सावन का पावन महीना है और सच्चे मन से महादेव की पूजा से जीवन में उनकी कृपा महाप्रसाद पाया जा सकता है। शिव जगत पिता हैं और हम सब उनकी संतान। वो भगवान हैं और हम सब उनके भक्त। वो जगतगुरु हैं और हम सब उनके शिष्य। लेकिन आज हम आपको बताएंगे कि भगवान शिव के वास्तव में कितने शिष्य थे और इस बारे में क्या कहते हैं पौराणिक आख्यान ?
शिव ने दिया सप्तऋषियों को ज्ञान
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सबसे पहले देवाधिदेव महादेव ने अपना ज्ञान 7 लोगों को दिया था। ये ही आगे चलकर ब्रह्मर्षि कहलाए। इन 7 ऋषियों ने शिव से मिले ज्ञान के साथ अलग-अलग दिशाओं में भ्रमण किया और दुनिया के कोने-कोने में धर्म और वैदिक ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया।
भगवान शिव ही पहले योगी हैं और मानव स्वभाव की सबसे गहरी समझ उन्हीं को है। उन्होंने अपने ज्ञान के विस्तार के लिए 7 ऋषियों को चुना और उनको योग के अलग-अलग पहलुओं का ज्ञान दिया, जो योग के 7 बुनियादी पहलू बन गए। वक्त के साथ इन 7 रूपों से सैकड़ों शाखाएं निकल आईं।
वैदिक काल में 7 प्रकार के ऋषिगण
सप्त ब्रह्मर्षि देवर्षि, महर्षि, परमर्षयः।
कण्डर्षिश्च श्रुतर्षिश्च राजर्षिश्च क्रमावशः।।
अर्थात वैदिक काल में ब्रह्मर्षि, देवर्षि, महर्षि, परमर्षि, काण्डर्षि, श्रुतर्षि और राजर्षि... ये 7 प्रकार के ऋषिगण होते थे।
सब में शिव, शिव में सब
भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। शिव राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं। सबसे पहले मोक्ष या निर्वाण का स्वाद भगवान शिव ने ही चखा। आदि योगी शिव ने ही इस संभावना को जन्म दिया कि मानव जाति अपने मौजूदा अस्तित्व की सीमाओं से भी आगे जा सकती है।
आदि गुरु हैं शिव
योग विद्या के मुताबिक 15 हजार साल से भी पहले शिव ने सिद्धि प्राप्त की थी और परमानंद की स्थिति में हिमालय पर नृत्य किया था। जिन लोगों ने यह नृत्य देखा उनमें सप्तऋषि भी शामिल थे जो इसका रहस्य जानना चाहते थे। पूछने पर शिव जी ने उनसे कहा कि ''यह रहस्य लाखों साल में भी जानना संभव नहीं है। जो मैंने जाना, उसे क्षणभर में न बताया जा सकता है और न पाया जा सकता है।''
इसके बाद सातों ऋषि तपस्या में लीन हो गए। करीब 84 साल की लंबी साधना के बाद जब ग्रीष्म संक्रांति के शरद संक्रांति में बदलने पर पहली पूर्णिमा का दिन आया, जब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायण में चले गए तब आदि योगी शिव ने इन 7 तपस्वियों को देखा तो पाया कि ये अब भी कड़ी साधना कर रहे हैं और ज्ञान हासिल करने के लिए तत्पर हैं। शिव ने अगली पूर्णिमा पर इनके गुरु बनने का निर्णय लिया। इस तरह शिव ने स्वयं को आदिगुरु में रूपांतरित कर लिया।
पौराणिक मान्यता के अनुसार कहते हैं भगवान शिव ने ही गुरु शिष्य की परंपरा का आरंभ किया था। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई जो आगे चलकर कई संप्रदायों में विभक्त हो गई।
रजत द्विवेदी