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माँ भगवती के साथ हमेशा कोई ना कोई देवता सदैव उपस्थित रहते हैं लेकिन हनुमान जी महाराज और बाबा भैरवनाथ माता के साथ विशेष रूप विराजमान रहते हैं। यह अकारण ही नहीं है बल्कि इससे जुड़े पौराणिक संदर्भ हैं । दरअसल, महादेव की अर्धांगनी माता पार्वती हैं और भोलेनाथ के ही रूद्रावतार के रूप में हनुमान जी का अवतरण त्रेतायुग में हुआ। इस नाते हनुमान जी माँ भगवती के पुत्र के रूप में सदा उनके साथ रहते हैं। वहीं लक्ष्मी स्वरूपा माता सीता जब प्रभु राम के साथ वनवास में थीं तो रावण द्वारा उनके हरण के बाद हनुमान जी ने ही लंका में उनके होने का पता लगाया था और माता सीता से अजर-अमर होने का वरदान प्राप्त किया ।
इसी प्रकार जब माँ भगवती ने देवी त्रिकुटा के रूप में अवतार लिया तब एक ओर प्रभु श्रीराम लंका विजय के बाद आयोध्या लोट रहे थे तो वहीं देवी त्रिकुटा प्रभु राम की स्तुति कर रही थीं। श्रीराम ने देवी त्रिकुटा को दर्शन देकर वैष्णो धर्म की महिमा को बढ़ाने के लिए हनुमान जी को माता की सेवा में रहने की आज्ञा दी। माता ने हनुमान जी को अपना प्रमुख गण बना लिया और इस प्रकार वैष्णो देवी के साथ हनुमान जी सदा-सदा के लिए लांगुरिया रूप में पूजे जाने लगे।