उत्तराखंड: प्रिथ्वी का बैंकुठ कहे जाने वाले और चारोंधामों में से एक बद्रीनाथ धाम के आज सुबह 7:10 मिनट पर पूरे विधि-विधान के साथ कपाट खोले गए। इस दौरान हजारों तीर्थयात्री मंदिर में पूजा-अर्चना करने के लिए मौजूद रहे। पूरे मंदिर को करीब 10 क्विटल से अधिक फूलों से भव्य तरीके से सजाया गया था। वहीं बद्रीनाथ धाम में कपाट खुलने के साथ ही हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा भी की गई। वहां भक्तों में भारी उत्साह देखा गया। दूसरी ओर कपाट खुलने से पहले ही दर्शन के लिए तकरीबन 5 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने रजिस्ट्रेशन करा लिया है। बता दे कि गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ धाम के कपाट पहले ही खुल चुके हैं। बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ ही चारों धाम अब भक्तों के लिए खुल चुके हैं।
आप को बता दे कि बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की तैयारियां 24 तारीख से शुरू हो गई थीं। गरुड़ जी के बद्रीनाथ प्रस्थान के साथ ही जोशीमठ के नृसिंह मंदिर में गरुड़ छाड़ मेला हुआ और उसी दिन डिमरी पंचायत श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर डिम्मर से गाडु घड़ा तेल कलश लेकर नृसिंह मंदिर जोशीमठ पहुंची। 25 अप्रैल को आदि गुरु शंकराचार्य जी की गद्दी के साथ तेल कलश यात्रा पांडुकेश्वर रात्रि विश्राम के लिए पहुंची और 26 तारीख को शंकराचार्य जी की गद्दी, श्री रावल व गाडु तेल कलश और उद्धव, कुबेर सहित श्री बद्रीनाथ धाम पहुंचे। जिसके बाद आजसुबह 7 बजकर 10 मिनट पर भगवान बद्री विशाल के दर्शन के लिए धाम के कपाट सभी श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए।
कहते हैं कि हर व्यक्ति को जीवन में एक बार बद्रीनाथ के दर्शन अवश्य करने चाहिए। शास्त्रों के अनुसार बद्रीनाथ को दूसरा बैकुण्ठ बताया है। एक बैकुण्ठ क्षीर सागर है जहां भगवान विष्णु निवास करते हैं। दूसरा भगवान विष्णु का निवास बद्रीनाथ बताया गया है। इस धाम के बारे में कहा जाता है कि यह कभी भगवान शिव का निवास स्थान था लेकिन भगवान विष्णु ने इसे भगवान शिव से मांग लिया था।
कहा जाता है कि एक बार मां लक्ष्मी जब भगवान विष्णु से रूठकर मायके चली गईं तब भगवान विष्णु यहां आकर तपस्या करने लगे। जब मां लक्ष्मी की नाराजगी खत्म हुई तो वह भगवान विष्णु को ढूंढते हुए यहां आई। उस समय इस स्थान पर बदरी का वन यानी बेड़ फल का जंगल था । बदरी के वन में बैठकर भगवान विष्णु ने तपस्या की थी इसलिए मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को बदरीनाथ नाम दिया।
रजत द्विवेदी