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एकादशी व्रत की महिमा अनंत है। जहां अन्य व्रतों के करने से पुण्य मिलता है किंतु एक समय के बाद खत्म भी हो सकता है वहीं एकादशी व्रत को श्रीहरि की प्राप्ति का व्रत बतलाया गया है और इससे मिलने वाले पुण्यों का कभी क्षय नहीं होता है। अर्थात इस मृत्युलोक से जाने के बाद भी एकादशी के महान व्रत का पुण्य मनुष्य के साथ रहता है। साल में कुल 24 एकादशी व्रत होते हैं यानी एक महीने में दो। हर महीने शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से 11वें दिन और कृष्ण पक्ष की अमावस्या से 11 वें दिन एकादशी का व्रत आता है। जिस साल अधिकमास लगता है उस साल एकादशी व्रत 26 हो जाते हैं। एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए विष्णु चालीसा और विष्णु सहस्त्रनाम इत्यादि का पाठ करना चाहिए। इस दिन हरि नाम का कीर्तन और जप अति फलदायी होता है। वैसे तो हर एकादशी का व्रत भगवत प्राप्ति कराने वाला है लेकिन हमारे शास्त्रों में 5 एकादशियों की विशेष महिमा बताई गई है।
निर्जला एकादशी - ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते है यानी इसमें जल भी ग्रहण नहीं किया जाता । ऐसी मान्यता है कि कोई अगर पूरे साल एक भी एकादशी का व्रत नहीं कर पाता है और सिर्फ निर्जला एकादशी का व्रत भक्तिपूर्वक कर लेता है तो उसे सभी एकादशियों का फल मिल जाता है । भगवान विष्णु की उस पर परम कृपा होती है ।
देवउठनी एकादशी - कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवोत्थानी या देवउठनी एकादशी मनाई जाती है । भगवान विष्णु 4 महीने के शयन के बाद इसी दिन जागते हैं इसीलिए इसे देवउठनी एकादशी कहते हैं। इस दिन से मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं ।
उत्पन्ना एकादशी - मार्गशीर्ष माह की पहली एकादशी उत्पन्ना एकादशी कहलाती है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को भक्तिपूर्वक करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी तिथि पर भगवान विष्णु के शरीर से देवी एकादशी उत्पन्न हुईं और मुर नामक राक्षस का वध कर भगवान विष्णु के प्राण की रक्षा की थी ।
षटतिला एकादशी - माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी कहा जाता है। इस व्रत में भगवान विष्णु को तिल का भोग लगाने का विधान है । ऐसी मान्यता है कि षटतिला एकादशी के दिन व्यक्ति जितना तिल का दान करता है उसे उतने हजार वर्ष तक स्वर्ग में स्थान मिलता है । पद्म पुराण के अनुसार तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु से ही हुई है ।
आमलकी एकादशी - फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी कहते हैं। इस दिन स्वयं भगवान विष्णु मां लक्ष्मी के साथ आंवले के वृक्ष पर निवास करते हैं । यही वजह है कि इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा और परिक्रमा की जाती है। इस दिन आंवला दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
एकादशी व्रत के नियम
एकादशी से एक दिन पहले दशमी की रात में भोजन न करें
दशमी को तामसिक खाद्य पदार्थों का कतई सेवन न करें
एकादशी को सुबह जल्दी स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें
इस दिन काले रंग के कपड़े न पहनें, चावल का सेवन न करें
दशमी और एकादशी दोनों दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें
व्रत का पारण द्वादशी तिथि लगने पर सूर्योदय के बाद करें
भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजा के बाद ही पारण करें
तामसिक या बैंगन, साग, मसूर की दाल आदि प्रयोग न करें
एकादशी व्रत दिन क्या करें