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क्या होता है मंदिर का गर्भगृह, क्या कहते हैं शास्त्रोक्त नियम ?

जब भी आप किसी मंदिर में जाते हैं तो उसमें एक ऐसा विशेष स्थान होता है जहां देवी या देवता की प्रतिमा स्थापित होती है। अगर शिवमंदिर है तो वहां शिवलिंग स्थापित होगा। बस, यही स्थान कहलाता है गर्भगृह। क्या होता है गर्भगृह का आकार, क्या है इसका धार्मिक महत्व और क्या होते हैं इससे जुड़े नियम, आइये जानते हैं ।

 

आस्था का केंद्र है मंदिर

 

भारत मंदिरों का देश है, देश भर छोटे-बड़े करीब 20 लाख मंदिर हैं । कई मंदिर तो सैकड़ों-हजारों साल पुराने हैं और उनमें आज भी लोगों की जबरदस्त आस्था है । ये मंदिर या देवालय आस्था के ऐसे केंद्र हैं जो सनातन धर्म परंपरा के तहत हिंदू समाज को आपस में जोड़े हुए हैं । देश में कई ऐसे मंदिर हैं जहां हर रोज लाखों लोग पहुंचते हैं, जैसे- माता वैष्णो देवी, तिरुपति बालाजी, महाकालेश्वर मंदिर, खाटू श्याम मंदिर, बांके बिहारी मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर और अयोध्या का नवनिर्मित राममंदिर। कटड़ा में माता वैष्णों देवी का दरबार तो दिन-रात खुला रहता है और कभी बंद ही नहीं होता...जाहिर है इस मंदिर के प्रति लोगों की अटूट आस्था है।      

 

मंदिर का हृदयस्थान है गर्भगृह

 

खैर, हर मंदिर में एक स्थान ऐसा होता है जो सबसे विशेष होता है। वही कहलाता है गर्भगृह। गर्भगृह मंदिर का हृदयस्थान है। इसे ब्रह्मांड के सूक्ष्म जगत का प्रतिनिधि भी माना जाता है। यहीं स्थापित रहती हैं देवी या देवता की मूर्ति । मंदिर का यही सबसे पवित्र स्थान भी होता है जिसमें सभी को प्रवेश करने की अनुमति नहीं होती । इसके पीछे उस स्थान की पवित्रता बनाये रखना, स्वच्छता रखना और उस स्थान का छोटा होना भी एक कारण होता है। गर्भगृह में ही पूजा-अर्चना, अनुष्ठान और भोग आदि से जुड़ी महत्वपूर्ण सामग्री रहती है। गर्भगृह के बाहर चारों ओर परिक्रमा का स्थान बना होता है, जबकि गर्भगृह के ठीक सामने का स्थान हॉलनुमा होता है जहां से भक्त भगवान के दर्शन पाते हैं।

 

मंदिर के गर्भ को एक मां के गर्भ जैसा गोल और करीब-करीब बंद सा बनाया जाता है। उसमें सिर्फ एक ही छोटा सा मुख्य द्वार रहता है। अगर यहां अपने ईष्टदेव की महिमा से जुड़ा उद्घोष या जयकारा लगाया जाये तो चारों ओर एक ध्वनिगर्भ निर्मित हो जाता है। इससे एक दिव्य, अलौकिक और आध्यात्मिक वातावरण भी निर्मित होता है।

 

गर्भगृह सबसे पवित्र

 

इस महत्वपूर्ण परिसर में भक्तों को तन और मन से पवित्र होकर प्रवेश करना होता है। हिंदू धर्म में मंदिर के गर्भगृह में किसी भी प्रकार के अमर्यादित आचरण की सख्त मनाही होती है। वास्तु के अनुसार गर्भगृह का निर्माण मंदिर के बीचों-बीच किया जाता है । इसी स्थान पर सबसे ज्यादा सकारात्मक ऊर्जा होती है । मान्यता है कि यहां पहुंचने मात्र से व्यक्ति की पांचों ज्ञानेंद्रियां सक्रिय हो जाती हैं और उसे  असीम ऊर्जा, सुख और शांति महसूस होती है।

 

गर्भगृह के होते हैं नियम

 

गर्भगृह में विष्णु जी आदि देवताओं मूर्तियां आमतौर पर पिछली दीवार के सहारे रखी जाती हैं जबकि शिवलिंग की स्थापना गर्भगृह के मध्य में होती है। ऐसे गर्भगृह जहां शिवलिंग स्थापित है वहां भी भक्तों को कुछ विशेष अवसरों और नियमों के साथ ही प्रवेश की अनुमति होती है । जैसे- उज्जैन के महाकाल मंदिर में सिले हुए वस्त्र पहनकर गर्भगृह में प्रवेश पर पाबंदी है । कुछ प्राचीन मंदिरों में गर्भगृह को मंदिर के मुख्य तल के नीचे रखते थे।

 

:- विजय शर्मा