Sanskar
Related News

श्रीरंगनाथ स्वामी मंदिर : महज मंदिर नहीं, एक पूरा का पूरा शहर है

सनातन धर्म की हृदयस्थली, भारत। यूं तो यहां लाखों मंदिर हैं जिनकी अपनी-अपनी मान्यताएं और विशेषताएं हैं, लेकिन तमिलनाडु का श्रीरंगनाथ स्वामी मंदिर अनूठा है। जितनी इसकी पौराणिक मान्यता है उतना ही इसका ऐतिहासिक महत्व भी है। दुनिया के इस सबसे बड़े मंदिर में भगवान विष्णु, श्री कृष्ण, श्रीराम और मां लक्ष्मी के साथ अन्य देवी-देवताओं के विग्रह हैं लेकिन इस मंदिर के स्वामी कहलाते हैं भगवान श्री रंगनाथ, जो भगवान विष्णु के अवतार है।

 

भारत का सबसे बड़ा पूजा स्थल

 

तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली जिले के श्रीरंगम शहर में स्थापित है प्रसिद्ध श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर, जो 156 एकड़ में फैला भारत का सबसे बड़ा पूजा स्थल है। ये मात्र एक मंदिर परिसर नहीं बल्कि पूरा नगर है जिसमें 21 गोपुरम स्थापित हैं । सबसे विशाल गोपुरम की ऊंचाई है 237 फीट है । इसे राजगोपुरम के नाम से जाना जाता है। यहीं विराजमान हैं भगवान श्री रंगनाथ जी। वैसे पूरे मंदिर परिसर में अलग-अलग देवी-देवताओं के 80 पूजा-स्थल और 41 मंडपम स्थापित हैं। धरती का बैकुंठ कहे जाने वाले इस मंदिर का निर्माण द्रविण शैली के वास्तुशिल्प के आधार पर किया गया है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित 108 दिव्य देसमों में से सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।

 

श्रीराम रूप में विराजे हैं विष्णु जी

 

पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु यहां श्रीराम के रूप में विराजमान हैं तो मां लक्ष्मी को ‘रंगनायकी’ कहा जाता है। इस मंदिर का इतिहास जितना प्राचीन है उससे कहीं ज्यादा विराट है इसके निर्माण से जुड़ी गाथा। बहुत समय पहले की बात है गोदावरी नदी के तट पर ऋषि गौतम का आश्रम था। वो इतने महान तपस्वी थे कि अपने तप के बल पर गोदावरी नदी को देव लोक से धरती पर ले आए थे । लेकिन ऋषि महाराज पर गौहत्या का झूठा आरोप लगा और उन्हें अपना आश्रम छोड़कर, श्रीरंगम आना पड़ा। यहां उन्होंने भगवान विष्णु की कड़ी तपस्या की। भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और रंगनाथ स्वामी के रूप में दर्शन दिए। बाद में यहां मंदिर का निर्माण किया गया। वनवास के दौरान भगवान श्री राम ने यहां काफी समय व्यतीत किया और देवी-देवताओं की आराधना की।

 

क्या कहती है कथा?

 

प्रभु राम ने जब लंका पर विजय प्राप्त की तो रावण के भाई विभीषण ने उनके स्वरूप रंगनाथस्वामी को लंका ले जाने की अनुमति मांगी. हालांकि, जब विभीषण रंगनाथस्वामी को उठाकर ले जा रहे थे तो वह कावेरी नदी के किनारे पहुंचे और यहां पर उन्होंने दैनिक पूजा के लिए प्रतिमा को नीचे रख दिया । लेकिन जब पूजा के बाद उन्होंने प्रतिमा को उठाया तो वे उठा नहीं सके। इसके बाद, विभीषण को कावेरी नदी को मिले वरदान के बारे में पता चला और उन्होंने रंगनाथस्वामी को यहीं पर स्थापित कर दिया. मान्यता है कि इसके बाद विभीषण हर 12 साल में रंगनाथस्वामी की पूजा करने श्रीरंगम आते हैं ।

 

मंदिर की बनावट है अद्भुत

 

समय बीतने के साथ-साथ मंदिर की भव्यता भी बढ़ती रही ।  चोल, पांड्या, होयसाल और विजयनगर राजवंश का इस क्षेत्र पर राज रहा और वो अपने-अपने कालखंड में मंदिर का जीर्णोद्धार और विस्तार करते रहे। प्रत्येक राजवंश की अलग वास्तुकला रही जिसकी झलक उनके द्वारा अपने-अपने समय मे किए गए निर्माण में भी दिखाए देती है। यहां सैकडों मूर्तियां, प्राकृतिक रंगों से बनी कलाकृतियां और प्राचीन पांडुलिपियां देखने को मिलती हैं। यहां तमिल भाषा के साथ संस्कृत, तेलुगु, मराठी, ओडिया और कन्नड़ भाषा में 800 से अधिक शिलालेख अंकित हैं जो आपको बीते समय की यात्रा पर ले जाते हैं।

 

बुद्धिजीवियों का मानना हैं श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर का वैभव इतना विराट है कि इस पर एक नहीं कई पीएचडी लिखी जा सकती हैं। वाकई, श्रीरंगनाथ स्वामी मंदिर का एक-एक भाग धर्म, कला, साहित्य और संस्कृति का अनोखा प्रतीक है।

 

:- नईम अहमद