ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं स्थापित हो गए।

रजत द्विवेदी