मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम की धर्म पत्नी माता-सीता जिन्हें लोग - जानकी, मैथिली, वैदेही और ना जाने किन-किन नामों से जानते हैं। माना तो ये भी जाता है कि माता सीता, देवी महालक्ष्मी का अवतार हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि माता-सीता ने राजा जनक के घर में क्यों जन्म लिया ? अपने पूर्व जन्म में कौन थीं माता सीता ?
जब-जब धर्म की हानि होती है और पाप बढ़ता है तब-तब भगवान धरती पर प्रगट होते हैं। ये सम्पूर्ण सृष्टि भगवती जगदम्बा की ही माया है। आज से कई वर्ष पूर्व त्रेता युग में एक समय भगवान श्री हरी विष्णु क्षीरसागर में योग निद्रा में लीन थे और देवी लक्ष्मी प्रभु के चरण दबा रही थीं। तब भगवती लक्ष्मी ने श्री हरी के ह्रदय में विराजमान हो प्रभु से प्रार्थना करी, की मैं पृथ्वी लोक पर कुछ समय के लिए जाना चाहती हूँ और इस प्रकार श्री हरी की स्वीकृति ले कर देवी-लक्ष्मी पृथ्वी लोक के भ्रमण पर चली गई और वहां देवी की भेंट देवताओं के गुरु बृहस्पति से हुई, देव गुरु बृहस्पति ने माँ से इच्छा प्रगट की, के हे महामाया देवताओं के उद्धार और असुरों के विनाश के लिए आप मेरे कुल में जन्म लें। इस प्रकार देवी लक्ष्मी ने बृहस्पति के पुत्र ब्रह्मऋषि कुशध्वज की पुत्री के रूप में जन्म लिया। अपने जन्म के कुछ समय बाद ही उस कन्या को वेदों का ज्ञान हो गया था, इसलिए उस कन्या का नाम वेदवती रखा गया। वेदवती एक बहुत ही सुन्दर कन्या थी जो भगवान विष्णु की परम भक्त थी। वेदवती अपनी भक्ति में इतनी लीन हो गईं की भगवान विष्णु से प्रेम करने लगी अपने मन में श्री हरी से विवाह की इच्छा ले कठोर तपस्या करने लगीं, पालन कर्ता श्री हरी ने वेदवती को दर्शन देकर कहा की इस विष्णु स्वरुप में मैं आपकी यह मनोकामना पूर्ण नहीं कर सकता किन्तु अगले अवतार में, मैं आपकी मनोकामना पूर्ण होने का वचन देता हूँ, पर देवी वेदवती तो पुनः श्री हरी के ध्यान में लीन हो गईं और फिर एक बार उस स्थान पर परम शक्तिशाली असुर रावण वहां से गुजर रहा था और उसकी नज़र वेदवती पर पड़ी।
रावण ने वेदवती से विवाह का प्रस्ताव रखा और वेदवती के अस्वीकार करने पर उसने वेदवती के केश पकड़ कर अपमान करना चाहा, किन्तु परपुरुष का स्पर्श पाते ही वेदवती ने तत्काल अपनी देह को भसम कर रावण को श्राप दिया की मेरे ही कारण तेरी मृत्यु होगी मैं ही तेरे अहंकार और सम्पूर्ण कुल का सर्वनाश करुँगी। फिर क्या था वेदवती ही अपने अगले जन्म में, मिथला नरेश जनक की पुत्री सीता के रूप में प्रगट हुईं। मिथिला नगर में भयंकर अकाल के कारण जब सूखा पड़ गया। तो वहां के दुःख दूर करने, मिथिला नगर में साक्षात् भगवती लक्ष्मी स्वरूपा वेदवती ने अवतार लिया।
देवी लक्ष्मी धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी हैं जिनके आगमन से सुखों के भंडार भरते हैं। त्रिकाला दृस्टि रखने वाले ऋषि मुनियों ने राजा जनक को सोने के हल से खेत जोतने को कहा… जहाँ मिट्टी के भीतर से सोने और मणियों से जड़े सूप में एक कन्या मिली जिनका नाम सीता रखा गया। राजा जनक की पुत्री होने के कारण माता-सीता को जानकी नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। उस कन्या के जन्म लेते ही वर्षा होने लगी और हरी-हरी खेती सर-सर लहराने लगी राज्य में धन-वैभव बढ़ता गया। जिस दिन माता सीता का जन्म हुआ उस दिन वैसाख मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी जिसे आज हम सीता नवमी के नाम से जानते हैं। माता सीता के जन्म के कुछ समय बाद राजा जनक और रानी सुनयना के गर्भ से तीन कन्याओं ने जन्म लिया जिनका नाम मांडवी, उर्मिला और श्रुतकीर्ति रखा गया ये तीनो माता-सीता की बहन थीं। आगे चलकर भगवान श्री हरी विष्णु ने अपने वचन अनुसार श्रीराम के अवतार में, सीता स्वयंवर में धनुष भंग कर माता-सीता को अपनी पत्नी रूप में वरण किया। तो वहीं माता सीता की बहन मांडवी का विवाह श्रीराम के भाई भरत, उर्मिला का लक्ष्मण और शत्रुघ्न का श्रुतकीर्ति से सम्पन हुआ।
रमन शर्मा