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अक्षय तृतीया के दिन किये गए दान.पुण्य का मिलता है अक्षय फल

 

30 अप्रैल को है अक्षय तृतीया। यानि वो दिन जिस दिन किसी भी समय कोई भी शुभ काम किया जाए तो वो शुभ ही रहता है। इस दिन आप जो भी काम करते हैं उसकी महत्वता कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है। इस दिन किया गया, पूजा पाठ, दान, धर्म-कर्म का फल अक्षय होता है यानि कभी ना मिटने वाला। पुराणों में भी इस दिन को बहुत शुभ माना गया है। 

 

वैदिक पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत 29 अप्रैल को शाम को 05 बजकर 31 मिनट पर होगी। और तृतीया तिथि का समापन 30 अप्रैल को दोपहर 02 बजकर 12 मिनट पर होगा। चूंकि सनातन धर्म में सूर्योदय से तिथि की गणना की जाती है इसीलिए तृतीया तिथि 30 अर्प्रल को ही होगी। अक्षय तृतीया के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग पूरे दिन रहेगा। ऐसे में कोई भी शुभ कार्य करना या नई चीजें खरीदना फलदायी होगा ।

 

अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने की परंपरा है क्योंकि मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने से माता लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है लेकिन सोना खरीदना हर किसी के बजट में नहीं होता, ऐसे में अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने की बजाय आप और भी वस्तुएं खरीद सकते हैं जैसे- मिट्टी का घड़ा आप ले सकते हैं। अक्षय तृतीया पर जौ या पीली सरसों, सेंधा नमक, झाडू, साबुत धनिया, मिट्टी या किसी धातु का हाथी खरीदना बहुत अच्छा माना जाता है। अक्षय तृतीया पर बर्तन या कौड़ी खरीदना भी शुभ होता है। इस दिन तांबे या पीतल के बर्तन खरीदने से घर में धन बढ़ता है।

 

अक्षय तृतीया कोई सामान्य दिवस नहीं है बल्कि इसके कई पौराणिक संदर्भ भी हैं । क्या-क्या हैं वो बातें, आइये जानते हैं ।

 

-मान्यता है कि इसी दिन महाभारत का समापन हुआ था।

-युधिष्ठिर को अक्षय पात्र भी इसी दिन मिला था, जिसकी विशेषता थी कि इसमें भोजन कभी समाप्त नहीं होता था और इसी पात्र से वह अपने राज्य के गरीब व निर्धन को भोजन देकर उनकी सहायता करते थे।

-अक्षय तृतीया को भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी का जन्म हुआ था

-मां गंगा इसी दिन धरती पर अवतरित हुई थीं

-अक्षय तृतीया के दिन से ही चारधाम यात्रा की शुरूआत होती है

-अक्षय तृतीया के दिन ही सुदामा अपने मित्र भगवान कृष्ण से मिले थे।

-इस दिन ही सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग की शुरुआत हुई थी।

-अक्षय तृतीया के दिन से ही महर्षि वेदव्‍यासजी ने महाभारत की कथा को सुनाना आरंभ किया था और गणेशजी ने इस कथा को लिखना आरंभ किया था।

-इसी दिन से त्रेतायुग का आरंभ माना जाता है।अक्षय तृतीया के दिन ही द्रौपदी की लाज बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को चीर प्रदान किया था।                                                                                                                                                                                                                                                                                                         

 -:नेहा सर्वेश शुक्ला