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केदारनाथ धाम में शिवलिंग क्यों है त्रिभुजाकर ? पढें पौराणिक गाथा

केदारनाथ धाम, भगावन शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, शिवजी का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। यह भव्य मंदिर, पंच केदार तीर्थ स्थलों में से पहला है और 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे ऊंचा है। भगवान शिव का यह निवास स्थान साल में 6 महिने बर्फ से ढ़का रहता है। सबसे विशेष बात यह है कि केदारनाथ धाम में शिवलिंग का आकार दुनिया में सबसे अलग है।

 

त्रिभुजाकर (बैल की पीठ) आकार है शिवलिंग

 

केदानाथ के शिवलिंग का आकार त्रिभुजाकर है। इसकी परिथि 12 फीट और ऊंचाई भी करीब 12 फीट है। प्राय: लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि केदारनाथ धाम के शिवलिंग का आकार त्रिभुजाकर या कहें बैल की पीठ के आकार जैसा क्यों हैं। चलिए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा जो पांडवों के जुड़ी हुई है।

 

पांडवों से जुड़ी है केदारनाथ धाम के शिवलिंग की कथा

 

पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था और युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बन चुके थे। उसके कुछ समय बाद ही माता कुंती, घृतराष्ट्र, गंधारी आदि महापुरुषों ने संन्यास ले लिया था। फिर एक दिन हस्तिनापुर में सभा के दौरान, कुछ ब्राह्मणों ने पांडवों को बताया कि उन्होंने युद्ध में अपने भाईयों की हत्या की है और उस पाप को मिटाने के लिए पांचों भाईयों को भगवान शिव की उपासना करनी पड़ेगी। इस बात पर विचार-विमर्श के बाद सभी पांडव और द्रौपदी महादेव यानी शिवजी से क्षमा मांगने और संन्यास लेने के लिए पहाड़ों पर चले गए। इसके बाद भगवान शिव ने सभी पांडवों की परीक्षा लेने का फैसला किया। और शिवजी पांडवों से दूर हो गए।

 

फिर क्या था, पांडव भगवान शिवजी की तलाश में जहां भी जाते, महादेव वहां से दूर चले जाते। आखिर में पांडवों को भगवान शिव के दर्शन हिमालय की पहाड़ियों पर हुए, लेकिन महादेव ने वहां बैल का रूप धारण कर लिया और जब पांडवों ने बैल रुपी शिवजी को पकड़ने की कोशिश की। तो उसी पल भगवान शिव पाताल लोक में जाने लगे लेकिन भीम ने किसी तरह उस बैल का कोलू (बैल की पीठ) पकड़ लिया और उन्हें धरती में जाने से रोक लिया। तभी इस कोलू ने शिवलिंग का आकार ले लिया और उसी स्थान पर स्थापित हो गए। कहा जाता है कि पांडवों ने यहां पर भगवान शिव की पूजा-अर्चना की, जिससे भोलेनाथ प्रसन्न हुए और पांडवों को पाप से मुक्त कर दिया।

 

:- नईम अहमद